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योग का दुनिया में फिर बजा डंका, प्राणायाम से ठीक हो सकती है बार-बारबेहोश होने की बीमारी

वासोवागल सिंकोप वाले रोगियों के उपचार के रूप में निर्देशित योग की जांच करने वाला यह पहला रैंडम अध्ययन था। अध्ययन में ऐसे 100 रोगियों को शामिल किया गया जिन्हें पिछले साल कम से कम तीन बार इस समस्या का सामना करना पड़ा।

By Manish PandeyEdited By: Published: Mon, 24 May 2021 07:22 AM (IST)Updated: Mon, 24 May 2021 07:22 AM (IST)
सामान्य उपचार लेने वालों की अपेक्षा योग-प्राणायाम करने वाले प्रतिभागियों को अधिक लाभ हुआ

सोफिया एंटिपोलिस (फ्रांस), एएनआइ। भारतीय योग पद्धित का लोहा एक बार दुनिया ने फिर माना है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि किसी के प्रशिक्षक के निर्देशन में योग से बार-बार बेहोश होने की बीमारी से ठीक हुआ जा सकता है। यह तरीका इस रोग के पारंपरिक उपचार से कहीं ज्यादा कारगर है। इस अध्ययन पर यूरोपियन सोसायटी आफ कार्डियोलाजी के जर्नल ईपी यूरोस्पेस में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए किसी के निर्देशन में योग पद्धति की थेरेपी मानक इलाज से ज्यादा लाभदायक है।

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श्री जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डयोवास्कुलर साइंसेज एंड रिसर्च, बेंगलुरु के प्रोफेसर जयप्रकाश शेंथर ने अध्ययन में पाया कि बार-बार बेहोशी मानसिक तनाव, चिंता, अवसाद और भविष्य को लेकर लगातार भय को जन्म देती है। अप्रत्याशितता के कारण जीवन की गुणवत्ता नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में कुछ देशों में रोगियों को गाड़ी चलाने की अनुमति नहीं मिलती।

उन्होंने बताया कि मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह में कमी के कारण होने वाली बेहोशी यानी 'वैसोवागल सिंकोप' चेतना का एक संक्षिप्त लोप है। यह लंबे समय तक खड़े रहने, भय, दर्द, खून देखने और गर्म, आ‌र्द्र वातावरण से शुरू हो सकता है। यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग आधी सामान्य आबादी को अपने जीवनकाल में एक बार 'सिंकोपल' (बेहोश होने) घटना से रूबरू होना पड़ा।

प्रोफेसर शेंथर ने कहा कि वैसोवागल सिंकोप को रोकने के लिए शरीर में पानी की कमी न होने देना, गर्म भीड़ भरे वातावरण से बचना, मांसपेशियों को तनाव देना और लेटना शामिल है। उन्होंने कहा दुर्भाग्य से, अधिकांश उपायों में मामूली लाभ होता है।

वासोवागल सिंकोप वाले रोगियों के उपचार के रूप में निर्देशित योग की जांच करने वाला यह पहला रैंडम अध्ययन था। अध्ययन में ऐसे 100 रोगियों को शामिल किया गया जिन्हें पिछले साल कम से कम तीन बार इस समस्या का सामना करना पड़ा। अध्ययन के समय ये योग नहीं कर रहे थे।

प्रतिभागियों को दो समूहों में बांटकर एक समूह को प्रतिदिन तीन ग्राम नमक और तरल पदार्थ लेने के साथ बेहोशी के लक्षण दिखने पर मांसपेशियों को अकड़ाने की सलाह दी गई। वहीं दूसरे समूह को इस तरह की कोई सलाह नहीं दी गई। इसकी जगह उन्हें योग प्रशिक्षक की निगरानी में प्रतिदिन 60 मिनट तक योग आसन करवाए गए। उन्हें पांच छह सत्र प्रशिक्षक की देखरेख में करवाए गए उसके बाद उनसे सप्ताह में कम से कम पांच दिन पूरे साल योग व प्राणायाम की सलाह दी गई।

प्रतिभागियों को फालोअप के दौरान बेहोशी के मामलों की संख्या का विवरण रखने के लिए कहा गया। इन लोगों से बेहोशी के कारण इनकी दिनचर्या पर क्या प्रभाव पड़ा इसका भी पता लगाया गया। अध्ययन में शामिल प्रतिभागियों की औसत आयु 33 वर्ष थी। इनमें आधे से अधिक महिलाएं थीं। अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों ने सामान्य उपचार लिया उन्हें 12 महीनों में औसतन 3.8 बार बेहोशी का दौरा पड़ा जबकि योग करने वाले समूह में 12 महीनों में औसतन 1.1 बार ही ही इस स्थिति का सामना करना पड़ा।


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