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क्‍या ग्‍लोबल वार्मिंग से बच पाएगी धरती ? कितना सफल रहा काप-26, भारत ने क्‍यों जताई चिंता

जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों पर विचार करने और उससे निपटने के लिए एक साझा रणनीति तैयार करने के लिए इस साल ग्लासगो में जुटे दुनिया भर के देश अभी तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए। भारत की क्‍या रही चिंता।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sun, 14 Nov 2021 08:04 PM (IST)Updated: Sun, 14 Nov 2021 08:24 PM (IST)
क्‍या ग्‍लोबल वार्मिंग से बच पाएगी धरती ? कितना सफल रहा काप-26, भारत ने क्‍यों जताई चिंता
क्‍या ग्‍लोबल वार्मिंग से बच पाएगी धरती, कितना सफल रहा काप-26, भारत ने क्‍यों जताई चिंता।

ग्लासगो, एजेंसी। जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों पर विचार करने और उससे निपटने के लिए एक साझा रणनीति तैयार करने के लिए इस साल ग्लासगो में जुटे दुनिया भर के देश अभी तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए। बैठक की समय सीमा बीत जाने के बाद भी विचार मंथन चल रहा है। उम्मीद है कुछ घंटों की माथापच्ची के बाद वार्ताकार ऐसे किसी प्रस्ताव पर सहमत हो सकते हैं, जिसे ग्लोबल वार्मिग से निपटने के लिए प्रयासों को बढ़ावा देने को विश्वसनीय कहा जा सके।

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हालांकि, भारतीय प्रतिनिधि व पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने समझौता मसौदे की भाषा में संतुलन की कमी बताते हुए आशंका जताई कि यह सहमति 'छलावा' साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि देशों से कोयला और जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को लेकर मसौदे में जो भाषा इस्तेमाल की गई वह उचित नहीं है। उन्होंने काप 26 की अध्यक्षता कर ब्रिटिश प्रतिनिधि आलोक शर्मा का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि अध्यक्ष महोदय आपके अथक प्रयासों के बावजूद अगर कोई सहमति बनती भी है तो मुझे डर है कि कहीं वह छलावा साबित न हो।

वार्ता की अध्यक्षता कर रहे ब्रिटिश अधिकारियों ने शुक्रवार की शाम की आधिकारिक समय सीमा के बाद भी जारी कूटनीतिक दांवपेंचों के बीच शनिवार तड़के नया समझौता मसौदा जारी किया। अमेरिकी जलवायु दूत जान केरी और उनके चीनी समकक्ष झी झेंहुआ दोनों ने शुक्रवार देर रात सतर्क आशावाद का संकेत देते हुए कहा कि वार्ता आगे बढ़ रही है। केरी ने कहा कि बातचीत अच्छी रही है लेकिन सभी पार्टियां संतुष्ट नहीं हैं। उल्लेखनीय है व्यापक निर्णय के लिए जो प्रस्ताव बना है उसकी भाषा को लेकर विवाद हो सकता है।

उसमें दुनिया के देशों को कोयला बिजली और अक्षम जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की दिशा में प्रयास में तेजी लाने के लिए कहा गया है। लेकिन इसमें जो नई बात जोड़ी गई है उसमें कहा गया है कि सभी देश भेदभाव रहित संक्रमण के लिए समर्थन की आवश्यकता को पहचानेंगे। यह बात जीवाश्म ईंर्धन उद्योग में काम कर रहे लोगों की वित्तीय मदद के लिए गई जिन्हें काम धंधे बंद करने पड़ेंगे। शुक्रवार को तीन मुद्दे लोगों को नाखुश कर रहे थे। नकद, कोयला और समय। गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय सहायता का प्रश्न एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है।

सम्पन्न राष्ट्र सहमति के अनुरूप उन्हें 2020 तक सालाना 100 अरब अमेरिकी डालर देने में विफल रहे, जिससे वार्ता के दौरान विकासशील देशों में काफी नाराजगी रही।वार्ता की अध्यक्षता कर रहे ब्रिटिश अधिकारी आलोक शर्मा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि ग्लासगो में सभी देश एक महत्वाकांक्षी समझौता करेंगे। सम्मेलन स्थल की ओर आते समय एपी से बातचीत में शर्मा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सहयोगी इस अवसर पर कोई निर्णय लेकर उठेंगे।वहीं कुछ अभियान समूहों ने कहा कि मौजूदा प्रस्ताव पर्याप्त बहत दमदार नहीं थे। आक्सफैम के ट्रेसी कार्टी ने कहा कि यहां ग्लासगो में, दुनिया के सबसे गरीब देशों के हितों के खो जाने का खतरा है। लेकिन हम जिस तरह से चल रहे हैं वह अगले कुछ घंटों में बदल सकता है और बदलना भी चाहिए। वार्ता की मेज पर अभी जो कुछ है वह पर्याप्त नहीं है।

एक अन्य प्रस्ताव में, 2035 तक उत्सर्जन में कमी के लिए के लिए सभी देशों को 2025 तक नए लक्ष्य प्रस्तुत करने को कहा गया है। उन्हें 2030 और 2040 के लिए भी अपने लक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। वे पांच-पांच साल के लिए अपने लक्ष्य तय कर सकते हैं। विकासशील देशों से पहले केवल हर 10 साल में ऐसा करने की उम्मीद की जाती थी।प्रस्तावित समझौते में कहा गया है कि 2015 के पेरिस समझौते के पूर्व औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर कैप करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, देशों को वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से निरंतर कमी करनी होगी। उन्हें 2010 के स्तर के सापेक्ष 2030 तक वैश्विक कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी लानी होगी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया अभी उस लक्ष्य को पूरा करने की राह पर नहीं है, लेकिन दो सप्ताह की वार्ता से पहले और उसके दौरान किए गए विभिन्न वादों ने उन्हें करीब ला दिया है। नवीनतम समझौता मसौदा खतरनाक और अत्यधिक चिंता व्यक्त करता है कि मानव गतिविधियों ने ग्लोबल वार्मिग में लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस वृद्धि की है। यह प्रभाव हर क्षेत्र में पहले से ही महसूस किया जा रहा है।


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