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    Russia Ukraine War Update: पुतिन के इस रणनीति से क्‍यों बेचैन हैं यूरोपीय देश? : यूक्रेन जंग में क्‍या है NATO और अमेरिका की रणनीति

    By Ramesh MishraEdited By:
    Updated: Tue, 19 Jul 2022 11:07 PM (IST)

    NATO vs Russia रूस यूक्रेन जंग में पुतिन की रणनीति से यूरोपीय देशों में बेचैनी है। इसके चलते यूरोपीय देशों में फूट पड़ने की आशंका प्रबल हो गई है। नाटो और अमेरिका की क्‍या है रणनीति। इसके साथ यह जानेंगे कि इस युद्ध की बुनियाद कब पड़ी थी।

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    NATO vs Russia: यूक्रेन जंग में पुतिन के इस कदम से क्‍यों बेचैन हैं यूरोपीय देश। एजेंसी।

    नई दिल्‍ली, जेएनएन। NATO vs Russia: रूस यूक्रेन जंग को करीब डेढ़ सौ दिन पूरे हो गए है। अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर (Russia Ukraine War) हमला किया था। रूस को उम्‍मीद थी कि वह यूक्रेन जंग को थोड़े दिनों में समाप्‍त कर देगा, लेकिन न तो यूक्रेन हार मानता दिख रहा है और न ही रूस पीछे हटता दिख रहा है। 90 लाख से ज्यादा लोग यूक्रेन से जान बचाकर पड़ोसी देशों में शरण ले चुके हैं। इस बीच, गेहूं, क्रूड आयल और गैस सहित कई जरूरी चीजों की आपूर्ति पूरी तरह से प्रभावित हुई है। इस जंग ने कई देशों के रणनीतिक समीकरण को बदल कर रख दिया है। अब यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह जंग कब तक चलेगी। इस जंग में क्‍या है पुतिन की रणनीति। रूसी राष्‍ट्रपति के इस कदम से क्‍यों बेचैन हैं यूरोपीय देश। जंग में नाटो और अमेरिका की क्‍या है रणनीति।

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    1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि दरअसल इस जंग की बुनियाद में नाटो (NATO) है। शीत युद्ध के दिनों में सोवियत संघ के खिलाफ बनाया गया नाटो लगातार अपना दायरा और प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने में जुटा रहा। वर्ष 2005 तक 11 देश नाटो संगठन में शामिल हो चुके थे। वर्ष 2007 में म्यूनिख सिक्योरिटी कांफ्रेंस में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सचेत किया था कि नाटो के इरादे ठीक नहीं है। उस वक्‍त पश्चिमी देशों और अमेरिका ने रूस की बात को नजरअंदाज कर दिया था। वर्ष 2008 में नाटो शिखर सम्मेलन में अमेरिका ने यूक्रेन और जार्जिया के लिए इसकी सदस्‍यता के लिए पक्ष लिया। रूस के पड़ोसी यूक्रेन में पश्चिमी देशों की सक्रियता बढ़ने लगी। वर्ष 2014 में जब यूक्रेन में रूस समर्थक विक्टर यानुकोविच के खिलाफ प्रदर्शन को हवा दी तो रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। उसके समर्थक बागियों ने यूक्रेन के पूर्वी इलाकों को स्वायत्त घोषित कर दिया।

