गैर संक्रामक रोगों के चलते 1.7 करोड़ लोग नहीं देख पाते अपना 70वां जन्मदिन
गैर संक्रामक रोगों के चलते दुनिया में हर साल 1.7 करोड़ लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। रिपोर्ट में अलग अलग देशों में 30 वर्षीय पुरुष और महिलाओं की 70 वर्ष की आयु से पहले मृत्यु की आशंका की गणना की गई।
नई दिल्ली (जागरण स्पेशल)। लंदन के इंपीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार और अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट दुनिया में गैर संक्रामक रोगों यानी कैंसर, हृदय रोग, फेफड़ों की बीमारी और मधुमेह से होने वाली मौतों की भयावह तस्वीर पेश करती है। इन रोगों के चलते दुनिया में हर साल 1.7 करोड़ लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। रिपोर्ट में अलग अलग देशों में 30 वर्षीय पुरुष और महिलाओं की 70 वर्ष की आयु से पहले मृत्यु की आशंका की गणना की गई। भारतीय महिलाओं के लिए यह आशंका 19.8 फीसद और पुरुषों के लिए 26.7 फीसद है। अच्छी बात यह है कि भारत शीर्ष दस देशों में शामिल नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस संदर्भ में तय लक्ष्य भारत 2040 के बाद ही पा सकेगा। 180 देशों के आंकड़ों पर तैयार इस रिपोर्ट को इस मामले की अब तक की सबसे व्यापक रिपोर्ट माना जा रहा है।
प्रमुख कारण
शराब और तंबाकू का अनियंत्रित कारोबार, गरीबी और बदतर स्वास्थ्य सुविधा ढ़ांचा बैक्टीरिया और वायरस जैसे पारंपरिक दुश्मनों की तुलना में मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन रहे हैं। गैर संक्रमण से समयपूर्व मौतों की संख्या में कटौती हो इसके लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में नाकाम देशों कोविशेषज्ञों ने चेताया है।
चिंतनीय
4.1 करोड़ लोग गैर संक्रमण बीमारियों से मर जाते हैं, जो दुनिया भर में सात मौतों में से एक के बराबर है। इनमें 1.7 करोड़ या 41 फीसद मौतें समयपूर्व हो जाती है यानि 70 साल से पहले।
बड़ा खतरा
लंदन के इंपीरियल कॉलेज के वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया भर के अधिकांश देशों में एचआइवी की तुलना में गैर संक्रामक बीमारियों से पुरुषों और महिलाओं के मरने की आशंका ज्यादा है।
संयुक्त राष्ट्र की अपील
संयुक्त राष्ट्र ने तीन साल पहले सभी देशों से 2030 तक चार प्रमुख गैर संक्रमण बीमारियों से समयपूर्व मौत की संख्या में कटौती करने को कहा था। लेकिन केवल 35 देश महिलाओं के लिए और 30 देश केवल पुरुषों के लिए ही लक्ष्य को पूरा करने की तरफ बढ़ रहे हैं। कुछ देश जैसे डेनमार्क, न्यूजीलैंड, नॉर्वे और दक्षिण कोरिया पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य को पूरा करतेि