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जानें आखिर क्‍या है सिंगापुर कंवेंशन, भारत समेत दूसरे देश कैसे उठा सकेंगे इसका फायदा

सिंगापुर संधि पर 53 देशों ने अपने हस्‍ताक्षर किए हैं। ये दो या दो से अधिक देशों के बीच कारपोरेट विवाद को सुलझाने का आसान और सुलभ तरीका है। सिंगापुर को उम्‍मीद है कि इससे उसका महत्‍व भी बढ़ जाएगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 04 Oct 2020 03:49 PM (IST)Updated: Sun, 04 Oct 2020 03:49 PM (IST)
जानें आखिर क्‍या है सिंगापुर कंवेंशन, भारत समेत दूसरे देश कैसे उठा सकेंगे इसका फायदा
सिंगापुर संधि बड़े कारपोरेट विवादों को सुलझाने का प्रभावी तरीका है।

नई दिल्ली (पीटीआई)। संयुक्त राष्ट्र की सिंगापुर कन्वेंशन ऑन मिडिएशन के नाम से जानी जाने वाली सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता संधि पर सिंगापुर के विधि मंत्री षणमुगम ने बड़ा बयान दिया है। उन्‍होंने उम्‍मीद जाहिर की है कि इससे विवादों का जल्‍द और बेहतर निपटारा हो सकेगा। ये संधि 14 सितंबर से लागू हुई है। अब तक इस पर 53 देशों ने अपने हस्‍ताक्षर किए हैं। इसका अर्थ ये भी है कि दुनिया के देश इसको मान्‍यता दे रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवादों को आसानी से हल करने में मददगार यह संधि भारत और अन्य देशों में आपसी व्यावसायिक और बड़े कॉरपोरेट विवादों को निपटाने में मध्यस्थता का प्रभावी तरीका प्रदान करती है। इससे भारत की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा मिलने की भी उम्‍मीद है।

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सितंबर में जब ये लागू हुई थी उस वक्‍त भी सिंगापुर के कानून मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा था कि विवादों के निपटाने के लिए प्रत्येक देश की एक घरेलू और खर्चीली प्रक्रिया होती है। इनसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण व्यावसायिक मुद्दे लंबे समय तक विवादों में उलझे रहते हैं। इस संधि से सीमा पार व्यवसाय से जुड़े विवादों के समाधान के लिए सदस्य देशों द्वारा सीधे आवेदन किए जा सकेंगे। संधि के तहत सामंजस्य आधारित और सरल एवं प्रभावी ढांचे से विवाद समाधान में समय और कानूनी लागत की बचत भी होगी।

भारत और अन्य देशों के बीच व्यावसायिक और बड़े कॉरपोरेट विवादों को हल करने के लिए सितंबर में जिस संधि पर भारत ने हस्‍ताक्षर किए हैं उसका नाम सिंगापुर संधि है। यह सिंगापुर के नाम पर संयुक्त राष्ट्र की पहली संधि है। इसे मध्यस्थता के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय समाधान करार संधि भी कहा जाता है। भारत अब दुनिया के उन 53 देशों में शामिल हो गया है जिन्‍होंने इस संधि पर हस्‍ताक्षर किए हैं। इसको लेकर सिंगापुर काफी उत्‍साहित है। वहां के विधि मंत्री षणमुगम का कहना है कि ये विवाद निपटाने का एक प्रभावी तरीका है। उन्‍होंने पीटीआई से बातचीत के दौरान ये भी कहा कि इस नई संधि से भारतीय कंपनियों के साथ-साथ अधिवक्ताओं के लिए सिंगापुर का मूल्य और महत्‍व बढ़ जाएगा।

समाचार एजेंसी पीटीआई से एक इंटरव्‍यू के दौरान षणमुगम ने कहा कि यह संधि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के साथ कंपनियों के लिए भी काफी महत्चपूर्ण है। उन्होंने इस दौरान भारत और सिंगापुर के बीच पुराने संबंधों का भी जिक्र किया। उन्होंने ये भी कहा कि भारतीय अधिवक्ताओं के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो इससे उनका कारोबार बंद नहीं होगा और वे कारोबार करते रहेंगे। वे सिंगापुर में कामकाज कर सकेंगे, जो उनके लिए आकर्षक गंतव्य होगा। कुछ ही देशों ने अभी इस संधि को अनुमोदित किया है। हालांकि अभी तक इन देशों में शामिल नहीं है।

सिंगापुर के मंत्री के मुताबिक ये मध्यस्थता विवाद निपटान का एक प्रभावी तरीका है। यह कारोबारी संबंधों को जारी रखने की अनुमति देता है। उनका कहना था कि अब तक किसी भी एक पक्ष द्वारा शर्तों को पूरी न करने की वजह से इसको प्रभावी तरीके से क्रियान्वित नहीं किया जा सकता था। लेकिन इस संधि के बाद इसे अनुमोदित करने वाले देशों को इसका प्रवर्तन करना होगा। हमारी मंशा ज्यादा से ज्यादा देशों को इसे अनुमोदित करने के लिए प्रोत्साहित करने की है। उनका कहना है कि मध्यस्थता पंचाट से एक कदम पहले की प्रक्रिया है। विवाद सुलझाने के लिए मुकदमेबाजी और पंचाट काफी महंगी प्रक्रियाएं हैं। इनमें समय और धन दोनों का ही नुकसान होता है।


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