जानिए किस देश ने सबसे पहले अपनाया था " T " का फार्मूला, कितना हुआ था फायदा
जर्मनी ने अपने देश में कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए टी फार्मूला अपनाया इसकी बदौलत उनके यहां मरने वालों की संख्या पर अंकुश लग सका।
नई दिल्ली। जिन देशों ने कोरोना वायरस को गंभीरता से लिया और उसके लिए पहले से ही कदम उठा लिए, आज वहां मौतों का आंकड़ा कम है मगर जिन देशों ने इसे हल्के में लिया वो आज उसका परिणाम भुगत रहे हैं। मरने वालों की मीनार दिनोंदिन लंबी होती जा रही है। ये साबित भी हो गया कि अमेरिका, इटली, स्पेन, फ़्रांस और ब्रिटेन जैसे देश बुरी तरह से इसकी चपेट में आ गए है। इन देशों में हालात मुश्किल हैं।
जब कोरोना ने पांव पसारना शुरू किया उसी दौरान जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल का एक बयान आया था जिससे जर्मनी के लोग थोड़े परेशान भी हुए थे। एंगेला ने कहा था कि जर्मनी की 70 फीसदी आबादी यानि लगभग 5 करोड़ 80 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। इसके बाद उन्होंने ख़ुद को क्वारंटीन कर लिया था तो लगा जर्मनी में भी हालात इटली और स्पेन जैसे हो सकते हैं लेकिन एक महीने बाद जहाँ इटली, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन में हर दिन सैकड़ों की संख्या में लोगों की मौत हुई, जर्मनी इन सबसे काफी दूर है।
क्या उठाए कदम
जर्मनी में संक्रमित लोगों की संख्या इटली और जर्मनी के आसपास की है। जर्मनी में संक्रमित लोगों की संख्या 107,000 के आसपास है जबकि ये संख्या इटली में 135,000 और स्पेन में 141,000 है। इन दोनों जगहों पर मरने वालों के आंकड़ें बहुत बड़ा अंतर है। स्पेन में जहाँ 14 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है, वहीं इटली में 17 हजार से ज्यादा लोग कोरोना के कारण मारे गए हैं लेकिन जर्मनी में ये आँकड़ा 2000 के आसपास है। इस हिसाब से देखें तो जर्मनी में कोरोना के कारण मृत्यु दर सिर्फ़ 0.3 प्रतिशत है, जबकि इटली में ये 9 प्रतिशत और ब्रिटेन में 4.6 प्रतिशत है।
चलाई गई टेस्टिंग टैक्सियां
लेकिन इन सबके बावजूद जर्मनी ने शुरू से ही टेस्टिंग को काफी प्राथमिकता दी। जर्मनी के कई शहरों में टेस्टिंग टैक्सियाँ भी चलाईं गई, जो लॉकडाउन के दौर में लोगों के घर-घर जाकर टेस्ट करती हैं। इससे समय पर लोगों को इलाज कराने में आसानी हुई, जिनमें शुरुआत में यूरोप के कई देश चूक गए। जर्मनी में स्वास्थ्य अधिकारियों ने लोगों तक ये संदेश पहुँचाया कि अगर आपको संक्रमण के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो अस्पताल आने की आवश्यकता नहीं। लोगों को सिर्फ अधिकारियों को फोन से सूचित करना होता है और उनकी टेस्टिंग घर पर ही हो जाती है। जर्मनी ने एक सप्ताह में लाख से ज़्यादा लोगों तक की टेस्टिंग की। समय पर टेस्ट करने का फ़ायदा ये हुआ कि लोगों का इलाज भी समय पर हुआ। लोगों को समय से आइसोलेशन में रखा गया और इसके बेहतर नतीजे देखने को मिले।
टेस्टिंग
