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नागोर्नो-काराबाख में नहीं दिख रहे शांति के आसार, दोनों इलाकों का शांत रहना असंभव

बीते शानिवार को दोनों देशों के बीच युद्ध खत्म करने पर सहमति बनी थी मगर 48 घंटे बीतने के साथ ही फिर दोनों देश एक दूसरे पर बमबारी करने लगे। ये भी कहा जाने लगा है कि ये दोनों इलाके एक साथ नहीं रह सकते हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Wed, 14 Oct 2020 03:16 PM (IST)Updated: Thu, 15 Oct 2020 12:29 PM (IST)
अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच हो रहे युद्ध में तहस नहस हुआ मकान। (फाइल फोटो)

येरेवॉन, न्यूयॉर्क टाइम्स न्यूज सर्विस। अर्मैनिया और अजरबैजान के बीच चल रहे युद्ध के खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं। एक बात ये भी कही जा रही है कि ये दोनों इलाके एक साथ कभी नहीं रह सकते हैं। नागोर्नो-काराबाख इलाके में कई दिनों से युद्ध जारी है। बीते शानिवार को दोनों देशों के बीच युद्ध खत्म करने पर सहमति बनी थी मगर 48 घंटे बीतने के साथ ही फिर दोनों देश एक दूसरे पर बमबारी करने लगे। ये भी कहा जाने लगा है कि ये दोनों इलाके एक साथ नहीं रह सकते हैं। इस युद्ध के दौरान अब तक 600 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। 

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क्या है नागोर्नो-काराबाख का इतिहास 

नागोर्नो-काराबाख 4,400 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ एक बड़ा इलाका है। इस इलाके में आर्मीनियाई ईसाई और मुस्लिम तुर्क रहते हैं। ये इलाका अजरबैजान के बीच आता है। बताया जाता है कि सोवियत संघ के अस्तित्व के दौरान ही अजरबैजान के भीतर का यह एरिया एक स्वायत्त (Autonomous Area) बन गया था।  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस इलाके को अजरबैजान के हिस्से के तौर पर ही जाना जाता है लेकिन यहां अधिकतर आबादी आर्मीनियाई रहती है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया। उनके इस हरकत को अजरबैजान ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच कुछ समय के अंतराल पर अक्सर संघर्ष होते रहते हैं। 

अजरबैजान के हिस्से कैसे आया नागोर्नो-काराबाख का इलाका 

आर्मेनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। आजादी के समय भी दोनों देशों में सीमा विवाद के चलते कोई खास मित्रता नहीं थी। पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद इन दोनों देशों में से एक तीसरा हिस्सा Transcaucasian Federation अलग हो गया। जिसे अभी जार्जिया के रूप में जाना जाता है। 1922 में ये तीनों देश सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। इस दौरान रूस के महान नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मेनिया को दे दिया। एक बात ये भी कही जाती है कि जोसेफ स्टालिन ने आर्मेनिया को खुश करने के लिए नागोर्नो-काराबाख का इलाका उनको सौंपा था। 

1980 से पहले तक दोनों देश थे एक साथ 

साल 1980 तक अर्मेनिया और अजरबैजान दोनों देश एक दूसरे के साथ थे। मगर 1980 में नागोर्नो-कराबाख नामक विवादित पर्वतीय क्षेत्र में संघर्ष के बाद से दूरियां बढ़नी शुरू हुई। उसके बाद दंगे हुए, लोग इलाका छोड़कर जाने लगे। दशकों से जारी हिंसा अब तक यहां लाखों लोगों को घाव दे चुके हैं क्योंकि अजरबैजान के ग्रामीण इलाकों में तंज और ग्रे पत्थर के खंडहर अजरबैजान के गांवों में अभी भी बिखरे हुए हैं। 

अजरबैजान ने बढ़ाया हमला 

पिछले दो हफ्तों में ड्रोन हमलों और तोपखाने की बमबारी से कई इलाके खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। बीते सप्ताह के अंत में मॉस्को में तय हुआ कि दोनों देश संघर्ष विराम कायम करेंगे मगर वो विफल रही है। अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने आक्रामक हमले को और बढ़ा दिया है। अजरबैजान ने जोर देकर कहा कि 1990 के दशक में विजय प्राप्त की गई आर्मेनिया की जमीन पर कब्जा करने के लिए लड़ने के लिए तैयार है। जिस जगह पर दोनों देशों के बीच संघर्ष हो रहा है उसे दक्षिणी काकेशस क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।

5 लाख अजरबैजानी हो चुके निष्कासित 

जानकारी के अनुसार अब तक अजरबैजान से लगभग 500,000 अजरबैजानियों को निष्कासित कर दिया गया। ये वो अजरबैजानी है जो अक्सर हिंसक क्षेत्र में आ जाते थे और 200,000 से अधिक को आर्मेनिया से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया गया था। अजरबैजान और अर्मेनियाई-नियंत्रित क्षेत्र में अपना घर खो चुके अजरबैजान की आबादी का लगभग 10% हैं। तंग आवास छोड़ने और गांव के जीवन में लौटने की उनकी इच्छा अजरबैजान में एक शक्तिशाली राजनीतिक शक्ति रही है। 


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