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जानें- क्‍यों अंधेर में डूब रहे जर्मनी के शहर और प्रमुख इमारतें, मजबूरी में लिया फैसला कैसे बन रहा फायदे का सौदा

जर्मनी में ऊर्जा संकट किसी से छिपा नहींं रहा है। रूस की गैस के बंद या उसमें लगातार कटौती से जर्मनी समेत पूरे यूरोप के सामने ये संकट खड़ा हुआ है। ऐसे में जर्मनी ने कड़ा फैसला भी ले लिया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 22 Sep 2022 06:19 PM (IST)Updated: Thu, 22 Sep 2022 06:19 PM (IST)
अंधेरे के आगोश में हैं जर्मनी के कई शहर और इमारतें

नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था जर्मनी पर ऊर्जा संकट साफतौर पर देखा जा सकता है। एनर्जी क्राइसिस की वजह से रात में चकाचौंध रहने वाले जर्मनी के शहर अब अंधेरे में डूबने लगे हैं। भले ही ये सुनकर आपको हैरानी हो, लेकिन ये एक हकीकत है। सरकार के सख्‍त आदेश के बाद 1 सितंबर से ही जर्मनी के कई शहर रात में अंधेरे की चादर ओढ़ लेते हैं। बत्तियां बुझा दी जाती हैं। ये नया आदेश अगले साल 1 मार्च तक लागू रहेगा। इस दौरान कोई भी अपने घरों को 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म नहीं कर सकेगा।  

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मजबूरी में लिया फैसला बन रहा फायदे का सौदा 

ऊर्जा संकट के बीच एक तरफ जहां सरकार को मजबूरी में ये फैसला लेना पड़ा है, वहीं दूसरी तरफ इसका फायदा भी दिखाई दे रहा है। इससे न केवल ऊर्जा की बचत हो रही है, बल्कि अब लोगों को आकाश में पहले की अपेक्षा अधिक तारों भरा आसमान दिखाई देने लगा है, जो मन को सुकून दे रहा है। इसका असर कहीं न कहीं जलवायु और जैव विविधता पर भी पड़ रहा है।

कई इमारतों की लाइट्स होती हैं बंद 

सरकार के आदेश के बाद जर्मनी की प्रमुख इमारतों, स्मारकों और सिटी हॉल, संग्रहालय और लाइब्रेरी की लाइटों को बंद कर दिया जाता है। इसके अलावा बर्लिन का विक्ट्री कॉलम और बर्लिन कैथेड्रल समेत करीब 200 प्रमुख जगहों की बत्‍ती शाम होने के बाद बंद ही रहती है। सरकार ने इसको लेकर एक अध्‍यादेश तक जारी किया है। इसमें साफतौर पर सार्वजनिक इमारतों के बाहर भी लाइटिंग करना बैन कर दिया गया है। इतना ही नहीं, नियॉन साइनबोर्ड के लिए भी केवल कुछ ही घंटों तक बिजली का इस्‍तेमाल करने का आदेश दिया जा चुका है। जो शहर इस दायरे से बाहर हैं उनमे भी स्‍ट्रीट लाइट्स काफी देर से जलाई और समय से पहले बंद की जा रही हैं। इसका एक फायदा वायु प्रदूषण में कमी का भी हो रहा है।

3 अरब डालर की सालाना बचत

आपको हैरानी हो सकती है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक इस तरह से तीन अरब डॉलर की बचत कर साल की सकती है। इससे न केवल वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है, बल्कि बिजली के उपकरणों से निकलने वाली खतरनाक किरणों से जलवायु परिवर्तन को होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है। एक आंकड़ा बता या है क‍ि दुनिया के करीब करीब 80 फीसद लोग प्रकाश प्रदूषित आसमान के नीचे रहते हैं। इसमें सबसे अधिक यूरोप और अमेरिका के लोग हैं। इनका आंकड़ा ही करीब 99 फीसद है।

क्‍या कहती हैं रिसर्च 

कई एशियाई देश भी पूरी रात चकाचौंध रहते हैं। जैसे सिंगापुर। हाल ही में हुई एक रिसर्च बताती है कि आर्टिफिशियल लाइट्स का न सिर्फ हमारी आंखों पर, बल्कि हमारे शरीर पर भी काफी प्रतिकूल असर पड़ता है। ये कहीं न कहीं नींद न आने और मोटापे में भी सहायक साबित होती है। वर्ष 2020 में अमेरिका में हुई एक रिसर्च के मुताबिक आर्टिफिशियल लाइट्स में अधिक समय तह रहने वाले बच्चों और किशोरों को नींद कम आती है। आगे चलकर उनमें और कई सारी दिक्‍कतें हो जाती हैं।


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