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पुणे के 90 वर्षीय बालकृष्ण दोषी को मिला आर्किटेक्चर का सबसे प्रतिष्ठित 'प्रित्जकर पुरस्कार'

ले कर्बुजियर के भारतीय शिष्य को को आर्किटेक्चर के क्षेत्र के लिए प्रित्जकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

By Srishti VermaEdited By: Published: Thu, 08 Mar 2018 10:43 AM (IST)Updated: Thu, 08 Mar 2018 02:16 PM (IST)
पुणे के 90 वर्षीय बालकृष्ण दोषी को मिला आर्किटेक्चर का सबसे प्रतिष्ठित 'प्रित्जकर पुरस्कार'

पेरिस (एजेंसी)। 90 वर्षीय भारतीय आर्किटेक्चर बालकृष्ण दोषी को आर्किटेक्चर के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा गया है। दोषी भारत के पहले ऐसे शख्स हैं जिन्हें ये पुरस्कार दिया गया है। दोषी पेरिस के मशहूर आर्किटेक्ट ले कर्बुजियर के साथ काम कर चुके हैं। वर्तमान में वे चंडीगढ़ शहर के डिजाइन पर काम कर रहे हैं। उन्हें साल 2018 के प्रित्जकर प्राइज के लिए नामित किया गया है। बता दें कि प्रित्जकर प्राइज आर्किटेक्ट के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है जिसकी तुलना ऑस्कर से की जाती है।

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लो-कॉस्ट कामों के लिए जाने जाने वाले दोषी स्वतंत्रता के बाद सबसे प्रभावी आर्किटेक्ट के रुप में प्रसिद्ध हुए हैं। इसके साथ ही वे इस तरह के प्रतिष्ठित अवॉर्ड पाने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। इस पुरस्कार की स्थापना 1979 में की गई थी।  

प्रित्जकर ज्यूरी ने कहा कि दोषी ने हमेशा एक गंभीर आर्किटेक्चर पर काम किया है साथ ही ये हमेशा ट्रेंड भी किया है। प्रशंसा करते हुए कहा कि उनकी कला में गहरी जिम्मेदारी का भाव छिपा होता है साथ ही देश को कुछ योगदान देने की इच्छा भी छिपी होती है।

कहां हुआ जन्म

1927 में पुणे में फर्नीचर का काम करने वाले एक परिवार में जन्मे दोषी ने मुंबई में आर्किटेक्चर की पढ़ाई की। इसके बाद वे 1951 में ले कर्बुजियर के साथ काम करने के लिए पेरिस आ गए। इसके बाद 1954 को वे अपनी कला को भारत में गढ़ने वापस स्वदेश आ गए। यहां उन्होंने अहमदाबाद और चंडीगढ़ में अपने आर्किटेक्चर का नमूना दिखाया। मिल ओनर्स असोसियेशन बिल्डिंग इसके अहम उदाहरण है। दोषी ने पुरस्कार प्राप्त करने पर कहा, मैं इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को अपने गुरु ले कर्बुजियर को समर्पित करता हूं। उनकी सीख की वजह से आज मैं इस मुकाम पर हूं।

इस तरह के आर्किटेक्ट पर किया काम

दोषी ने आइआइएम अहमदाबाद में लुईस कान के साथ भी 1960 में काम किया है। अपने प्रोजेक्ट में उन्होंने दो बिल्डिंग के बीच खाली स्थान ना छोड़ने के प्रयासों पर काम किया। उन्होंने चंड़ीगढ़ में इस तरह के कई उदाहरण पेश किए हैं। इस प्रोजेक्ट में उन्होंने घनी सड़कें, वेल सेटल्ड गलियों के पैटर्न को डिजाइन किया है। उन्होंने लिखा है कि किसी शहर के आर्किटेक्ट में सोशल लाइफस्टाइल का दिखना जरुरी होता है।

मिल चुके हैं ये अवॉर्ड 

1989 में इंदौर में बना लो-कोस्ट हाउसिंग, जिसमें 80,000 लोग रहते हैं, उन्हीं का बनाया हुआ है। उन्हें 1995 में आर्किटेक्चर के लिए आगा खान अवॉर्ड मिला।


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