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पाकिस्तान में एक और हिंदू लड़की का जबरन किया गया धर्मांतरण, अपहर्ता ने की शादी

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार की घटनाएं आम हैं। हिंदू सिख व ईसाई समाज की नाबालिग लड़कियों के अपहरण जबरन धमरंतरण व शादी की घटनाएं वहां अकसर होती रहती हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Tue, 23 Jun 2020 11:34 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 07:10 AM (IST)
पाकिस्तान में एक और हिंदू लड़की का जबरन किया गया धर्मांतरण, अपहर्ता ने की शादी
पाकिस्तान में एक और हिंदू लड़की का जबरन किया गया धर्मांतरण, अपहर्ता ने की शादी

सिंध, एएनआइ। अल्पसंख्यक व मानवाधिकार का झूठा राग अलापने वाले पाकिस्तान की स्याह हकीकत एक बार फिर सामने आई है। देश के बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक और नाबालिग हिंदू लड़की का न सिर्फ अपहरण कर लिया, बल्कि उसका जबरन धमरंतरण कराकर अपहर्ता से ही शादी भी करवा दी। पुलिस व जन प्रतिनिधियों की चुप्पी के कारण अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और उन्होंने लड़की पर दबाव बनाकर अपने पक्ष में हलफनामा भी दाखिल करवाया है।

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सिंध के जकोबाबाद निवासी रेशमा के अपहरण व जबरन धमरंतरण के बाद उसकी शादी 18 जून को अपहर्ता वजीर हुसैन से करवा दी गई। आरोप है कि लड़की पर दबाव बनाकर प्राधिकारियों के सामने एक हलफनामा दाखिल करवाया गया है। इसमें लड़की की तरफ से कहा गया है कि वह 19 साल की है और उसने अपनी मर्जी से इस्लाम कुबूला है। हलफनामे के अनुसार रेशमा का नया मुस्लिम नाम बशीरन कर दिया है।

पाकिस्तान में अल्पसंख्कों संग होता है अत्याचार

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार की घटनाएं आम हैं। हिंदू, सिख व ईसाई समाज की नाबालिग लड़कियों के अपहरण, जबरन धमरंतरण व शादी की घटनाएं वहां अकसर होती रहती हैं। पुलिस और यहां तक कि जनप्रतिनिधि भी ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साधे रहते हैं। ये घटनाएं पाकिस्तान की इमरान सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के संबंध में किए जाने वाले दावों की भी पोल खोलती हैं।

पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वहां हर साल कम से कम 1,000 अल्पसंख्यकों की नाबालिग लड़कियों को जबरन मुसलमान बनाया जाता है। जबरन धमरंतरण के लगातार मामले सामने आने के बावजूद पाकिस्तान में अब तक दो बार इससे संबंधित विधेयक को अस्वीकार कर दिया गया है। वर्ष 2016 में विधेयक को खारिज करते हुए सिंध के पूर्व राज्यपाल सईदुज्जमां सिद्दिकी ने कहा था, 'जब हजरत अली नौ साल की उम्र में इस्लाम कुबूल कर सकते हैं तो हिंदू लड़कियां क्यों नहीं।' इस विधेयक में धमरंतरण की न्यूनतम उम्र सीमा 18 साल करने का प्रस्ताव था।


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