नॉर्थ पोल पर दुनिया के सबसे बड़े मिशन के शोधकर्ता लौट रहे, हो सकते हैं चौंकानेवाले खुलासे
शोधकर्ता अपने साथ मरते हुए आर्कटिक महासागर से जुड़ी कई चौंकाने वाली जानकारी अपने साथ ला रहे हैं। ऐसे प्रमाण मिले हैं जिनसे यह साबित होता है कि सिर्फ दशकों में आर्कटिक महासागर की स्थिति यह हो जाएगी कि गर्मियों में बर्फ देखने को नहीं मिलेगी।
बर्लिन, एएफपी। उत्तरी ध्रुव (North Pole) पर दुनिया के सबसे बड़े मिशन के शोधकर्ता सोमवार को लौटे रहे हैं। ये शोधकर्ता अपने साथ मरते हुए आर्कटिक महासागर से जुड़ी कई चौंकाने वाली जानकारी अपने साथ ला रहे हैं। बताया जा रहा है कि शोधकर्ताओं को ऐसे प्रमाण मिले हैं, जिनसे यह साबित होता है कि सिर्फ दशकों में आर्कटिक महासागर की स्थिति यह हो जाएगी कि गर्मियों में बर्फ देखने को नहीं मिलेगी। नॉर्थ पोल की खोज जेम्स क्लार्क रॉस ने सबसे पहले 1831 में कनाटा के नुनावुट में बूथिया पेनिनसुला पर की थी।
जर्मन अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट के पोलरस्टर्न जहाज 389 दिनों आर्कटिक में नॉर्थ पोल पर रिसर्च करने के बाद ब्रेमरहेवन के बंदरगाह पर लौटने के लिए तैयार है। इस जहाज में सवार वैज्ञानिकों को क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र करने की अनुमति दी गई थी। मिशन लीडर मार्कस रेक्स के अनुसार, 20 देशों के कई सौ वैज्ञानिकों की टीम ने इस क्षेत्र में बर्फ पर ग्लोबल वार्मिंग के नाटकीय प्रभावों का बेहद बारीकी से अध्ययन किया है। रेक्स ने बताया, 'हमने देखा कि आर्कटिक महासागर कैसे मर रहा है। हमने इस प्रक्रिया को अपनी खिड़कियों के ठीक बाहर देखा और तब भी महसूस किया जब हम बर्फ पर चले।'
बता दें कि आर्कटिक पर दुनियाभर के वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं। दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग का असर आर्कटिक इलाके में साफ दिख रहा है। यहां ग्लोबल वार्मिंग का इतना असर है कि बर्फ की चट्टानें पिघलती जा रही हैं और यहां के तापमान में भी बढ़ोतरी हो रही है। पहले जहां इस हिमालयी क्षेत्र में काफी ठंडक होती थी, वहीं अब बारिश और बर्फ से खुला इलाका अधिक हो गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे अधिक असर यहां दिख रहा है जो काफी खतरनाक है। इसके पूरे विश्व पर गंभीर परिणाम होंगे। समुद्र का जलस्तर बढ़ जाएगा, जिससे तटीय क्षेत्रों के लोगों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।