    2- उन्‍होंने कहा कि नाटो विस्‍तार का सिलसिला यहीं नहीं रुका। वर्ष 2014 के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को हथियार और सैन्‍य प्रशिक्षण देना जारी रखा। वर्ष 2020 में तो उसने यूक्रेन को नाटो का विशेष दर्जा प्राप्‍त देश घोषित कर दिया। रूस से सटे ब्लैक सी में ब्रिटेन और अमेरिका के युद्धपोतों का आना-जाना बढ़ गया। उधर, पुतिन के मन में सोवियत संघ वाला दबदबा एक बार फिर कायम करने की जिद है। ऐसे में यह जंग होनी तय थी। पिछले करीब 20 हफ्तों में दक्षिण यूक्रेन में मारियूपोल और लुहांस्क पर रूसी सेना का दबदबा बढ़ा है। इससे ब्लैक सी क्षेत्र में नाटो को जवाब देने में रूस को आसानी होगी। राजधानी कीव तो रूस के कब्जे में नहीं आ सकी है, लेकिन यूक्रेन का पूर्वी और दक्षिणी इलाका उसके नियंत्रण में है। 20 फीसद से ज्यादा यूक्रेन पर रूस का कब्जा हो चुका है। अब पश्चिमी यूक्रेन के ओडेसा बंदरगाह पर रूसी बमबारी हो रही है।

    3- प्रो पंत का कहना है कि यह जंग जल्‍द समाप्‍त होने वाली नहीं है। उन्‍होंने कहा कि पुतिन ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। रूसी राष्‍ट्रपति यह कह चुके हैं कि उनका मकसद जेलेंस्की के यूक्रेन में नव-नाजी ताकतों को खत्म करना है। उन्होंने हाल में कहा था कि युद्ध खत्म करने की कोई तारीख तय करने का कोई तुक नहीं है। इससे यह तय माना जा रहा है कि पुतिन डोनबास तक ही नहीं रुकने वाले। उधर, यूक्रेनी राष्‍ट्रपति जेलेंस्की का कहना है कि रूस के पास इतनी मिसाइलें नहीं हैं, जितनी हमारे लोगों में जीने की चाहत है। हम अपनी हर चीज वापस लेकर रहेंगे। नाटो प्रमुख जेंस स्टोल्टेनबर्ग का कहना है कि यह युद्ध काफी लंबा खिंचने वाला है और हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए। 

    जंग का पश्चिमी देशों पर बड़ा असर

    रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन को यह पता है कि गैस के रूप में इन देशों की कमजोर नस उनके हाथ में है। लिहाजा वह प्रतिबंधों के बावजूद जंग के लिए डटे हुए हैं। उधर, रूस को पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों ने झटका तो दिया है, लेकिन उसके क्रूड आयल की बिक्री पर इसका ज्‍यादा असर नहीं पड़ा है। रूस को अंदाजा है कि प्रतिबंध बढ़ाने को लेकर एक सीमा के बाद पश्चिमी देशों में फूट पड़ सकती है, क्योंकि वह पहले ही संकट में हैं। पुतिन देख रहे हैं कि रूसी क्रूड पर और बंदिशें लगाने के बारे में जी-20 के देशों में सहमति नहीं बन पा रही है। जर्मनी से लेकर इटली तक सबका बुरा हाल है। जर्मनी के हैंबर्ग में तो ठंड के मौसम में हाट वाटर की राशनिंग तक पर विचार होने लगा है। 

    क्‍या है अमेरिका की रणनीति

    प्रो पंत ने कहा कि अमेरिका को युद्ध जल्द खत्म करने में कोई दिलचस्‍प नहीं होगी। अमेरिका जानता है कि इस जंग में रूस कहीं न कहीं कमजोर हो रहा है। इसके अलावा यह जंग अमेरिका की धरती पर नहीं हो रही है। अमेरिका इस कोशिश में है कि जिस तरह अफगानिस्तान में फंसाकर सोवियत संघ को तोड़ दिया गया, उसी तरह यूक्रेन में फंस चुके रूस को घुटनों पर ला दिया जाए। इस जंग से यूरोपीय देशों की चिंता बढ़ी है। यूरोप में महंगाई आसमान पर है। यूरो भी डालर के मुकाबले कमजोर हो रहा है। उन्‍होंने कहा कि यूरोपियन यूनियन का हाल खराब होना नाटो के लिए रणनीतिक रूप से फायदे की चीज है।