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पाकिस्तान में जासूसी के मामले में तीन पूर्व सैन्य अफसर समेत चार को सुनाई गई सजा

सुरक्षा एजेंसियों ने महीनों बाद खट्टक को हिरासत में लेने की पुष्टि की थी। खट्टक को 14 साल कैद की सजा हुई है। उन्हें दुश्मन देशों की एजेंसियों को देश की संवेदनशील और अहम जानकारी देने के आरोप में सजा सुनाई गई है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Fri, 03 Dec 2021 10:17 PM (IST)Updated: Fri, 03 Dec 2021 10:17 PM (IST)
पाकिस्तान में जासूसी के मामले में तीन पूर्व सैन्य अफसर समेत चार को सुनाई गई सजा
चारों को अलग-अलग मामलों में सजा सुनाई गई है

इस्लामाबाद, एपी। पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी और देशद्रोह के मामले में एक जाने माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और सेना के तीन पूर्व अधिकारियों को 12 से 14 साल कैद की सजा सुनाई है। दो सुरक्षा अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। चारों को अलग-अलग मामलों में सजा सुनाई गई है। हालांकि, दोनों अधिकारियों ने यह नहीं बताया कि इनके खिलाफ कहां और कब सुनवाई हुई।

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मानवाधिकार कार्यकर्ता इदरीस खट्टक 2019 में पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर प्रांत की यात्रा के दौरान लापता हो गए थे। बाद में पता चला कि पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों ने उन्हें अपनी हिरासत में ले लिया था। सुरक्षा एजेंसियों ने महीनों बाद खट्टक को हिरासत में लेने की पुष्टि की थी। खट्टक को 14 साल कैद की सजा हुई है। उन्हें दुश्मन देशों की एजेंसियों को देश की संवेदनशील और अहम जानकारी देने के आरोप में सजा सुनाई गई है।

सेना के तीन सेवानिवृत्त अधिकारियों-कर्नल फैज रसूल और मुहम्मद अकमल और मेजर सैफुल्ला बाबर को क्रमश 14 साल, 10 और 12 साल कैद की सजा सुनाई गई है। इनके खिलाफ जासूसी और दुश्मन देश की खुफिया एजेंसियों के मिलीभगत के आरोप लगाए गए थे।

खट्टक के परिवार को मुकदमे या सजा के बारे में सूचित नहीं किया गया

मानवाधिकार कार्यकर्ता की बेटी तालिया खट्टक ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि उसके परिवार को खट्टक के मुकदमे या सजा के बारे में सूचित नहीं किया गया है। उसे इंटरनेट मीडिया के माध्यम से इसके बारे में जानकारी मिली है। साथ ही उसने कहा कि मेरे पिता के वकील से भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली है।

वहीं, खट्टक की सजा की इंटरनेट मीडिया पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने निंदा की है। कई लोगों ने सुझाव दिया है कि उन्हें गिरफ्तार किया गया था क्योंकि उन्होंने अवैध हिरासत और जबरन गायब होने के खिलाफ बात की थी।हालांकि, पाकिस्तानी कानून अदालत की मंजूरी के बिना नजरबंदी पर रोक लगाता है, अधिकारियों ने निजी तौर पर स्वीकार किया है कि खुफिया एजेंसियों को हिरासत में रखने के लिए अनिर्दिष्ट संख्या में संदिग्धों को रखा गया है।


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