पाकिस्तान चुनाव : भाषण और प्रचार में इस तरह छाए हैं मोदी
कुछ कह रहे हैं कि अकेले दम पर मोदी भारत को महाशक्ति बनाने की ओर उन्मुख है। अवाम से अपील करते हैं कि ऐसे व्यक्ति-ऐसी पार्टी को वोट करे जो मोदी को रोकने में सक्षम हो।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आगामी 25 जुलाई को पड़ोसी देश पाकिस्तान में आम चुनाव प्रस्तावित है। वहां की सभी पार्टियों के नेता लोगों को अपने पक्ष में लुभाने में लगे हैं। इस प्रयास में वे इस हद तक जा रहे हैं कि दुश्मन को दोस्त और दोस्त को दुश्मन भी बताने से परहेज नहीं कर रहे। जिसका जिस तरीके से हित सध रहा है, उसके बोल बचन वैसे ही निकल रहे हैं। कुछ कह रहे हैं कि अकेले दम पर मोदी भारत को महाशक्ति बनाने की ओर उन्मुख है। अवाम से अपील करते हैं कि ऐसे व्यक्ति-ऐसी पार्टी को वोट करे जो मोदी को रोकने में सक्षम हो। तो कुछ लोग पीएम मोदी की शख्सियत को लेकर अपने हुक्मरानों की शिकायत कर रहे हैं। उनकी इस शिकायत में एक शिकस्त का भाव भी है।
इमरान खान: सेना के लाडले
इस बार के पाकिस्तानी चुनाव में एक नारा खूब लग रहा है कि यह इलेक्शन नहीं, सेलेक्शन है। इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ को छोड़कर बाकी सभी के सुर इस नारे को लेकर एक जैसे हैं। दरअसल इमरान खान सेना के लाडले बने हुए हैं। सेना के खिलाफ वे मुंह नहीं खोल रहे हैं। जिसके विरोध पर सेना और पाकिस्तान का अस्तित्व है, वे उस नरेंद्र दामोदर दास मोदी और उनके भारत का विरोध कर रहे हैं। इस क्रम में वे अपने धुर विरोधी नवाज शरीफ की तारीफ भी कर बैठ रहे हैं।
भारत की तरह तरक्की चाहते हो तो मुझे वोट करो
ईद के मौके पर पाकिस्तानी अवाम को मुबारकबाद देते हुए कहा कि अगर पाकिस्तान की जनता देश को भारत की तर्ज पर आगे बढ़ते हुए देखना चाहती है तो वो मुझे वोट करे। हम पाकिस्तान को वैसे ही आगे ले जाएंगे जैसे भारत को उसका प्रधानमंत्री आगे ले जा रहा है।
ट्विटर पर भारतीय पीएम की नकल
पांच जुलाई को इमरान का एक ट्वीट उन्हें मोदी की नकल करता हुआ दिखाता है। इसमें वे परिवारवाद के खिलाफ ठीक वैसे ही बात कर रहे हैं जैसा हमें मोदी की रैलियों में देखने-सुनने को मिलता है।
पिछड़ता पाकिस्तान
कहते हैं कि बड़े देश की तुलना में किसी छोटे देश की तरक्की की अपार संभावनाएं होती हैं, लेकिन यह सिद्ध बात पाकिस्तान पर फिट नहीं बैठती। आजादी के सत्तर साल में वह अपने बड़े भाई से बहुत पीछे हैं। राजनीतिक अस्थिरता के अलावा आतंकवाद, दकियानूस समाज और कर्ज लेकर घी पीने की मानसिकता बड़ी वजहें हैं।
जीत की जुगत
पाकिस्तान के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित डॉन अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि नवाज शरीफ ने भारत-पाक के रिश्तों को बेहतर करने की कोशिश की थी, लेकिन मोदी सरकार के पाकिस्तान विरोधी आक्रामक रुख ने दोनों देशों के बीच गतिरोध पैदा किया। शरीफ ने हर मुमकिन कोशिश की। यहां तक कि नरेंद्र मोदी को अपने घर भी बुलाया। पाक को अलग- थलग रखना ही मोदी सरकार की नीति है।
क्या लाहौर में इतिहास बदलेंगे इमरान
पाकिस्तान तहरीक-एइंसाफ (पीटीआइ) के अध्यक्ष इमरान खान इस बार लाहौर समेत पांच जगहों से चुनाव मैदान में उतरे हैं। उन्हें लाहौर से कभी जीत नसीब नहीं हुई। यहां से वह जितनी बार चुनाव लड़े, उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। लाहौर से उनके फिर चुनाव लड़ने पर सियासी गलियारे में इस बात को लेकर चर्चा चल रही है कि क्या इमरान इस बार भी लाहौर में हारेंगे या इतिहास बदलेंगे?
लाहौर में पाकिस्तान की संसद नेशनल असेंबली (एनए) की 13 सीटें हैं। यह शहर नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन का 1990 से गढ़ बना हुआ है। इमरान इस बार यहां की एनए-131 सीट से चुनाव मैदान में उतरे हैं। उनका मुकाबला पीएमएलएन उम्मीदवार ख्वाजा साद रफीक से है।
इमरान ने 1996 में पीटीआइ की स्थापना की थी। इसके बाद 1997 में हुए आम चुनाव में उन्होंने लाहौर की दो सीटों से किस्मत आजमाई थी, लेकिन उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 2002 के चुनाव में उन्हें लाहौर की एनए-122 सीट से हार का मुंह देखना पड़ा। 2013 के आम चुनाव में भी लाहौर में उनकी किस्मत नहीं बदली। तब वह दूसरी सीटों पर तो जीत गए, लेकिन लाहौर में फिर हार गए थे।