कश्मीर को लेकर पाकिस्तान में मची उथल पुथल, बाकी मुस्लिम देश खामोश
पाकिस्तान कश्मीर को लेकर लगातार राग अलाप रहा है। जबकि अन्य मुस्लिम देश इस मामले में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। उनका भारत से अच्छा रिश्ता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पाकिस्तान जम्मू कश्मीर को लेकर लगातार राग अलाप रहा है। भारत के अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद से पाकिस्तान की बौखलाहट और बढ़ गई है। वो रोजाना नई-नई गीदड़भभकी दे रहा है। यौमे आजादी के दिन तो प्रधानमंत्री इमरान खान ने यहां तक कह दिया कि वो ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए तैयार है। लड़ाकू विमानों को सीमा पर तैनात करके हमला करने और युद्ध करने का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है।
भारत भी शांति के साथ सबकुछ देख रहा है। सीमा पर सेनाएं एलर्ट पर है। जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल घूम टहलकर सबकुछ नार्मल बता रहे हैं। अब एक नई बात सामने आ रही है कि जम्मू कश्मीर के मामले में खाड़ी देश भी एकदम शांत है वो कुछ भी कहने से बच रहे हैं। दरअसल अधिकतर देशों के भारत के साथ व्यापारिक समझौते ठीकठाक हैं वो उसको किसी तरह से डिस्टर्ब नहीं करना चाह रहे हैं।
जम्मू कश्मीर के विशेषाधिकार को खत्म करने और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद पाकिस्तान में लगातार हायतौबा मची हुई है लेकिन मुस्लिम देशों में पूरी तरह से खामोशी बरकरार है। खाड़ी के देशों में लगभग खामोशी है। देश की बड़ी ताकत सऊदी अरब ने संयम बरतने और संकट की आशंका पर चिंता जताई है लेकिन कुवैत, कतर, बहरीन और ओमान जैसे देशों ने एक बयान तक जारी करना जरूरी नहीं समझा। संयुक्त अरब अमीरात तो उससे एक कदम और आगे निकलकर भारत के साथ आ गया, कहा कि जम्मू कश्मीर का विशेषाधिकार खत्म करना भारत का अंदरूनी मामला है, वो इसमें किसी भी तरह से हस्तक्षेप नहीं करेंगे। भारत के साथ इन देशों का सालाना कारोबार लगभग 100 अरब डॉलर से ज्यादा का है, यही वजह है कि अरब प्रायद्वीप के देशों में इसे लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाई दे रही है।
दरअसल सऊदी अरब की मुश्किल यह है कि उसके भारत और पाकिस्तान दोनों से अच्छे संबंध हैं, इसके साथ ही वह तुर्की और ईरान का वैचारिक विरोधी है क्योंकि वह इस्लामिक जगत में सिरमौर बनना चाहता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने सऊदी अरब और बहरीन से भारत की शिकायत की है, मगर अभी तक यह पक्का नहीं हो सका है कि ये दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसका समर्थन करेंगे या नहीं। जम्मू कश्मीर पर सऊदी अरब ने एक छोटा सा बयान जारी किया, इसमें कहा गया कि रियासत मौजूदा स्थिति पर नजर रख रही है, इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों के मुताबिक शांतिपूर्ण समाधान की मांग की गई है।
खाड़ी के देशों में 70 लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं जिनका वहां की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है। संयुक्त अरब अमीरात में डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर, ड्राइवर, निर्माण में जुटे लोग हो या फिर मजदूर, एक तिहाई लोग भारत के ही है वो वहां पर काम कर रहे हैं। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) इस बात को बेहतर समझता है। 2018 में यूएई और भारत का आपसी कारोबार 50 अरब डॉलर से ऊपर चला गया और भारत यूएई का दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार बन गया। यूएई में भारत का निवेश 55 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है और भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक दुबई के रियल स्टेट बाजार में सबसे बड़े विदेशी निवेशक भारतीय हैं।
