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पीएम मोदी के फिलिस्तीन दौरे की तारीख पर सस्पेंस खत्म, जानिए राजनीतिक मायने

पीएम मोदी के फिलिस्तीन दौरे की तारीख को लेकर सस्पेंस खत्म हो चुका है। 10 फरवरी को वो फिलिस्तीन के दौरे पर जाएंगे।

By Lalit RaiEdited By: Published: Thu, 18 Jan 2018 06:40 PM (IST)Updated: Fri, 19 Jan 2018 12:14 PM (IST)
पीएम मोदी के फिलिस्तीन दौरे की तारीख पर सस्पेंस खत्म, जानिए राजनीतिक मायने
पीएम मोदी के फिलिस्तीन दौरे की तारीख पर सस्पेंस खत्म, जानिए राजनीतिक मायने

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । मशहूर अमेरिकी राजनीतिज्ञ हेनरी किसिंजर ने एक बार कहा था कि कूटनीति में न तो कोई कभी स्थाई दोस्त होता है न ही कभी कोई स्थाई दुश्मन होता है। अगर कुछ स्थाई होता है तो वो सिर्फ अपने अपने हित होते हैं। पश्चिम एशिया में खास तौर इजरायल और फिलिस्तीन के साथ भारतीय संबंधों के लिए ये विचार प्रासंगिक दिखाई देता है। दरअसल आम तौर पर ये धारणा रही है कि भारत की विदेश नीति इजरायल की तुलना में अरब देशों और फिलिस्तीन के प्रति ज्यादा झुकी होती थी। 

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जुलाई 2017 में पीएम मोदी की इजरायली यात्रा से यें संदेश जाने लगा कि फिलिस्तीन के प्रति भारत के रुख में बदलाव हो रहा है जो भारतीय हित के लिए उचित नहीं है। लेकिन इन सबके बीच ये खबर आई कि पीएम मोदी फिलिस्तीन का भी दौरा करेंगे। फिलिस्तीन दौरे की तारीख को लेकर जो सस्पेंस बना हुआ था अब उस पर विराम लग चुका है। पीएम मोदी 10 फरवरी को फिलिस्तीन जाएंगे।ऐसा करने वाले वह भारत के पहले प्रधानमंत्री होंगे। तारीख का ये ऐलान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू भारत के दौरे पर हैं। 

भारत-इजरायल रिश्तों को मिली मजबूती
भारत आए इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के दौरे से भारत और इजरायल के रिश्ते को एक नई मजबूती मिली है। प्रधानमंत्री मोदी जॉरडन की राजधानी अम्मान से हेलीकॉप्टर के जरिए रामल्ला जाएंगे।येरुशलम से कुछ ही दूरी पर स्थित रामल्ला फिलिस्तीन की वास्तविक प्रशासनिक राजधानी है। भारत और फिलिस्तीन के अधिकारियों के बीच इस यात्रा के संबंध में कई दिनों से बातचीत चल रही थी। फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास पिछले साल मई में भारत दौरे पर आए थे. भारत और फिलिस्तीन इस दौरे की चर्चा बहुत समय से कर रहे थे और आखिरकार इस दौरे की घोषणा तब हुई  प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे को ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि यह दौरा इस बात की गलतफहमी को दूर करेगा कि मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत ने फिलिस्तीन को लेकर अपनी नीति में कुछ बदलाव लाए हैं। पिछले साल जुलाई में जब पीएम मोदी इजरायल गए थे तब वह फिलिस्तीन नहीं गए थे जिस पर काफी निराशा जताई गई थी। कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि यह कदम भारत की पूर्व में अपनाई गई नीति से ठीक उलट थी। इससे पहले यह परंपरा रही है कि भारतीय राजनेता एक साथ दोनों पश्चिम एशियाई मुल्कों का दौरा करते रहे हैं।

क्या होता है de-hyphenation
भारत द्वारा इजरायल और फिलिस्तीन को लेकर अपनाई गई इस नई नीति को कूटनीतिक एक्सपर्ट डी हाइफनेशन (de-hyphenation) नाम देते हैं।अमेरिका के भारत और पाकिस्तान से रखे गए कूटनीतिक रिश्तों को इसके उदाहरण के तौर पर दिया जाता है। इसके तहत बुश और बाद में ओबामा शासन ने यह फैसला किया कि वह भारत और पाकिस्तान की आपसी तल्खी को नजरअंदाज करते हुए दोनों मुल्कों से रिश्तों को अलग-अलग तरजीह देगा।


फिलिस्तीन के सेंटर फॉर पॉलिसी ऐंड सर्वे रिसर्च के डायरेक्टर खलिल शिकाकी ने पिछले साल फिलिस्तीन गए भारत के नेताओं और पत्रकारों के समूह को कहा था कि भारत 1947 से चली आ रही अपनी पॉलिसी से दूर हो रहा है। पीएम मोदी सुरक्षा और पश्चिमी फिलिस्तीन में ज्यादा दिलचस्पी लेते दिखते हैं। हाल ही में भारत ने यरुशलम मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के विरोध में वोट दिया था। दरअसल अमेरिका ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता दी थी, जिसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध हो रहा था।

भारत की व्यवहारिक विदेश नीति
हमारी व्यवहारिक विदेश नीति में एक तरफ विरोधों के बावजूद हम ईरान और सऊदी अरब दोनों के दोस्त हैं।अमेरिका और रूस के साथ भी हमारी दोस्ती है। इसके अलावा चीन,जापान और वियतनाम हमारे दोस्त हैं। इन सभी देशों में अलग अलग स्तरों पर दोस्ती या दुश्मनी हो सकती है। लेकिन ये सभी देश हमारे लिए दोस्त की ही तरह हैं। इजरायल के साथ जब संबंधों को एक नई दिशा देने की पहल हुई तो सवाल उठने लगा कि क्या भारत अपनी पश्चिम एशिया की नीति में किसी तरह की बदलाव ला रहा है। भारत पहले ही साफ कर चुका है कि वो फिलिस्तीन की सरकार और वहां की जनता का मुद्दों के आधार पर समर्थन करता था और आगे भी उसकी वही नीति जारी रहेगी। संयुक्त राष्ट्र संघ या दुनिया के अलग अलग मंचों पर पिछले तीन वर्षों में भारत, फिलिस्तीन का समर्थन करता रहा है और ये आगे भी जारी रहेगा।

फिलिस्तीन, इजरायल और भारत
फिलिस्तीन की हमास और इजरायल के बीच तनातनी जगजाहिर रही है। एक छोटे से विवाद की वजह से हमास की तरफ से मिसाइल हमले की बारिश होती थी। ये बात अलग है कि अपनी तकनीक की वजह से इजरायल हमेशा भारी रहा। दरअसल ये सवाल उठता रहा है कि स्थानीय स्तर भी अगर कुछ होता है तो इजरायल की तरफ से जबरदस्त बल प्रयोग होता है। लेकिन हकीकत में लड़ाई में या किसी संघर्ष में कम या ज्यादा बल प्रयोग का कोई अर्थ नहीं होता है। पश्चिम एशिया में जब भी फिलिस्तीन और इजरायल के बीच विवाद हुआ ये आमतौर पर देखा गया है कि सारा दोष इजरायल पर मढ़ दिया जाता था। लेकिन भारत अब गुण दोष के आधार पर पश्चिम एशिया में अपनी नीति को तय करेगा। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में कहा था कि इजरायल-फिलिस्तीन विवाद में भारत सरकार किसी का पक्ष नहीं लेगी।
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