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नेपाल पहुंचा टिड्डियों का झुंड, 1,100 हेक्टेयर से अधिक फसलों को पहुंचाया नुकसान

पिछले हफ्ते भारत से नेपाल में प्रवेश करने वाले टिड्डियों के झुंडों ने हिमालयी देश में 1100 हेक्टेयर से अधिक फसलों को नुकसान पहुंचाया है।

By Pooja SinghEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2020 11:29 AM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2020 11:29 AM (IST)
नेपाल पहुंचा टिड्डियों का झुंड, 1,100 हेक्टेयर से अधिक फसलों को पहुंचाया नुकसान

काठमांडू, एएनाइ। भारत के बाद नेपाल में भी टिड्डियों पहुंच गई हैं। पिछले हफ्ते भारत से नेपाल में प्रवेश करने वाले टिड्डियों के झुंडों ने हिमालयी देश में 1,100 हेक्टेयर से अधिक फसलों को नुकसान पहुंचाया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के हवाले से कृषि और पशुधन विकास मंत्रालय के तहत प्लांट क्वारेंटाइन एंड पेस्टिसाइड मैनेजमेंट सेंटर (PQPMC) ने बताया कि टिड्डियों के झुंडों के हमले से 1,118 हेक्टेयर भूमि की फसल क्षति हुई है। 

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पांच जिलों की फसलों को पहुंचाया नुकसान

PQPMC के लोक सूचना केंद्र के समन्वयक राम कृष्ण सुबेदी ने शनिवार को कहा, "हालांकि नुकसान काफी कम है, लेकिन नेपाल में पांच जिलों की फसलों को नुकसान पहुंचा है। PQPMC के लोक सूचना केंद्र के समन्वयक राम कृष्ण सुबेदी ने शनिवार को कहा, "हालांकि नुकसान काफी कम है, लेकिन नेपाल में पांच जिलों की फसलों को नुकसान पहुंचा है।

इन जिलों में पहुंचाया नुकसान

ये झूंड देश के अन्य स्थानों में फसलों को अतिरिक्त नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं, क्योंकि उनमें से अधिकांश अपने मूल झूलों से बिखरे हुए हैं। डांग में 580 हेक्टेयर भूमि में टिड्डों ने फसलों को नुकसान पहुंचाया, इसके बाद प्यूथन में 283 हेक्टेयर में नुकसान हुआ। मकवानपुर, अर्गखांची और पलपा जैसे जिलों में क्रमशः 105, 100 और 50 हेक्टेयर भूमि में फसल की क्षति होती है।

नेपाल के 52 जिलों में देखे गए टिड्डे

PQPMC प्रमुख प्रसाद हमागैन ने बताया कि नेपाल के 52 जिलों में टिड्डे देखे गए, लेकिन उनके अपेक्षाकृत छोटे आकार के कारण ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। यह टिड्डियां लगातार पश्चिम की ओर बढ़ रहीं हैं और वे फसलों की और अधिक नुकसान पहुंचा सकती हैं। 

टिड्डों ने मक्का, चावल के बीज, सब्जियां और सोयाबीन जैसी फसलों पर कथित तौर पर हमला किया है। नेपाल में किसान उन्हें खदेड़ने के लिए शोर और धुएं का इस्तेमाल कर रहे हैं। डक, प्यूथन, रोलपा, रुकुम, सल्यान और सुरखेत जिलों में मौजूद थे, लेकिन वहां बहुत कम नुकसान हुआ है।


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