इस बीच दुबई के पोर्ट ऑपरेटर डीपी वर्ल्ड ने भारत प्रशासित कश्मीर में एक लॉजिस्टिक हब तैयार करने की योजना बनाई है, भारत सरकार ने जब जम्मू कश्मीर को लेकर अपने फैसलों का एलान किया तो यूएई ने अपने रणनीतिक संबंधों को और मजबूत बनाने की तैयारी कर ली। यूएई के भारत में राजदूत अहमद अल बन्ना के हवाले से दोनों देशों की मीडिया में खबर चली कि कश्मीर में बदलाव सामाजिक न्याय और सुरक्षा बेहतर होगी और साथ ही स्थिरता और शांति आएगी।
जम्मू कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में बदलाव का मतलब है कि कश्मीरी लोगों का नौकरियों, छात्रवृत्ति और संपत्ति का मालिक बनने का एकाधिकार खत्म हो जाएगा। सरकार के आलोचकों का कहना है कि अब भारत के दूसरे हिस्से के लोग कश्मीर में संपत्ति खरीद सकेंगे और स्थायी रूप से बस जाएंगे। इस तरह से कश्मीर की संस्कृति और वहां की आबादी में व्यापक बदलाव होगा। कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक हैं और अगर वहां बसने वालों में हिंदू ज्यादा हुए तो मुसलमानों की स्थिति बदल सकती है।
धार्मिक भावनाओं की वजह से सऊदी अरब, ईरान और तुर्की की कश्मीर में दिलचस्पी रहती है। ये देश पूरी दुनिया में खुद को मुसलमानों का सरपरस्त मानने में एक दूसरे से होड़ लेते हैं। खाड़ी के देश और भारत के रिश्तों पर नजर रखने वाले हसन अल हसन कहते हैं कि तुर्की कश्मीर में अपना प्रभाव जमाने की कोशिश में है। ईरानी भी कश्मीर में अपना प्रभाव जमाना चाहते हैं, ऐसे में मुझे संदेह है कि सऊदी अरब इन देशों के आगे अपनी जमीन खोना चाहेगा।
तुर्की और भारत के बीच सालाना कारोबार 7 अरब डॉलर से कम का है, तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन किया है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब एर्दोवान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच टेलिफोन पर हुई बातचीत के बाद यह खबर आई कि तुर्की ने कश्मीर के आत्मनिर्णय के अधिकार पर बल दिया है।
ईरान ने सांकेतिक विरोध जताने की अनुमति दी जिसमें करीब 60 छात्रों ने तेहरान में भारतीय दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी और विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर भारत पाकिस्तान के बीच बातचीत और शांति की मांग की। यह हाल तब है जब अमेरिका के ईरान पर प्रतिबंध लगाने के बाद भारत ने ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया है और दोनों देशों के बीच कारोबार बेहद कम हो गया है।
इसके उलट सऊदी अरब में करीब 27 लाख भारतीय रहते हैं और भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक यह इराक के बाद भारत को तेल की सप्लाई देने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। सऊदी अरब से तेल के निर्यात की हिस्सेदारी बीते साल दोनों देशों के बीच हुए 27.5 अरब डॉलर के कारोबार में सबसे बड़ी थी।
इसी हफ्ते जब कश्मीर में कर्फ्यू का आठवां दिन था भारत ने देश में अब तक के सबसे बड़े विदेशी निवेश का एलान किया। सऊदी अरब की सरकारी कंपनी आरामको ने भारत के रिलायंस ऑयल एंड केमिकल्स में 15 अरब डॉलर की खरीदारी की है, इसके अलावा सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पहले ही भारत में 2021 तक 100 अरब डॉलर के निवेश का निश्चय कर चुके हैं।
कश्मीर मामलों के जानकारों का कहना है कि खाड़ी के देश इसलिए भी कश्मीर के मामले पर संभल कर बोल रहे हैं क्योंकि इसके केंद्र में लोगों की अपनी आजादी के अधिकार का मामला है। बहरीन हाल के वर्षों में विरोध प्रदर्शनों से आहत रहा है। कश्मीर का मसला वहां के लोगों के आत्मनिर्णय और लोकतंत्र के लिए क्रांति से जुड़ा है, जिससे खाड़ी के देश और इस्रायल बेहद सावधान हैं। इस वजह से ये देश इस मामले में कुछ भी खुलकर बोलने से बच रहे हैं।