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    उर्दू शायर फैज अहमद फैज की बेटी बोलीं, 'हम देखेंगे..' को हिंदू विरोधी कहना हास्यास्पद

    By Arun Kumar SinghEdited By:
    Updated: Fri, 03 Jan 2020 12:35 AM (IST)

    जाने-माने उर्दू शायर फैज अहमद फैज की बेटी सलीमा हाशमी ने कहा है कि उनके पिता की लिखी नज्म हम देखेंगे.. को हिंदू विरोधी कहना दुखद नहीं बल्कि हास्यास्पद है।

    उर्दू शायर फैज अहमद फैज की बेटी बोलीं, 'हम देखेंगे..' को हिंदू विरोधी कहना हास्यास्पद

    लाहौर, प्रेट्र। जाने-माने उर्दू शायर फैज अहमद फैज की बेटी सलीमा हाशमी ने कहा है कि उनके पिता की लिखी नज्म 'हम देखेंगे..' को हिंदू विरोधी कहना दुखद नहीं, बल्कि हास्यास्पद है। उन्होंने कहा कि उनके पिता के शब्द हमेशा उन लोगों की आवाज बनेंगे जो खुद को व्यक्त करना चाहते हैं।

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    सलीमा ने कहा, विवाद से चिंतित नहीं 

    नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के लिए कानपुर आइआइटी में छात्रों द्वारा 'हम देखेंगे..' उद्धत करने के खिलाफ शिकायत के लिए संस्थान द्वारा समिति गठित करने के बारे में पूछे जाने पर सलीमा ने कहा कि वह विवाद से कतई चिंतित नहीं हैं क्योंकि फैज के शब्द उन लोगों को भी आकर्षित कर सकते हैं जो उनकी शायरी के आलोचक हैं। एक विशेष साक्षात्कार में सलीमा ने कहा, 'लोगों के समूह द्वारा नज्म के संदेश की जांच करने में कुछ भी दुखद नहीं है, यह हास्यास्पद है। इसको दूसरे नजरिये से देखिए, उन्हें उर्दू शायरी और उसके रूपकों में दिलचस्पी पैदा हो सकती है।'

    फैज को हिंदू विरोधी बताना अजीब और हास्यास्पद

    इस बारे में मशहूर शायर और गीतकार जावेद अख्‍तर ने फैज अहमद फैज को हिंदू विरोधी बताना इतना अजीब और हास्यास्पद है कि इसके बारे में गंभीरता से कुछ कहा भी नहीं जा सकता है। उन्होंने अपनी आधी जिंदगी पाकिस्तान के बाहर बिताई, उन्हें पाकिस्तान विरोधी भी कहा गया था। 'हम देखेंगे' उन्होंने जिया-उल-हक की सांप्रदायिक और कट्टर सरकार के खिलाफ लिखा था।

    फैज की जिस कविता पर हुआ बवाल

    आईआईटी कानपुर के फैकल्टी सदस्यों ने था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कुछ छात्रों ने यह गीत गाया था जो हिंदू विरोधी है। फैज की नज्म इस प्रकार है-

    हम देखेंगे

    लाज़िम है कि हम भी देखेंगे

    वो दिन कि जिस का वादा है

    जो लौह-ए-अजल में लिखा है

    जब जुल्‍म-ओ-सितम के कोह-ए-गिरां

    रूई की तरह उड़ जाएंगे

    हम महकूमों के पांव-तले

    जब धरती धड़-धड़ धड़केगी

    और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर

    जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी

    जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से

    सब बुत उठवाए जाएंगे

    हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम

    मसनद पे बिठाए जाएँगे

    सब ताज उछाले जाएंगे

    सब तख्‍त गिराए जाएंगे

    बस नाम रहेगा अल्लाह का

    जो गायब भी है हाजिर भी

    जो मंजर भी है नाजिर भी

    उट्ठेगा अनल-हक़ का नारा

    जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

    और राज करेगी खल्‍क-ए-खुदा

    जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

    इस पंक्ति पर बवाल

    नज्म पर सवाल उठाने वाले लाइन 'सब तख्‍त गिराए जाएंगे, बस नाम रहेगा अल्लाह का, जो गायब भी है हाजिर भी' पर ऐतराज जता रहे हैं। बता दें कि यह कविता फैज ने 1979 में जिया-उल-हक को लेकर लिखी थी और पाकिस्तान में सैन्य शासन के विरोध में लिखी थी। फैज अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण जाने जाते थे और इसी कारण वे कई वर्षों तक जेल में रहे।