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अफगानिस्‍तान के भविष्‍य और इस्‍तांबुल बैठक को लेकर पाकिस्‍तान के प्रमुख अखबार ने अपने संपादकीय में क्‍या लिखा

अफगानिस्‍तान से अमेरिका ने अपनी वापसी की समय सीमा को बढ़ाकर सितंबर कर दिया है। इससे नाराज तालिबान ने शांति प्रक्रिया की किसी बैठक में हिस्‍सा लेने से इनकार कर दिया है। इस पर पाकिस्‍तान के अखबार ने संपादकीय लिखा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 16 Apr 2021 07:36 AM (IST)Updated: Fri, 16 Apr 2021 07:36 AM (IST)
इस्‍तांबुल की बैठक अफगानिस्‍तान के लिए होगी खास

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। अफगानिस्‍तान से अमेरिका ने अपनी पूरी फौज को निकालने की समय सीमा को 1 मई से बढ़ाकर सितंबर 2021 कर दिया है। अब अमेरिका 9/11 से पहले अपनी पूरी फौज को वहां से वापस बुला लेगा। इसको लेकर तालिबान अपनी कड़ी प्रतिक्रिया पहले ही दे चुका है। अब पाकिस्‍तान के प्रमुख अखबार द डॉन ने इसको लेकर अपने संपादकीय में लिखा है कि अमेरिका ने ये फैसला अफगानिस्‍तान को लेकर इस्‍तांबुल में 24 अप्रैल को होने वाली अहम बैठक से पहले दिया है। तालिबान ने साफ कर दिया है कि वो अमेरिकी फौज के अफगानिस्‍तान से पूरी तरह से बाहर जाने तक इस्‍तांबुल में होने वाली बैठक में हिस्‍सा नहीं लेगा।

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तालिबान के इस रवैये पर संपादकीय में लिखा गया है कि उन्‍हें इस पर इतना सख्‍त रुख नहीं अपनाना चाहिए और खुद को लचीला रखना चाहिए। संपादकीय में अमेरिकी फैसले पर टिप्‍पणी करते हुए कहा है कि अमेरिका को ये विश्‍वास दिलाना चाहिए कि वो तय समय सीमा से आगे नहीं बढ़ेगा। अखबार लिखता है कि पहले से अब में काफी परिवर्तन आ चुका है। इसमें अफगानिस्‍तान में हुए नुकसान के पीछे तालिबान समेत वहां की हुकूमत को जिम्‍मेदार ठहराया गया है। साथ ही कहा गया है कि अब जबकि अमेरिका यहां से जा रहा है तो अफगानिस्‍तान की पूरी जिम्‍मेदारी यहां के लोगों की ही होगी।

द डॉन में अपने संपादकीय में लिखा है कि इस्‍तांबुल बैठक अफगानिस्‍तान में तनाव को कम करने का एक अच्‍छा अवसर है। पश्चिमी देश, तालिबान, और दूसरे नेता समेत वहां के जनजातीय पक्ष मिलकर एक फैसला कर सकते हैं जिससे अफगानिस्‍तान को बेहतरी के रास्‍ते पर आगे बढ़ाया जा सके। इसमें हिस्‍सा लेकर तालिबान ये संदेश दे सकता है कि वो अफगानिस्‍तान की भलाई और बेहतरी के लिए मदद कर रहा है और आगे आ रहा है। यदि वो अपने रुख में बदलाव नहीं लाता है और इस बैठक में शामिल नहीं होता है तो हो सकता है कि अफगानिस्‍तान पर मौजूद विदेशी फौज की वापसी में दिक्‍कत हो। ऐसा होने परअफगानिस्‍तान में अनिश्चितता का दौर भी जारी रह सकता है।

ये सच है कि अफगानिस्‍तान वर्षों से हिंसा की मार झेल रहा है। शक्तिशाली स्‍थानीय नेता किसी भी तरह के समझौते से पीछे हटते रहे हैं। इसका ही नतीजा है कि अफगानिस्‍तान इतना पीछे चला गया है। अमेरिका और उनके साथियों को अफगान युद्ध से कुछ हासिल नहीं हुआ। लेकिन अब अफगानिस्‍तान को अपने पांव पर खुद खड़ा होना होगा और खुद को दोबारा बनाना होगा।


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