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ग्लोबल वार्मिग बढ़ा सकती है शिशुओं की मृत्यु दर, मानसिक विकास भी हो सकता है प्रभावित

ग्लोबल वार्मिग (Global warming) के बढ़ते खतरों के बारे में वैज्ञानिक वैज्ञानिकों ने आगाह करते हुए कहा है कि इससे शिशुओं की मृत्यु दर में इजाफा हो सकता है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 08:18 AM (IST)Updated: Wed, 04 Dec 2019 08:58 AM (IST)
ग्लोबल वार्मिग बढ़ा सकती है शिशुओं की मृत्यु दर, मानसिक विकास भी हो सकता है प्रभावित
ग्लोबल वार्मिग बढ़ा सकती है शिशुओं की मृत्यु दर, मानसिक विकास भी हो सकता है प्रभावित

पेरिस, एएफपी। ग्लोबल वार्मिग के बढ़ते खतरों के बारे में वैज्ञानिक समय-समय पर आगाह करते रहते हैं। अब एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने गर्मी और प्रसव के बीच एक संबंध का पता लगाया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इसके कारण अब बच्चे समय से पहले पैदा हो रहे हैं। ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में शिशु मृत्युदर बढ़ने की आशंका है। साथ ही इससे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास भी प्रभावित हो सकता है।

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कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 1969-1988 के बीच गर्मी के मौसम में 25 हजार बच्चे दो सप्ताह पहले पैदा हुए थे। इसका मतलब है कि ये बच्चे लगभग एक लाख 50 हजार गर्भकालीन दिनों में मिलने वाले पोषण से वंचित रह गए। नेचर रिसर्च नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के लेखकों ने कहा है कि समय से पहले प्रसव होने को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया-लॉस एंजिलिस के इंस्टीट्यूट ऑफ द इंवायरमेंटल एंड सस्टेनेबलिटी की एलन र्बेका ने कहा, ‘बच्चों के समय से पूर्व पैदा होने पर इस बात की संभावना ज्यादा रहती है कि उनका विकास अवरुद्ध हो जाए और इसका प्रभाव उनकी युवावस्था पर भी पड़ता है। लेकिन इस संबंध में मजबूत दावों के लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है।'

उन्होंने कहा, ‘गर्म मौसम से ऑक्सीटोसिन के स्तर में वृद्धि हो जाती है। यह एक ऐसा हार्मोन है जो प्रसव के साथ-साथ डिलीवरी को भी नियंत्रित करता है और गर्मी के कारण हृदय संबंधी तनाव भी बढ़ता है।' शोधकर्ताओं ने कहा कि इन दोनों के बीच का संबंध समय से पूर्व प्रसव के लिए जिम्मेदार हो सकता है।

इस अध्ययन के लिए र्बेका और उनके एक सहयोगी ने 20 साल की अवधि में अमेरिका में जन्मे 5.6 लाख लोगों के नमूने एकत्र किए। इस दौरान उन्होंने पाया कि शुरुआती दिनों में जन्म दर में पांच फीसद की वृद्धि हुई थी, जहां तापमान 90 डिग्री फारेनहाइट (32.2 सेल्सियस) से ऊपर था, यानी प्रत्येक 200 बच्चों में से एक का जन्म समय से पूर्व हुआ था।

र्बेका ने कहा यदि जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी साल-दर-साल बढ़ती रही तो बच्चों के समय से पूर्व पैदा होने की दर बढ़ती रहेगी। यदि ऐसा हुआ तो यह निश्चित है कि उनका विकास प्रभावित होगा और ऐसे में उनकी समय मौत का खतरा बना रहेगा।

वैज्ञानिकों ने कहा कि यह निश्चित नहीं है कि पारा चढ़ने के साथ-साथ प्रसव जल्दी क्यों हो जाता है। लेकिन समय से पहले प्रसव होने को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हम अनुमान लगाते हैं कि शायद इस सदी के अंत तक सौ लोगों में एक का जन्म समय से पहले होगा पर जिस गति से गर्मी बढ़ रही है उससे यह आंकड़ा बहुत छोटा मालूम होता है।' 


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