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लाओस में मिले एक हजार साल पुराने रहस्यमयी पत्थर के जार, भारत में भी मिल चुके हैं ऐसे जार

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह के जार भारत और इंडोनेशिया में भी पहले पाए गए हैं। इनका इस्तेमाल मुख्यत मृतकों को दफनाने के लिए किया जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 21 May 2019 10:57 AM (IST)Updated: Tue, 21 May 2019 10:57 AM (IST)
लाओस में मिले एक हजार साल पुराने रहस्यमयी पत्थर के जार, भारत में भी मिल चुके हैं ऐसे जार
लाओस में मिले एक हजार साल पुराने रहस्यमयी पत्थर के जार, भारत में भी मिल चुके हैं ऐसे जार

मेलबर्न, प्रेट्र। वैज्ञानिकों ने लाओस में 15 ऐसे नए स्थल खोजे हैं, जहां एक हजार साल पुराने रहस्यमयी पत्थर के जार मिले हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह के जार भारत और इंडोनेशिया में भी पहले पाए गए हैं। इनका इस्तेमाल मुख्यत: मृतकों को दफनाने के लिए किया जाता है।

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ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (एएनयू) के शोधकर्ताओं का कहना है कि लाओस में पाए गए जार पुरातत्व विज्ञान के लिए एक रहस्य हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये जार विशेष रूप से मृतकों के शरीर के डिस्पोज करने के लिए उपयोग में लाए जाते थे, लेकिन इतने सारे जार को एक स्थान पर लाने के मूल उद्देश्य के बारे में अभी कुछ पता नहीं चल सका है। नए शोध से पता चलता है कि विश्व में जार का उपयोग पहले के अनुमान से कहीं ज्यादा था।

ये स्थल लाओस की पहाड़ियों की गहराई में जंगलों में हैं। एएनयू के पीएचडी छात्र निकोलस स्कोपाल ने लाओस सरकार के अधिकारियों के साथ मिलकर यहां 137 जारों की पहचान की है। उनका कहना है कि इन नए स्थलों से मिले जारों के माध्यम से यहां की संस्कृति की स्पष्ट तस्वीर बनाने की कोशिश के साथ ही यह समझा जा रहा है कि इन जारों में कैसे शरीर को डिस्पोज किया जाता होगा।

कई टन भार के हैं जार

शोध टीम का सह नेतृत्व करने वाले एएनयू के पुरातत्वविद डगलस ओ रिली ने बताया कि इनमें से कई जारों का भार कई टन तक है। इनमें नक्काशी की गई है। इतने भारी इन जारों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक कैसे ले जाया गया है होगा ये सोचने की बात है। इस दौरान उन्हें कई छोटे जार भी मिले जो देखने में बिल्कुल विशाल जारों की तरह दिखते हैं।

भारत में भी मिल चुके हैं ऐसे जार

शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने भारत के असम में और इंडोनेशिया के सुलावेसी में महापाषाण काल के इसी तरह के जार देखे थे। उन्होंने बताया कि अब इन विषम क्षेत्रों के बीच प्रागैतिहासिक काल में संभावित संपर्कों की जांच कर रहे हैं। लेकिन, एक ही स्थान पर इतने भारी जारों का मिलना शोधकर्ताओं के लिए अध्ययन का विषय बन गया है।

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