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वायरल संक्रमण से बढ़ता है अल्जाइमर, नए शोध में आया सामने

जर्मनी में यूनिवर्सिटी आफ बान के शोधकर्ताओं की अगुआई वाली एक टीम ने पाया कि मस्तिष्क से जुड़ी इन बीमारियोें के लिए जिम्मेदार प्रोटीन एक कोशिका से दूसरे में असामान्य आकार में स्थानांतरित हो जाते हैं। इससे बीमारी पूरे मस्तिष्क में जल्दी ही फैल जाती है।

By Neel RajputEdited By: Published: Thu, 21 Oct 2021 01:13 PM (IST)Updated: Thu, 21 Oct 2021 01:13 PM (IST)
वायरल संक्रमण से बढ़ता है अल्जाइमर, नए शोध में आया सामने
न्यूरोडिजनेरेटिव बीमारियों के कारक प्रोटीन को फैलने में मिलती है मदद

बर्लिन, प्रेट्र। बुढ़ापे में याददाश्त कमजोर पड़ना आम बात है। लेकिन उसके पहले भी ऐसे बहुत से कारक होते हैं, जिससे उसके लक्षण दिखने लगते हैं। एक हालिया शोध में बताया गया है कि कुछ वायरल संक्रमण भी हैं, जो अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसे न्यूरोडिजनेरेटिव रोगों को बढ़ाते हैं। प्रयोगशाला में किया गया यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि कुछ विशिष्ट वायरल मालीक्यूल्स इस प्रकार की दिमागी बीमारियों के लिए हालमार्क माने जाने वाले प्रोटीन को फैलने में मदद करते हैं।

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जर्मनी में यूनिवर्सिटी आफ बान के शोधकर्ताओं की अगुआई वाली एक टीम ने पाया कि मस्तिष्क से जुड़ी इन बीमारियोें के लिए जिम्मेदार प्रोटीन एक कोशिका से दूसरे में असामान्य आकार में स्थानांतरित हो जाते हैं। इससे बीमारी पूरे मस्तिष्क में जल्दी ही फैल जाती है। यही बात अल्जाइमर और पार्किंसंस में भी होती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोशिका से कोशिका के बीच सीधे संपर्क के जरिये इनका संचरण होता है, जो कोशिका के बाहर भी एकत्रित हो जाता हैं या वेसिकल (पुटिका) में पैकेज्ड हो जाता है और यह लिपिड के छोटे-छोटे बुलबुले से ढका होता है, जो कोशिकाओं के बीच संवाद के लिए स्नावित होता है।

यूनिवर्सिटी आफ बान के प्रोफेसर इना वोरबर्ग ने बताया कि इस संचरण का सटीक मैकेनिज्म अभी अज्ञात है। लेकिन इतना अंदाज लगाना तो स्वाभाविक है कि उन मालीक्यूल का आदान-प्रदान कोशिकाओं के सीधे संपर्क और वेसिकल के जरिये होता होगा, जो लिगैंड रिसेप्टर की अंतरक्रिया पर निर्भर होगा। इन दोनों ही दशाओं में कोशिका झिल्लियों का संपर्क और उनके मिल जाने की जरूरत होती है। ऐसा तब होता है, जब कोशिकाओं की सतह पर रिसेप्टर को बांधने के लिए लिगैंड्स मौजूद हों, जिससे बाद में झिल्लियां आपस में मिल जाएं। शोधकर्ताओं ने इस प्रक्रिया को परखने के लिए विभिन्न सेल कल्चर में शृंखलाबद्ध अध्ययन किया। उन्होंने प्रिओन या टाउ प्रोटीन के एक कोशिका से दूसरे में ट्रांसफर की प्रक्रिया की भी पड़ताल की है। पाया कि यह उसी प्रकार था, जैसा कि अल्जाइमर की बीमारी में होता है।

बता दें कि प्रिओन- असामान्य, रोगजनक एजेंट होते हैं, जो संचरित होते हैं और विशिष्ट सामान्य सेलुलर प्रोटीन को असामान्य रूप से प्रेरित करने में सक्षम होते हैं। यह मस्तिष्क में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसका कार्य अभी तक पूरी तरह समझा नहीं जा सका है। जबकि टाउ प्रोटीन का निगेटिव रेगुलेटर होता है। शोधकर्ताओं ने यह देखने के लिए कि वायरल संक्रमण में क्या होता है- कोशिका को वायरल प्रोटीन उत्पादित करने के लिए उद्दीपित किया, जो लक्षित कोशिका और कोशिका झिल्ली के मिल जाने का मार्ग प्रशस्त करता है।

प्रयोग के लिए दो प्रोटीन को चुना गया। इनमें से एक कोरोना संक्रमण के प्रसार के लिए जिम्मेदार सार्स-कोव-2 का स्पाइक प्रोटीन एस था और दूसरा वेसिकुलर स्टोमैटिटिस वायरस का ग्लायकोप्रोटीन वीएसवी-जी था, जो मवेशियों और अन्य पशुओं को संक्रमित करने वाले रोगाणुओं में पाया जाता है। कोशिकाओं में इन वायरल प्रोटीन के रिसेप्टर वीएसवीजी तथा इंसानी एसीई2- स्पाइक प्रोटीन के लिए संग्राहक पोर्ट की तरह काम करते हैं।


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