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Jammu-Kashmir: राजा हरि सिंह ने दिया था पाकिस्‍तान को करारा झटका, जानें पूरी कहानी

1947 में जब जम्मू को लेकर विवाद शुरु हुआ उस समय पाकिस्तान को ये भरोसा था कि मुस्लिब बहुल होने के कारण यहां के लोग पाकिस्तान के साथ ही आएंगे।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 18 Aug 2019 02:12 PM (IST)Updated: Sun, 18 Aug 2019 03:45 PM (IST)
Jammu-Kashmir: राजा हरि सिंह ने दिया था पाकिस्‍तान को करारा झटका, जानें पूरी कहानी
Jammu-Kashmir: राजा हरि सिंह ने दिया था पाकिस्‍तान को करारा झटका, जानें पूरी कहानी

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 1947 में भारत और पाकिस्तान को अंग्रेजों से आजादी मिली। भारतीय स्वतंत्रता एक्ट 1947 के अनुसार तमाम रियासतों को यह चयन करने की सुविधा दी गई कि वे भारत के साथ रहना चाहते हैं या फिर पाकिस्तान के साथ जुड़ना चाहते हैं। उस समय जम्मू-कश्मीर देश की सबसे बड़ी रियायत हुआ करती थी। इस रियासत पर महाराजा हरि सिंह शासन करते थे। वहां की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी के हिसाब से पाकिस्तान को यह पूरा भरोसा था कि यह रियासत उसके साथ जाएगी, लेकिन हरि सिंह अपने राज्य को न तो पाकिस्तान और न ही भारत में मिलाना चाहते थे। लिहाजा उन्होंने स्वतंत्र रहने का फैसला किया।

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भारत से मांगी मदद
हरि सिंह से तिरस्कृत होने के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने का एक दूसरा हथकंडा अपनाया। उसने पाकिस्तानी सेना को कबाइली आक्रमणकारियों के वेश में जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने को भेजा। इन आक्रमणकारियों को स्थानीय मुस्लिमों का भी सहयोग मिला। परेशान महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी।

भारत से समझौता
26 अक्टूबर 1947 को हरि सिंह ने भारत के साथ समझौता किया। उन्होंने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करके जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल करने की आधिकारिक सहमति दी। शर्त यह रखी कि भारत अपनी सेना भेजकर आक्रमणकारियों को जम्मू-कश्मीर से खदेड़ दे।

संयुक्त राष्ट्र का दखल
भारतीय सेना ने आक्रमणकारियों को खदेड़ना शुरू किया। भारत ने 1 जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के सामने कश्मीर मुद्दा रखा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 21 अप्रैल 1948 को प्रस्ताव 47 पारित किया। इसके तहत दोनों देशों को संघर्ष विराम के लिए कहा गया। साथ ही पाकिस्तान से कहा कि वह जम्मू-कश्मीर से शीघ्र पीछे हटे।

जनमत संग्रह
जब भारतीय सेना कश्मीर में दाखिल हुई थी तो कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला ने मुद्दे पर जनमत संग्रह कराने का समर्थन किया था। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद द्वारा युद्धविराम संधि की अलग व्याख्या होने से भारत-पाक संतुष्ट नहीं थे। बहरहाल नवंबर 1948 में दोनों देश जनमत संग्रह को राजी हुए। बाद में भारत ने इससे किनारा कर लिया और कहा कि पाकिस्तान पहले अपनी सेनाएं कश्मीर से हटाए।

चीन से युद्ध 
चीन भी कश्मीर के हिस्से पर अपना हक जताता रहा है। 1962 में उसने भारत से युद्ध करके आक्साइ चिन इलाके पर कब्जा कर लिया। दोनों देशों को अलग करने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा खींची गई।  

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