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सब कुछ निगल जाएगी ग्‍लोबल वर्मिंग, अंटार्कटिका से विलुप्‍त हो सकते हैं एम्परर पेंगुइन

वैज्ञानिकों ने चेताया है कि लगातार बढ़ती गर्मी इस सदी के अंत तक ‘एम्परर पेंगुइन’ के विलुप्त होने का कारण बन सकती है। एम्परर पेंगुइन वर्ष 2100 तक 86 फीसद विलुप्त हो सकते हैं।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 10 Nov 2019 08:52 AM (IST)Updated: Sun, 10 Nov 2019 08:59 AM (IST)
सब कुछ निगल जाएगी ग्‍लोबल वर्मिंग, अंटार्कटिका से विलुप्‍त हो सकते हैं एम्परर पेंगुइन
सब कुछ निगल जाएगी ग्‍लोबल वर्मिंग, अंटार्कटिका से विलुप्‍त हो सकते हैं एम्परर पेंगुइन

बोस्टन, पीटीआइ। लगातार बढ़ती गर्मी इस सदी के अंत तक ‘एम्परर पेंगुइन’ के विलुप्त होने का कारण बन सकती है। एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चिंता जताते हुए कहा कि अंटार्कटिका में पाई जाने वाली पक्षियों की इस प्रजाति के लिए जलवायु परिवर्तन बेहद खतरनाक सिद्ध हो सकता है। करंट बायोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि यदि गर्मी लगातार बढ़ती रही और वर्तमान दर से अंटार्कटिका की बर्फ पिघलती रही तो एम्परर प्रजाति के पेंगुइन वर्ष 2100 तक 86 फीसद विलुप्त हो सकते हैं।

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कम हो जाएगी एम्परर पेंगुइन की आबादी

अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने कहा, एम्परर पेंगुइन अपनी सभी प्रजातियों में सबसे लंबा और भारी पक्षी होता है। जीवनयापन के लिए ये समुद्र पर निर्भर रहते हैं। आराम करने के लिए ये पक्षी समुद्री बर्फ के टुकड़ों का उपयोग करते हैं। शोधकर्ताओं की इस टीम में अमेरिका के वुड्स होल ओशियनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन (डब्ल्यूएचओआइ) के शोधार्थी भी शामिल थे। अध्‍ययन में पाया गया है कि अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने की स्थिति में पहुंचने के बाद इसकी आबादी बढ़ने की संभावना बहुत कम हो जाएगी।

कहां और कब पिघलेगी बर्फ

इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने दो कंप्यूटर मॉडलों का प्रयोग किया। जिसमें पहला- ग्लोबल क्लाइमेट मॉडल अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक रिसर्च (एनसीएआर) ने बनाया है, जो यह अनुमान लगाता है कि अलग-अलग जलवायु परिदृश्यों पर कहां और कब बर्फ पिघलेगी। जबकि दूसरा, पेंगुइन पॉपुलेशन मॉडल था, जो यह बताता है कि बर्फ के पिघलने पर इसकी कॉलोनी और रहने के तरीकों में क्या-क्या बदलाव आ सकते हैं।

गर्मी बढ़ने से बढ़ा खतरा

अध्ययन के मुताबिक, पेंगुइन विशिष्ट परिस्थितियों में विशेष तरीके से बर्फ पर अपनी कॉलोनियों का निर्माण करते हैं। इसके लिए जरूरी है कि बर्फ के टुकड़े समुद्र के नजदीक ही हों ताकि वे अपने बच्चों के लिए समय पर भोजन उपलब्ध करा सकें। अध्ययन में कहा गया है कि गर्मी बढ़ने से इनके बर्फ पिघल जाएगी और इनकी आवास नष्ट हो जाएंगे।

प्रभावित होता है जीवनचक्र

डब्ल्यूएचओआइ के एक पारिस्थितिकीविज्ञानी और इस अध्ययन के सह-लेखक स्टेफनी जेनॉरियर ने कहा, ‘पेंगुइन मॉडल के आंकड़े बताते हैं कि समुद्री बर्फ के पिघलने से एम्परर पेंगुइन का जीवन चक्र और मृत्यु दर प्रभावित होती है।’ उन्होंने कहा, यदि ग्लोबल वार्मिग को कम करने के लिए समय रहते प्रयास नहीं किए गए तो आने वाले समय में अन्य जीवों पर भी इसका असर देखने को मिलेगा।

सिकुड़ रही है पेंगुइन की कॉलोनी

इससे पहले हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दावा किया था बीते लगभग 37 वर्षो में एम्परर पेंगुइन की दुनिया की सबसे बड़ी कॉलोनी का आकार 88 फीसद तक सिकुड़ गया है। बता दें कि दक्षिणी महासागर द्वीप ’आल ऑक्स कोचंस’ वर्ष 1960 से एम्परर पेंगुइन की दुनिया की सबसे बड़ी कॉलोनी है। यहां पेंगुइन की इस प्रजाति की संख्या दुनिया में सबसे अधिक पाई जाती है। 


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