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सबका साथ सबका विकास के साथ आगे बढ़ रहा भारत, पड़ोसी देशों की मदद की रकम दुगुनी की

20 वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन और पूर्वी आर्थिक मंच की पांचवीं बैठक में दोनों देशों के प्रधानमंत्री मिले थे इसी बैठक के बाद भारत ने रुस को ये आर्थिक मदद देना तय किया था।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sat, 07 Sep 2019 03:22 PM (IST)Updated: Sat, 07 Sep 2019 03:22 PM (IST)
सबका साथ सबका विकास के साथ आगे बढ़ रहा भारत, पड़ोसी देशों की मदद की रकम दुगुनी की
सबका साथ सबका विकास के साथ आगे बढ़ रहा भारत, पड़ोसी देशों की मदद की रकम दुगुनी की

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। एक समय था जब भारत को दूसरे देशों से ऋण लेना पड़ता था मगर अब समय में बदलाव आया है। अब देश सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ आगे बढ़ रहा है। देश के खजाने में बढ़ोतरी हो रही है जिससे अब भारत दूसरे देशों को भी अनुदान और ऋण देने की स्थिति में आ चुका है। भारत ने बीते गुरुवार को ही रूस के संसाधन संपन्न सुदूर पूर्व क्षेत्र के विकास के लिए एक बिलियन डॉलर लाइन ऑफ क्रेडिट (रियायती ऋण) देने की घोषणा की। भारत अपने पड़ोसी देशों और आर्थिक रुप से कमजोर देशों को अनुदान देकर मदद करता रहता है। 

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भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन 

भारत समय-समय पर दूसरे देशों को विकास की राह में बढ़ावा देने के लिए इस तरह की आर्थिक मदद करता रहता है। कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रुस यात्रा पर गए थे। उस दौरान उनकी मुलाकात रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ हुई, 20 वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन और पूर्वी आर्थिक मंच की पांचवीं बैठक में दोनों देशों के प्रधानमंत्री मिले थे, इसी बैठक के बाद भारत ने रुस को ये आर्थिक मदद देना तय किया था। 

भारत के लिए विकास सहायता बढ़ाना कोई नई बात नहीं है। विदेश मंत्रालय के बजट का आधा हिस्सा विदेशी सरकारों, विशेषकर भारत के पड़ोसियों को अनुदान और ऋण देने के लिए बना है। वास्तव में, इस तरह के ऋणों की राशि पिछले पांच वर्षों में 2013-14 में दुगुनी कर दी गई है। साल 2013-14 में जो राशि 11 बिलियन डॉलर थी वो अब साल 2018-19 में बढ़कर 28 बिलियन डॉलर हो गई है।

हालांकि, यह राशि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों की मदद के लिए चली गई है ये वो देश हैं जो रूस की तुलना में आर्थिक रूप से और भी कमजोर हैं। भारत-रूस के संदर्भ में, भारत (वर्तमान में जीडीपी द्वारा दुनिया में 5 वें स्थान पर) रूसी सहायता प्राप्त करने वालों में से एक है। भारत अब दुनिया की 12 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। 

भारत लंबे समय तक अपने उद्योग और कृषि को विकसित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर जीवित रहा। (1956 से शुरू हुआ जब भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई थी और बाजार में सुधारों के बाद विदेशी निवेश शुरू होने तक इसे दूसरी पंचवर्षीय योजना के लिए धन की आवश्यकता थी)। 1990 के दशक (उस समय के आसपास Union of Soviet Socialist Republics (यूएसएसआर) टूट रहा था)। यूएसएसआर ने विकासशील देशों को दी जाने वाली सहायता का एक चौथाई हिस्सा भारत को दिया। 

तेल की कीमतों में गिरावट 

वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक दोनों के साथ कई कारकों ने हाल के वर्षों में रूसी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। वो साल 2014 से ही इसमें सुधार के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है। 5 साल पहले तेल की कीमतों में गिरावट की वजह से ये चीजें हुई थीं। अर्थव्यवस्था इन सालों में सिर्फ 2% बढ़ी है जिससे रूस के श्रमिकों की डिस्पोजेबल आय में गिरावट आई है जबकि करों में वृद्धि हुई है। इस साल मई-जून के माह में मास्को में हुए विरोध प्रदर्शन के पीछे अर्थव्यवस्था एक कारण थी। भारत ने एक राजनयिक उपकरण के साथ इस दिशा में कदम रखा है। 

सॉफ्ट लोन पड़ोसी देशों के साथ और उससे परे राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने के साथ-साथ विशेष रूप से अफ्रीका में बढ़ती चीनी उपस्थिति का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण रहे हैं। आर्थिक रुप से कमजोर देश इस मदद को प्राप्त करने के लिए काम करते है। यह चीनी बेल्ट और रोड मॉडल के विपरीत है जो कई देशों को कर्ज के जाल में डालने की धमकी देता है। अनुदान में वृद्धि और कमी कभी-कभी समय की राजनीति को भी दर्शाती है। नेपाल में धन का प्रवाह निरंतर रहा है, यह पिछले साल सरकार में बदलाव के बाद मालदीव के लिए बढ़ा भी है।


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