जानें- पाकिस्तान सरकार की नाक में किसने किया है दम, कई देशों में प्रतिबंधित है संगठन
बलूचिस्तान की मांग को लेकर दुनिया के कई शहरों में प्रदर्शन हो चुके हैं। यह सिलसिला बादस्तूर पाकिस्तान में भी जारी है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। बलूचिस्तान में पाकिस्तान विरोधी नारे या प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है। यहां के लोग बीते सात दशकों से अपनी आजादी और हक के लिए लड़ रहे हैं। बीते कई दशकों से लगातार यहां के लोगों का पाकिस्तान में बनने वाली हर सरकार ने शारीरिक और आर्थिक शोषण किया है। इतना ही नहीं इन लोगों का आरोप है कि बीते कई वर्षों से पाकिस्तान की सरकार सेना की मदद से यहां के लोगों की हत्या करवा रहा है, उनका अपहरण कर उन्हें झूठे मामलों में जेल में ठूंस रहा हैं। बलचू महिलाओं के साथ सेना ज्यादतियां कर रही है। यह सब कुछ इसलिए किया जा रहा है कि इन्हें इनकी ही जमीन से बेदखल कर चीन और अपनी तिजोरियां भरी जा सकें। बलूचिस्तान का मुद्दा बार-बार ब्रिटेन से लेकर अमेरिका और यूएन में उठता रहा है। पाकिस्तान लगातार दुनिया की आंखों में इस मुद्दे पर धूल झोंकने की नाकाम कोशिश करता रहा है। संयुक्त राष्ट्र ह्यूमन राइट कमीशन की जेनेवा हो रही बैठक में भी इसका शोर दिखाई दे रहा है।
बुग्ती की हत्या
इन लोगों की मांग को लेकर बलूचों ने वर्षों पहले हथियार उठा लिए थे। इसको उन्होंने बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी का नाम दिया गया था। बलूचों का पाकिस्तान के खिलाफ रोष उनके सबसे बड़े नेता नवाब अकबर शाहबाज खान बुग्ती की हत्या के बाद काफी बढ़ गया। 26 अगस्त 2006 को पाकिस्तान सेना ने उनकी क्वेटा से करीब 150 किमी दूर स्थित कोहलू के पास बेरहमी से हत्या कर दी। इस हत्या के बाद बलूच लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे और कई जगहों हिंसक प्रदर्शन भी हुए। वह बलूचिस्तान के गवर्नर रहने के साथ-साथ कई दूसरे अहम पदों पर भी रह चुके थे। वो बलूचिस्तान को ग्रेटर ऑटोनॉमी बनाने के लिए पूरी उम्र जद्दोजहद करते रहे। यही वजह थी कि वह हमेशा से ही पाकिस्तान सरकार और सेना के भी निशाने पर रहे।
बीएलए आतंकी संगठन घोषित
पाकिस्तान ने 2006 में इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया था। वहीं अमेरिका ने बीएलए को जुलाई में वैश्विक आतंकी संगठन घोषित किया था। अमेरिका के इस फैसले की बीएलए ने जमकर आलोचना की थी और इसको बलूचिस्तान प्रांत में सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रहे अलगाववादी संगठन बीएलए ने इसे अन्यायपूर्ण कदम बताया था। इतना ही नहीं बीएलए के नेता अल्लाह निजर बलूच ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम खुला पत्र लिखकर ये तक पूछ डाला था कि यदि 1776 में जॉर्ज वाशिंगटन को आतंकी करार दे दिया जाता तो क्या आज अमेरिका अस्तित्व में होता। इसके अलावा यूरोपीयन यूनियन ने भी इस संगठन को आतंकी संगठन करार दिया है। इसकी वजह बीएलए द्वारा पाकिस्तान में किए गए कई हमले हैं। इसी वर्ष मई में ग्वादर स्थित एकमात्र फाइव स्टार होटल पर हमले को भी अंजाम दिया था।
ब्रिटेन में रिफ्यूजी हैं बीएलए नेता
एक तरफ जहां अमेरिका और ईयू ने इस संगठन को प्रतिबंधित किया हुआ है वहीं ब्रिटेन ने इसके नेता एच मारी को अपने यहां पर रिफ्यूजी का दर्जा दिया हुआ है। इस वजह से पाकिस्तान काफी नाराज है। पाकिस्तान बार-बार ये आरोप लगाता रहा है कि भारत बलूचिस्तान में धन और हथियार देकर वहां पर अशांति फैला रहा है। हालांकि पाकिस्तान की इस दलील को खुद माची समेत दूसरे देश भी सिरे से खारिज करते आए हैं।
ब्रमदाग खान बुगती
बुग्ती के अलावा ब्रहमदाग खान बुगती भी बलूचों के बड़े नेता हैं। उन्होंने ही बलूचिस्तान से सिंधी, पंजाबी और पश्तून लोगों को बाहर करने का आहृवान किया हुआ है। बीएलए अपने इलाके में चीन की मौजूदगी से काफी नाराज है। इसका मानना है कि पाकिस्तान उनके संसाधनों का इस्तेमाल कर अपनी तिजोरी भर रहा है, लेकिन उन्हें इसका हक नहीं दिया जा रहा है। हालांंकि
जिन्ना का घर
बीएलए को लेकर पाकिस्तान का निशाना बदलता रहा है। कभी उसके निशाने पर बगदाद था तो कभी रूस रहा।इराक पर भी पाकिस्तान इसको लेकर अंगुली उठाता रहा है। आपको बता दें कि बलूचिस्तान प्राकृतिक संपदा से भरा पड़ा है। पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना का घर भी बलूचिस्तान में ही है। जिन्ना ने अपने अंतिम दिन यहीं पर गुजारे थे। हालांकि 2013 में बीएलए के हमले में यह घर लगभग बर्बाद हो चुका है। बीएलए ने ही इस हमले जिम्मेदारी ली थी। इतना ही नहीं यहां हमले के बाद आतंकियों ने इस इमारत पर लगे पाकिस्तान के झंडे को भी हटाकर अपना झंडा यहां लगा दिया था। बाद में सरकार ने इसकी मरम्मत करवाई और 2014 में यह दोबारा खोला गया था।
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