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पाक में सूफी संगठन ने 110 साल पुरानी सिख पांडुलिपि गुरुद्वारा को सौंपी, 90 साल से सूफी परिवार के पास थी सुरक्षित

पाकिस्तान में एक सूफी संगठन ने 110 साल पुरानी दुर्लभ सिख पांडुलिपि पंजाब प्रांत के सियालकोट में एक गुरुद्वारा प्रशासन को सौंप दी है। यह पांडुलिपि पंजाब प्रांत के गुजरात गांव में एक सूफी परिवार के पास सुरक्षित रखी गई थी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 25 Sep 2020 06:01 AM (IST)Updated: Fri, 25 Sep 2020 06:01 AM (IST)
पाक में एक सूफी संगठन ने दुर्लभ सिख पांडुलिपि सियालकोट में एक गुरुद्वारा प्रशासन को सौंप दी है।

लाहौर, पीटीआइ। पाकिस्तान में एक सूफी संगठन ने 110 साल पुरानी दुर्लभ सिख पांडुलिपि पंजाब प्रांत के सियालकोट में एक गुरुद्वारा प्रशासन को सौंप दी है। सूफी संगठन ने 90 वर्षों तक इस पांडुलिपि को सुरक्षित रखने के बाद मुस्लिम-सिख भाईचारा मजबूत करने के लिए यह कदम उठाया। पंजाब प्रांत के गुजरात गांव में एक सूफी परिवार के पास प्राचीन सिखी सरूप सुरक्षित रखी थी। अब इसे सियालकोट में गुरुद्वारा बाबा दी बेरी के प्रशासन को सौंप दिया गया है।

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स्थानीय सूफी संगठन मित्र सांझ पंजाब ने यह पांडुलिपि लौटाई है। गुरु ग्रंथ साहिब की दो पांडुलिपियां लंबे समय से गुजरात गांव के एक सम्मानित सूफी बुजुर्ग पीर सैयद मुनीर नक्शबंदी के परिवार के पास रखी हुई थीं। सूफी संगठन के प्रमुख इफ्तिखार वराइच ककरवी ने पाकिस्तानी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून को यह जानकारी दी। अखबार ने लिखा है कि विभिन्न धर्मों के बीच सौहार्द के पैरोकार के रूप में मशहूर नक्शबंदी ने विभाजन से पहले सांप्रदायिक हिंसा से बचाने के प्रयास में कुछ सिख परिवारों को अपने घर में शरण दी थी।

इफ्तिखार वराइच ककरवी ने अखबार को बताया, 'कुछ सिख परिवारों को शरण देने से इतर उन्होंने उनके कुछ धार्मिक ग्रंथों को भी बचाया था और नष्ट होने से बचाने के लिए सुरक्षित रख लिया था। इन्हीं में गुरु ग्रंथ साहिब की ये पांडुलिपियां भी शामिल हैं। 1950 में सूफी बुजुर्ग पीर सैयद मुनीर नक्शबंदी का निधन हो गया। उन्होंने पांडुलिपियां अपने बच्चों को सौंप दीं और ये उनके परिवार के पास सुरक्षित रहीं।

हाल ही में पाकिस्तान के सिख समुदाय ने गुरु ग्रंथ साहिब की एक अन्‍य दुर्लभ और हस्तलिखित प्रति को गुरुद्वारा डेरा साहिब में रखने की मांग की थी। यह धर्मग्रंथ लाहौर स्थित एक संग्रहालय में रखा है और माना जाता है कि यह तीन सौ साल पुराना है। संग्रहालय के एक अधिकारी ने बताया कि पवित्र धर्मग्रंथ की हस्तलिखित प्रति और दूसरी कलाकृतियां संग्रहालय को विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों से दान में मिली थीं।


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