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बरसती मिसाइलों से पांच लाख मौतें, क्‍या है इस मुल्‍क में खास, क्‍यों है यहां कब्‍जे की होड़..?

यहां फिजा में बारूद घुल चुकी है। लाखों बेगुनाह मारे जा चुके हैं। दुनिया की महाशक्तियों के बीच यहां कब्‍जे की होड़ है। आइये बतातें हैं इस मुल्‍क के बर्बादी की पूरी दास्‍तां...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 21 Aug 2019 08:27 AM (IST)Updated: Wed, 21 Aug 2019 04:34 PM (IST)
बरसती मिसाइलों से पांच लाख मौतें, क्‍या है इस मुल्‍क में खास, क्‍यों है यहां कब्‍जे की होड़..?

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। टैंकों से लगातार हो रही फायरिंग, खंडहर में तब्‍दील हुए मकान और उठता हुआ धुएं का गुबार... यह दुनिया की पुरानी सभ्‍यताओं में शुमार उस देश की तस्‍वीरें हैं जो आतंकवाद की मार से बर्बादी के कगार पर है। नाम है सीरिया जो बीते आठ वर्षों से बमों, मिसाइलों और केमिकल हमलों की मार झेल रहा है। मुल्‍क की आबादी महज एक करोड़ 94 लाख है लेकिन इसमें से पांच लाख से ज्‍यादा लोग बीते आठ साल से जारी जंग में मारे जा चुके हैं। सीरिया की राजधानी दमिश्क दुनिया का सबसे पुराना शहर है लेकिन आसमान से बरसते बमों ने इसे खंडहरों के शहर में तब्‍दील कर दिया है। आइये बताते हैं कि सीरिया में इन दिनों क्‍या चल रहा है और इसके पीछे अमेरिका, रूस समेत दुनिया के बड़े मुल्‍कों के हित कैसे जुड़े हुए हैं।

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एक हफ्ते में 100 से ज्‍यादा मौतें
सीरिया के इदलिब प्रांत में सेना और आतंकवादियों के बीच लड़ाई अपने चरम पर पहुंच चुकी है। इस लड़ाई में पिछले एक हफ्ते में 100 से ज्‍यादा लोग मारे गए हैं जबकि सैकड़ों लोग जख्‍मी हुए हैं। मारे जाने वालों में 26 बच्चे भी शामिल हैं। सीरिया की सेना यहां जमीन पर कार्रवाई के साथ ही आसमान से भी लगातार बमबारी कर रही है। इस भीषण लड़ाई ने विद्रोहियों की कमर तोड़ दी है। सीरिया के इदलीब प्रांत के खान शायखुन के प्रमुख गढ़ से विद्रोही समूहों को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट के हवाले से बताया कि ऐसा सीरियाई सेना द्वारा घेरे लिए जाने के डर से हुआ है।

सेना ने मजबूत की पकड़
सीरियाई सेना खान शायखुन में पिछले हफ्ते से ही अल कायदा से जुड़े नुसरा फ्रंट से लड़ाई में जुटी थी। सेना ने शहर पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। यही नहीं उसने इदलीब के नजदीक मुख्य दमिश्क-अलेप्पो राजमार्ग पर भी कब्‍जा कर लिया है। लंदन स्थित वॉचडाग ने कहा है कि खान शायखुन के अलावा सेना ने मडाया और तलअल अरजाही समेत कई प्रमुख शहरों से भी विद्रोहियों को बाहर खदेड़ दिया है। इसमें अल ततमनेह, काफर, जिटा और मोरेक शामिल हैं, जो हामा प्रांत के उत्तरी ग्रामीण इलाकों के तरफ स्थित हैं। यहां बता देना जरूरी है कि सीरिया के इदलिब और हमा प्रांत आतंकी समूहों के प्रमुख गढ़ माने जाते हैं।

