पश्तून आंदोलन में दिखी युवाओं की भागीदारी, पाकिस्तानी युवा चाहते हैं बदलाव
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सफल पश्तून आंदोलन से यह साबित होता है कि पाकिस्तानी युवा अब बदलवा चाहते हैं।
पेशावर, पाकिस्तान (एएनआइ)। पाकिस्तान में पश्तूनों (पठानों) के आंदोलन से यह साबित होता है कि युवा पाकिस्तानी बदलाव चाहते हैं। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में बड़े पैमाने पर पश्तून आंदोलन में आदिवासी युवाओं की भागीदारी देखने को मिली, जिससे यह साबित होता है कि युवा पाकिस्तानी बदलाव चाहते हैं।
समा टीवी के वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया, 'पाकिस्तान में और खैबर पख्तूनख्वा में आमतौर पर राजनीतिक रैलियों को आयोजित करने के लिए मुख्यधारा के राजनीतिक दल खानों (जमींदारों) और ठेकेदारों पर निर्भर होते हैं, ताकि लोगों को उनके गांवों से लाया जा सके (भीड़ जुटाने के लिए) और उनके परिवहन (आने-जाने) का भुगतान किया जा सके। पीटीएम (पश्तून ताहुफुज आंदोलन) ने बिना किसी किसी जमींदार और ठेकेदार पर निर्भर हुए एक सफल रैली का आयोजन किया। इन्होंने पश्तून प्रवासियों के लिए युवाओं और पेशेवर वर्ग के बीच फंड इकट्ठा करने के लिए अभियान चलाया।'
PTM के आंदोलन में शामिल हुए युवा और महिलाएं
पीटीएम ने मोहभंग हो चुके पश्तून युवाओं को आकर्षित किया। जिसमें बड़ी संख्या में युवा महिलाओं भी शामिल हैं। जो देश और विदेश में आवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) और पश्तूनख्वा मिली अवामी पार्टी (पीकेएमएपी) से जुड़े हुए हैं। यह पश्तून समुदाय के उभरते पेशेवर और मध्यम वर्ग के बीच भी लोकप्रिय हो गया है।
सोशल मीडिया अभियान का नतीजा है PTM का गठन
लेख में कहा गया है कि, 'पाकिस्तान में शुरुआत में पीटीएम के नेताओं ने मुख्यधारा की मीडिया द्वारा उनके विरोध प्रदर्शन और रैलियों को कवर न करने के लिए शिकायत दर्ज कराई थी। पीटीएम का गठन सोशल मीडिया अभियान का नतीजा है। कराची में नकीबुल्लाह महसूद के फर्जी एनकाउंटर के बाद इंसाफ की मांग को लेकर यह अभियान चलाया गया।' लेख के मुताबिक, 'इसके महत्व को समझने के बाद पीटीएम के आयोजकों ने सोशल मीडिया, विशेषकर- फेसबुक और ट्विटर पर यह अभियान चलाया। जिसने इन्हें पेशावर रैली के लिए प्रचार और लोगों को इकट्ठा करने में मदद की।'
26 वर्षीय मंजूर पश्तीन हैं PTM के संस्थापक
पश्तून आंदोलन के नेता 26 वर्षीय मंजूर पश्तीन हैं, जो पीटीएम के संस्थापक भी हैं। जिनकी बदौतल लाल रंग की टोपी (जिसे मजारी टोपी के नाम से भी जाना जाता है) और पश्तीन शब्द पश्तून युवाओं के बीच लोकप्रिय हो गया है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पुरुष और महिलाएं पीटीएम आंदोलन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए इस लाल रंग टोपी को पहनकर अपनी ताकत दिखा रहे हैं।
पश्तून ताहुफुज आंदोलन या पश्तून संरक्षण आंदोलन, मुख्य तौर पर युवा पश्तून कार्यकर्ताओं द्वारा शुरू किया गया था जो देश के आदिवासी क्षेत्रों में अधिकारियों द्वारा मानव अधिकारों के उल्लंघन को खत्म करने की मांग कर रहा है। वे आदिवासी क्षेत्रों में सैन्य चौकियों को हटाने की भी मांग कर रहे हैं।