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नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला की जान के पीछे क्‍यों पड़े हैं तालिबान चरमपंथी, जानें उनकी साहस की गाथा

पाकिस्‍तान की इस बच्‍ची ने एक बार फ‍िर पाकिस्‍तान की बंद समाजिक व्‍यवस्‍था को बेनकाब किया है। हम आपको बतातें हैं मलाला के संघर्ष की पूरी दास्‍तां। उनके उस छोटे से सफर के बारे में जहां आप भी मलाला पर गर्व कर सकेंगे।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Fri, 19 Feb 2021 02:48 PM (IST)Updated: Sat, 20 Feb 2021 09:41 AM (IST)
पाकिस्‍तान की मलाला यूसुफजई एक बार फ‍िर सुर्खियों में हैं। फाइल फोटो।

इस्‍लामाबाद, ऑनलाइन डेस्‍क। पाकिस्‍तान की मलाला यूसुफजई एक बार फ‍िर सुर्खियों में हैं। पाकिस्‍तान में सक्रिय तालिबान चरमपंथी संगठन ने उन्‍हें जान से मारने की धमकी दी है। चरमपंथी संगठन ने कहा कि इस बार न‍िशाना खाली नहीं जाएगा। आखिर कौन हैं मलाला यूसुफजाई। मलाला का तालिबान चरमपंथ‍ियों से क्‍या है बैर। आखिर चरमपंथी मलाला से क्‍यों नफरत करते हैं। जी हां, पाकिस्‍तान की इस बच्‍ची ने एक बार फ‍िर पाकिस्‍तान की बंद समाजिक व्‍यवस्‍था को बेनकाब किया है। मलाला की कहानी उस मासूम की कहानी है जो अपने देश में औरतों की आवाज को बुलंद करना चाहती है। अब तो मलाला पाकिस्‍तान ही नहीं पूरी दुनिया में महिलाओं की हक और उनके अधिकारों की एक बड़ी आवाज और आंदोलन बन चुकी हैं। हम आपको बतातें हैं मलाला के संघर्ष की पूरी दास्‍तां। उनके उस छोटे से सफर के बारे में जहां आप भी मलाला पर गर्व कर सकेंगे।

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स्‍वात घाटी में जन्‍मी मलाला को अखर गया तालिबान का यह फरमान

मलाला यूसुफजई का जन्‍म वर्ष 1997 में पाकिस्‍तान के खैबर पख्‍तूनख्‍वा प्रांत की स्‍वात घाटी में हुआ था। उस वक्‍त स्‍वात घाटी में तालिबानियों का आतंक था। यह घाटी पूरी तरह उनके कब्‍जे में थी। कुछ सरकारी प्रतिष्‍ठानों को छोड़कर सब पर तालिबान का कब्‍जा था। 2008 में तालिबान ने यहां लड़कियों की पढ़ाई पर पूरी तरह से रोक लगा दी। आतंकियों के डर से लड़कियों ने स्‍कूल जाना बंद कर दिया था। पूरी स्‍वात घाटी में तालिबान के भय से डांस और ब्‍यूटी पार्लर बंद कर दिए गए। उस वक्‍त मलाला आठवीं की छात्रा थी। बाल्‍यावस्‍था में यह बात मलाला को अखर गई। उनके संघर्ष की कहानी यहीं से शुरू होती है।

एक भाषण और बीबीसी डायरी के चलते तालिबान की बनीं जानी दुश्‍मन

तालिबान के इस फरमान के बाद मलाला के पिता जियाउद्दीन यूसुफजई उनको पेशावर लेकर चले गए। 11 वर्ष की उम्र में मलाला ने नेशनल प्रेस के सामने एक जबरदस्‍त भाषण दिया। इस भाषण का शीर्षक था 'हाउ डेयर द तालिबान टेक अवे माय बेसिक राइट टू एजुकेशन।' इस भाषण के बाद मलाला तालिबान को खटकने लगीं।  वर्ष 2009 में मलाला ने अपने छद्म नाम गुल मकई नाम से बीबीसी के लिए एक डायरी लिखना शुरू किया। बीबीसी की डायरी लिखने के लिए तालिबान के डर के कारण मलाला का यह छद्म नाम पड़ा। दिसंबर, 2009 में उनके पिता जयाउद्दीन ने अपनी बेटी की पहचान को सार्वजनिक किया। अपनी इस डायरी में उन्‍होंने पाकिस्‍तान के बंद समाज से लेकर तालिबान के आतंक की पूरी कहानी लिखी। उन्‍होंने स्‍वात में तालिबान के दुष्‍कर्म का वर्णन‍ किया। इस डायरी के बाद वह दुनिया की नजरों में आईं और तालिबान की जानी दुश्‍मन बन गईं।

2012 में तालिबान चरमपंथियों ने मलाला को मारी गोली

इस तरह मलाला तालिबान की जानी दुश्‍मन बन गई। वर्ष 2012 में तालिबान चरमपंथियों उस बस पर सवार हो गए, जिस पर मलाला स्‍कूल जा रही थी। बस में सवार एक आतंकवादी ने मलाला के बारे में जानना चाहा, उसका इरादा उसे जान से मारने का था। उस वक्‍त बस में बैठै सभी बच्‍चे मलाला की ओर देखने लगे और उसकी पहचान हो गई। तभी उस आतंकवादी ने मलाला पर गोली चलाई, यह गोली उसके सिर पर लगी। इसके बाद मलाला इलाज के लिए ब्रिटेन चली गई। लंबे समय तक इलाज के बाद वह ठीक हुई और पाकिस्‍तान वापस लौटी।

सहासी मलाला को मिला नोबल शांति पुरस्‍कार

लड़क‍ियों की शिक्षा के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाली सहासी मलाला को 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। इस पुरस्‍कार के बाद मलाला के खिलाफ पाकिस्‍तान में आवाज उठी। मलाला के इस नोबल पुरस्‍कार से पाकिस्‍तान खुश नहीं हुआ। पाकिस्‍तान में इसे एक एक राजनीतिक फैसला करार दिया गया और एक साजिश माना। इसके पूर्व 2013 में मलाला को यूरोपीय यूनियन का प्रतिष्ठित शैखरोव मानवाधिकार पुरस्‍कार दिया गया था। अंतरराष्‍ट्रीय शांति पुरस्‍कार के अलावा उनकी बहादुरी के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र द्वारा मलाला के 16वें जन्‍मदिन पर 12 जुलाई को मलाला दिवस घोषित किया गया।


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