Move to Jagran APP

ग्लोबल वॉर्मिंग से वैज्ञानिक चिंतित, ठंडे रहने वाले साइबेरिया में दिनोंदिन बढ़ती जा रही गर्मी

आलम ये हो गया है कि साइबेरिया में गर्मी में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है। वहां तापमान 10 से 17 डिग्री सेल्सियस तक रहता था जो अब 38 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 19 Jul 2020 02:40 PM (IST)Updated: Sun, 19 Jul 2020 06:59 PM (IST)
ग्लोबल वॉर्मिंग से वैज्ञानिक चिंतित, ठंडे रहने वाले साइबेरिया में दिनोंदिन बढ़ती जा रही गर्मी
ग्लोबल वॉर्मिंग से वैज्ञानिक चिंतित, ठंडे रहने वाले साइबेरिया में दिनोंदिन बढ़ती जा रही गर्मी

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क/एपी। साइबेरिया दुनिया के सबसे सर्द इलाकों में से एक है। लेकिन इस साल वहां रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी है। गर्मी की यह लहर जलवायु परिवर्तन के मौसम पर पड़ रहे खतरनाक असर को साफ साफ दिखा रही है। आलम ये हो गया है कि साइबेरिया में गर्मी में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है। साइबेरिया में अब तक 600 गुना गर्मी बढ़ गई है। 

loksabha election banner

साल में अधिकतम तापमान रहता था 17, अब पहुंच गया 38 डिग्री सेल्सियस 

एक ताजा शोध में पाया गया है कि ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण साइबेरिया में गर्मी की संभावना कम से कम 600 गुना तक बढ़ गई है। रिसर्चरों की टीम ने जनवरी से जून 2020 तक साइबेरिया के मौसम का डाटा जमा किया। उन्होंने पाया कि इस दौरान एक दिन ऐसा भी था जब तापमान रिकॉर्ड 38 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। साइबेरिया में आमतौर पर साल का अधिकतम तापमान 10 से 17 डिग्री के बीच ही पहुंच पाता है। 

70 मॉडलों का किया इस्तेमाल 

ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, नीदरलैंड्स, जर्मनी और स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने 70 अलग अलग मॉडलों का इस्तेमाल करके पता लगाने की कोशिश की कि अगर कोयला, तेल और गैस जलाने जैसी इंसानी गतिविधियां ना होतीं, तो क्या ग्लोबल वॉर्मिंग का इतना बुरा असर पड़ सकता था। उन्होंने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण साइबेरिया के तापमान में जिस तरह का बदलाव आया है, ऐसा 80,000 सालों में एक बार होता है। इस शोध के प्रमुख लेखक और ब्रिट्रेन के मौसम विभाग के वैज्ञानिक एंड्रयू सियावरेला का कहना है कि ऐसा इंसानी हस्तक्षेप के बिना नहीं हुआ होता। 

रिसर्चरों ने साइबेरिया में साल के पहले छह महीनों में देखा औसत तापमान 

वहीं, ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के एन्वायरनमेंटल चेंज इंस्टीट्यूट के निदेशक फ्रीडेरीके ऑटो का कहना है कि शोधकर्ताओं ने कई इलाकों पर रिसर्च की लेकिन 2020 में साइबेरिया जैसे हाल और कहीं भी देखे नहीं गए। रिसर्चरों ने साइबेरिया में साल के पहले छह महीनों में औसत तापमान पर ध्यान दिया। उन्होंने तापमान सामान्य से 9 डिग्री ज्यादा पाया। इसी तरह उन्होंने जून में रूसी शहर वेरखोयस्क में भी तापमान में वृद्धि देखी। वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवाश्म ईंधन को जलाने से वातावरण में ऐसी गैसें फंसीं, जिन्होंने अतिरिक्त गर्मी फैलाई। इसके अलावा जंगलों की आग, कीटों के प्रकोप और पर्माफ्रॉस्ट (भीषण पाला) ने भी स्थिति खराब की। 

पर्माफ्रॉस्ट के कारण हुआ तेल रिसाव 

पर्माफ्रॉस्ट (यानी भीषण पाला) पड़ने के कारण एक तरफ तेल रिसाव हुए क्योंकि सर्दी में तेल की पाइपें फटीं, तो दूसरी ओर पाले की बर्फ जब पिघलती है, तो उसके नीचे की जमीन अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसें छोड़ने लगती है। इस तरह से यह ग्लोबल वॉर्मिंग को और बढ़ा देता है। शोध की एक अन्य लेखक और रूस की पीपी शिर्शोव इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोलॉजी की ओल्गा जोलीना का कहना है कि यह एक चिंताजनक प्रक्रिया है। 

वैज्ञानिक जगत में इस शोध को बेहद विश्वसनीय बताया जा रहा है। फ्रांस की वैज्ञानिक वैलेरी मेसन डेलमोटे का कहना है कि इस तरह के शोध लोगों और दुनिया के नेताओं को एक मौका देते हैं कि वे बिंदुओं को जोड़ें और मौसम में बदलाव की घटनाओं को जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के साथ जोड़ कर समझ सकें। 

खुद को बदलना होगा या फिर पछताना होगा 

पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के मौसम विज्ञानी डेविड टिटले का कहना है कि यह शोध दिखाता है कि भविष्य का मौसम कितना अलग हुआ करेगा, हमें या तो खुद को बदलना होगा या फिर पछताना होगा। जिस तरह से मौसमों में बदलाव देखा जा रहा है वो आने वाले समय के लिए निश्चित ही चिंता की बात है। पूरी दुनिया में मौसम में बदलाव हो रहा है। बरसात, ठंडक में कमी आ गई है और गर्मी बढ़ती जा रही है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.