बीसीजी का टीका लगे लोगों में नहीं बढ़ता कोरोना वायरस का खतरा, वैज्ञानिकों का खुलासा
वैज्ञानिकों ने पाया कि कोरोना महामारी के दौरान बीसीजी का टीका लगे लोग बार-बार बीमार नहीं पड़े या ज्यादा गंभीर बीमार नहीं हुए।
लंदन, प्रेट्र। वैज्ञानिकों ने ऐसे वालंटियरों के बीच तुलना की है जिन्हें बीसीजी का टीका लगाया गया था और जिन्हें यह टीका नहीं लगा था। वैज्ञानिकों ने पाया कि कोविड-19 महामारी के दौरान बीसीजी का टीका लगे लोग बार-बार बीमार नहीं पड़े या ज्यादा गंभीर बीमार नहीं हुए।सेल रिपोर्ट्स मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में स्वस्थ वालंटियरों के ऐसे समूह का मूल्यांकन किया गया जिन्हें वर्तमान कोरोना महामारी से पूर्व के पांच वर्षो में बीसीजी का टीका दिया गया था। उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली की तुलना ऐसे स्वस्थ वालंटियरों से की गई जिन्हें यह टीका नहीं लगाया गया था।
नीरदलैंड में रैडबाउड यूनिवर्सिटी समेत अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों के मुताबिक बीसीजी की वैक्सीन मूल रूप से तपेदिक (टीबी) के इलाज के लिए थी, लेकिन बाद में प्रतिरक्षा प्रणाली को दीर्घकालिक मजबूती देने में कारगर साबित हुई। हालांकि उन्होंने चेतावनी भी दी कि इस अध्ययन की सीमाएं हैं जो कोविड-19 के खिलाफ बीसीजी वैक्सीन के लाभों का निष्कर्ष निकालने से रोकती है।
बीसीजी टीका के असर का अध्ययन करेगा ICMR
इससे पहले भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने घोषणा की थी कि वह इस बारे में अध्ययन करेगी कि टीबी के खिलाफ उपयोग किया जाने वाला बीसीजी टीका क्या कोरोना वायरस संक्रमण को रोक सकता है। साथ ही क्या यह महामारी के हॉटस्पॉट इलाकों में रह रहे बुजुर्ग लोगों में रोग की गंभीरता तथा मृत्यु दर को घटा सकता है। आइसीएमआर के एक वैज्ञानिक ने कहा कि यह अध्ययन तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में 60 से अधिक उम्र के करीब 1,500 स्वस्थ स्वयंसेवकों पर किया जाएगा।
तमिलनाडु सरकार द्वारा आइसीएमआर के चेन्नई स्थित राष्ट्रीय तपेदिक अनुसंधान संस्थान (एनआइआरटी) को 15 जुलाई को परीक्षण की मंजूरी दी जा चुकी है। इसके तहत बीसीजी टीके की बुजुर्गो पर प्रभावशीलता का अध्ययन किया जाएगा। बीसीजी-कोविड परीक्षण आइसीएमआर के तहत पांच अन्य केंद्रों में भी होगा। इनमें दिल्ली के अखिल भारतीय आयुíवज्ञान संस्थान के अलावा अहमदाबाद, भोपाल, मुंबई, जोधपुर के संस्थान शामिल हैं।