जर्मनी ने जनवरी के शुरू में ही टेस्ट करने की तैयारी कर ली थी और टेस्ट किट डेवेलप कर लिया था। जर्मनी में कोरोना का पहला मामला फरवरी में आया था, लेकिन उसके पहले ही जर्मनी ने पूरे देश में टेस्ट किट्स की व्यवस्था कर ली थी। इसका नतीजा ये हुआ कि दक्षिण कोरिया की तरह न सिर्फ ज्यादा टेस्टिंग हुई बल्कि उस हिसाब से लोगों को अस्पतालों में भर्ती भी कराया गया। जर्मनी के मुक़ाबले इटली में कोरोना का संक्रमण दो सप्ताह पहले फैला लेकिन मौत के मामले में इटली जर्मनी से काफी आगे पहुंच गया। जर्मनी में शुरुआती मामले ऑस्ट्रिया और इटली के स्की रिजॉर्ट में सामने आए, इसके कारण शुरू में कम उम्र वाले लोग ही इससे प्रभावित हुए।
ट्रेसिंग और ट्रैकिंग
जर्मनी ने टेस्टिंग के साथ-साथ ट्रैकिंग को भी उतनी ही प्राथमिकता दी। यूरोप के कई देश और अमेरिका भी इसमें चूक गया। लेकिन जर्मनी ने दक्षिण कोरिया से ट्रैकिंग के बारे में भी सबक सीखा। जानकार भी कहते हैं कि टेस्टिंग के साथ-साथ ट्रैकिंग में भी सरकारों को उतना ही सख्त रवैया अपनाना चाहिए। शुरू में जर्मनी ने भी इस ओर कम ध्यान दिया, इसलिए संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े लेकिन एक बार जब जर्मनी ने इस पर ध्यान देना शुरू किया, उन्होंने संक्रमित लोगों के संपर्क में आए लोगों को न सिर्फ़ चिन्हित किया, बल्कि उनके इलाज में देरी भी नहीं की। जर्मनी में इसी ट्रैकिंग के कारण बहुत पहले ही स्कूलों को बंद कर दिया गया और बड़ी संख्या में लोगों को आइसोलेशन में रखा गया।
हेल्थ केयर सिस्टम
जर्मनी के अच्छे हेल्थ केयर सिस्टम की भी इस मामले में तारीफ हुई है। जर्मनी ने समय रहते आईसीयू की संख्या बढ़ा ली और बेड्स की संख्या बढ़ाने पर भी ध्यान दिया। जर्मनी ने अपनी क्षमता इतनी बढ़ा ली है कि अब वो इटली, स्पेन और फ्रांस से आ रहे मरीजों का भी इलाज अपने यहाँ कर रहा है। जनवरी में जर्मनी के पास वेंटिलेटर युक्त आईसीयू बेड्स की संख्या 28 हजार थी लेकिन अब ये संख्या बढ़कर 40 हजार हो गई है।
जर्मनी की स्वास्थ्य व्यवस्था की इसलिए भी तारीफ हो रही है क्योंकि यहाँ ऐसी गंभीर बीमारियों के लिए हर 1000 लोगों पर 6 के लिए आईसीयू बेड्स हैं, जबकि फ्रांस में ये औसत 3.1 है, जबकि स्पेन में ये 2.6 है। ब्रिटेन में 1000 लोगों पर सिर्फ 2.1 ऐसे बेड्स हैं। जर्मनी का हेल्थ केयर सिस्टम पूरी तरह फ्री है इसलिए लोगों को और आसानी हुई और लोगों ने आगे आकर संक्रमण के बारे में जानकारी दी।
सरकार को मिला समर्थन, उठाए सख्त कदम
जर्मनी ने समय रहते काफी सख्त कदम उठाए। वो चाहे सीमाएँ बंद करने का फैसला हो या फिर सोशल डिस्टेंसिंग का। मार्च के आखिर में चांसलर एंगेला मर्केल ने घोषणा की कि सार्वजनिक जगहों पर तीन से ज्यादा लोग एक साथ नहीं रह सकते। सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य पाबंदियों को लेकर जनता ने चांसलर एंगेला मर्केल का समर्थन किया। इसी कारण देश में पूर्ण लॉकडाउन न होते हुए भी लोग पाबंदियों का अच्छी तरह पालन करते रहे और ये एक बड़ी वजह है कि जर्मनी में कम लोगों की मौत हुई है।
अब दिल्ली ने भी अपनाया टी फार्मूला
जर्मनी के बाद अब दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी 5 टी का फार्मूला अपनाया है, इसी के तहत वो कोरोना संक्रमण से अपने राज्य के निवासियों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने जर्मनी के 3 टी लेने के बाद अपने दो टी जोड़कर उसे 5 टी बनाया है और अब वो इसी पर फोकस करते हुए काम कर रहे हैं। अधिकारियों को इसी तरह से काम करने के निर्देश दिए गए हैं।