अधर में छोड़कर वापसी कर रहा अमेरिका
अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप सीरिया से अपने दो हजार सैनिकों को वापस बुला लेने की बात कह चुके हैं, जिसका आतंकी संगठन स्‍लामिक स्‍टेट बेसब्री से इंतजार कर रहा है। क्‍योंकि ऐसी स्थिति में इस्‍लामिक विद्रोहियों से मोर्चा संभालने के लिए सेना को केवल कुर्दिश लड़ाकों का ही सहारा होगा। यह भी माना जा रहा है कि सीरिया में आईएस सरगना अबू बकर अल बगदादी के कई टॉप कमांडर भूमिगत तौर पर मौजूद हैं। युद्ध में आईएस की कमर तो करीब करीब टूट चुकी है लेकिन अभी भी वह नाबालिग बच्‍चों को आत्‍मघाती हमलावरों के तौर पर इस्‍तेमाल करके सेना को चोट पहुंचा रहा है। इससे इस बात की आशंका है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद सीरिया का हाल भी कहीं अफगानिस्‍तान के जैसा ही न हो जाए।

जीतकर भी हारी जंग
हालांकि सच्‍चाई यह है कि तमाम शहरों को जीत कर भी सीरिया जंग हार चुका है क्‍योंकि जिन शहरों को आतंकियों के कब्‍जे से मुक्‍त कराए जाने के दावे किए जा रहे हैं, असल में वो शहर मलबे और कब्रिस्‍तान में तब्‍दील हो चुके हैं। इस लड़ाई में जिन्‍दा बचे लोगों को यकीन नहीं हो रहा है कि यह वही सीरिया है जो पूरी दुनिया में अपनी खूबसूरती और प्राचीन विरासत के लिए जाना जाता था। दमिश्‍क, अलेप्‍पो, रक्‍का और होम्‍स सीरिया के सबसे प्रभावित शहरों में शामिल हैं। रक्‍का में तबाही का मंजर सिहरन पैदा करता है। यहा दो लाख 20 हजार की आबादी में से 20 हजार लोग ही बचे हैं। आठ साल से जारी गृहयुद्ध के कारण सीरिया में 61 लाख से ज्‍यादा लोगों को अपने ही देश में विस्‍थापित होना पड़ा है जबकि 56 लाख लोग मुल्‍क से पलायन कर चुके हैं।

बड़े देशों की लड़ाई में पिस रहा सीरिया
असल में सीरिया दुनिया का ऐसा युद्धक्षेत्र बन गया है जहां हर बड़ा देश अपने स्तर पर किसी न किसी संगठन का समर्थन कर रहा है। अमेरिका आईएस के खात्‍मे के नाम पर कुर्दिश लड़ाकों के एक संगठन वाईपीजी का समर्थन कर रहा है। वाईपीजी वह संगठन है जो सीरियाई युद्ध के मैदान में अमेरिका की ओर से लड़ रहा है। इस संगठन के जरिये अमेरिका अपनी मौजूदगी मध्य पूर्व में बनाए रखना चाहता है। मध्य पूर्व में सीरिया ही एक मुल्क है जिसकी वजह से इस क्षेत्र में रूस अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकता है, इसलिए वह बशर अल असद की सरकार का समर्थन कर रहा है। तुर्की सीरियाई सरकार के विपक्षी खेमे के समर्थन में है जो बशर अल असद सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए लड़ रहें है। वहीं आईएस इस्‍लामिक राष्‍ट्र कायम करने के मकसद से मैदान में है।

क्‍या तेल को लेकर है असल लड़ाई
बशर अल असद समर्थित सेना अभी भी देश के समूचे तेल कुओं को अपने कब्‍जे में नहीं ले पाई है। सरकार यदि जंग जीत भी जाती है तो 60 से 70 फीसदी हिस्सा असद सरकार के नियंत्रण में होगा। बाकी हिस्से का नियंत्रण या तो इस्लामिक स्टेट या वाईपीजी जैसे संगठनों के पास होगा। इस वजह से वाईपीजी और तुर्की की सेनाओं के बीच टकराव थमने वाला नहीं है। इजराइल के अपने हित हैं। उसने सन 1967 में छह दिनों की जंग के बाद सीरिया के सीमावर्ती इलाके गोलन हाइट्स पर कब्जा कर लिया था। सीरिया इस पर आज भी अपना दावा करता है और संयुक्‍त राष्‍ट्र ने भी इजरायल के इस कब्जे को मान्यता नहीं दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस विवाद में आग में घी डालने का काम किया है। उन्‍होंने इस क्षेत्र पर इस्राइल के कब्जे को आधिकारिक मान्यता देने से जुड़ी घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इन सबके बीच पिस रहे हैं सीरिया के आम बेगुनाह लोग... 

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