Global Warming Study: दुनिया के 75 फीसदी देशों के लिए फायदेमंद होगी ये संधि
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के आधार पर कहा समुद्री जीवों को लुप्त होने से बचाने के लिए पेरिस जलवायु समझौते का लक्ष्य हासिल करना जरूरी है। इससे मछुआरों का व्यापार भी बच सकता है।
टोरंटो, प्रेट्र। वर्तमान में ग्लोबल वार्मिग पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इसका असर इंसानों पर ही नहीं, बल्कि धरती पर रहने वाले लगभग सभी जीवों पर पड़ रहा है। खासकर जलीय जीवों पर। इस वजह से कई मछलियों व कई जलीय जीवों की प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं। वैज्ञानिक इसे भविष्य के लिए बड़ा खतरा मान रहे हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग से न केवल पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है, बल्कि मछलियों की संख्या घटने से मछुआरों की आमदनी पर भी असर पड़ रहा है। इस चिंताजनक स्थिति से निपटने के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ जरूरी जानकारियां उपलब्ध कराई हैं। एक अध्ययन के आधार पर उन्होंने सुझाव दिया है कि यदि मछलियों को मरने से बचाना है तो पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य को हासिल करना जरूरी है। इसी से मछुआरों की आमदनी को कम होने से बचाया जा सकता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिग पर पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर विश्व में लाखों टन मछलियों को बचाया जा सकता है। साथ ही अरबों रुपये के कारोबार पर पड़ने वाली बाधा को भी रोका जा सकता है।
क्या है पेरिस समझौता?
साइंस एडवांसेज नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि पारिस्थितिकी तंत्र को बिगड़ने से बचाने के लिए पेरिस समझौते के तहत धरती के तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं, जिस तेजी से तापमान बढ़ रहा है, उससे इसके 3.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की आशंका जताई गई है।
समझौते से यह होगा लाभ
कनाडा स्थित ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के राशिद सुमैला ने कहा, समझौते का लक्ष्य हासिल करने से वैश्विक मत्स्य राजस्व में सालाना 4.6 अरब अमेरिकी डॉलर, सी फूड कर्मियों की आय में 3.7 अरब अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है और घरेलू सी फूड खर्च में 5.4 अरब अमेरिकी डॉलर का खर्च कम हो सकता है। सुमैला के मुताबिक, सबसे अधिक लाभ पाने वाले विकासशील देशों में किरिबाती, मालदीव और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं। ग्लोबल वार्मिग के कारण इन देशों का तापमान सबसे अधिक बढ़ने की आशंका है।
साथ ही ये देश खाद्य सुरक्षा, आय और रोजगार के लिए अधिकतर मछली पालन पर ही निर्भर हैं। ऐसे में पेरिस समझौते का लक्ष्य हासिल करने का फायदा भी इन्हीं देशों को मिलेगा। इंस्टीट्यूट फॉर द ओशियन एंड फिशरीज के पीएचडी स्टूडेंट ट्रेविस टाइ ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के पेरिस समझौते से यूरोप को छोड़कर सभी महाद्वीपों को लाभ होगा।
कई देशों को होगा लाभ
ग्लोबल वार्मिंग पर किए गए अध्ययन के आधार पर शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि पेरिस समझौते का लक्ष्य हासिल करने से समुंद्र किनारे के 75 फीसद देशों को लाभ पहुंचेगा। उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा लाभान्वित विकासशील देश होंगे।