Coronavirus: जर्मनी पर भी पड़ी मार, देश का हर पांचवां बच्चा गरीबी का शिकार
कोरोना संकट ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। ऐसे में जर्मनी का हर पांचवां बच्चा गरीबी में पलने बढ़ने पर मजबूर है। लॉकडाउन की वजह से यहां के हालात पर भी असर पड़ा है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क/एएफपी। कोरोनावायरस ने दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है। कई संपन्न देशों के आर्थिक हालात खराब हो गए हैं तो कई देश जो विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे उनके भी पहिए थम से गए हैं। कोरोना ने दुनिया भर के देशों में आमजन के साथ-साथ आर्थिक हालात पर भी बुरा प्रभाव डाला है। इसका असर बच्चों के भविष्य पर भी पड़ा है।
देश में 28 लाख बच्चे गरीबी में बिताएंगे जीवन
जर्मनी के बेर्टल्समन फाउंडेशन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश में 28 लाख बच्चे अपना जीवन गरीबी में बिता रहे हैं। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि सालों से बच्चों की गरीबी का मुद्दा जर्मनी के लिए सबसे बड़ी सामाजिक चुनौतियों में से एक रहा है। साल 2014 से इस मामले में बहुत ही कम सुधार देखा गया था। इस रिपोर्ट के अनुसार 18 साल से कम उम्र के कुल 21.3 फीसदी बच्चे फिलहाल गरीबी का शिकार हैं।
रिपोर्ट के अनुसार सोशल सिक्यूरिटी पाने वाले परिवारों में 24 फीसदी बच्चों के पास कंप्यूटर और इंटरनेट नहीं था। ड्रेगर का आरोप है कि सरकार इस समस्या से निपटने के लिए कुछ भी नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि बच्चों को गरीबी से बाहर निकालना प्राथमिकता होनी चाहिए, मगर ऐसा किया नहीं गया। जब कोरोना के दौर में बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं तो उनके लिए कुछ और व्यवस्था की जानी चाहिए थी मगर ऐसा कुछ नहीं किया गया। अब उनका जीवन और भी दुख में व्यतीत होगा। वो बेसिक शिक्षा से भी महरूम होंगे।
लॉकडाउन में नहीं शुरू कर पाए पढ़ाई लिखाई
एक वर्ग वो भी है जिसको अप्रैल में शिक्षा शुरू करनी थी मगर कोरोना वायरस और उसके कारण लॉकडाउन ने उनको भी रोक दिया है, अब वो कब स्कूल जा पाएंगे और कब शिक्षा शुरू कर पाएंगे ये भी कोई नहीं कह सकता है। ऐसे बच्चों के भविष्य पर असर पड़ना तय है। इस शोध के लिए बच्चों की जिंदगी से जुड़े कई कारकों पर ध्यान दिया गया उसके बाद रिपोर्ट तैयार की गई। जिन परिवारों के पास आय का कोई जरिया नहीं है और जो सरकार द्वारा दी जाने वाली सोशल सिक्यूरिटी पर निर्भर हैं।
गरीबी में रह रहे दो तिहाई बच्चे इससे बाहर नहीं आ पाते
इसके अलावा ऐसे परिवारों पर भी ध्यान दिया गया जिनकी आमदनी देश की औसत आमदनी की 60 प्रतिशत या उससे कम है। जर्मनी में उसे गरीबी रेखा माना जाता है और औसत राष्ट्रीय आय के 60 प्रतिशत के करीब रहने वाले लोगों के गरीबी रेखा के नीचे जाने का खतरा लगातार बना रहता है। बैर्टल्समन फाउंडेशन की रिपोर्ट ने पाया कि गरीबी में रह रहे दो तिहाई बच्चे कभी इससे बाहर नहीं आ पाते हैं। भारत की तुलना में जर्मनी में गरीबी पहचानने के पैमाने अलग हैं।
यहां उन लोगों को गरीब माना गया है जिनके पास ना गाड़ी है और ना ही घर में इस्तेमाल होने वाला जरूरी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और न ही अन्य जरूरी चीजें। ये लोग बाकियों की तरह छुट्टी बिताने के लिए कहीं घूमने नहीं जा पाते हैं और ना ही सिनेमा इत्यादि का खर्च उठा सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों में गरीबी एक ऐसी समस्या है जिसे सुलझाया नहीं जा पा रहा है और जिसका बच्चों के भविष्य पर, उनके कल्याण और शिक्षा पर बुरा असर हो रहा है। रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि कोरोना संकट इस स्थिति को बदतर कर सकता है।
पार्ट टाइम करते हैं नौकरियां
दरअसल गरीबी में बच्चों को पाल रहे ज्यादातर लोग वे हैं जो किसी तरह की पार्ट टाइम नौकरियां करते हैं। कोरोना संकट के दौरान ऐसे लोगों की आमदनी पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। बेर्टल्समन फाउंडेशन के अध्यक्ष यॉर्ग ड्रेगर का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान सरकार द्वारा दी जाने वाली कई सेवाएं भी लोगों तक नहीं पहुंच सकी। ऐसे में गरीबी में जी रहे इन बच्चों पर काफी असर पड़ा। इन बच्चों के लिए घर पर रह कर पढ़ाई करना भी मुश्किल था क्योंकि स्कूल ऑनलाइन क्लास चला रहे थे और इन बच्चों के परिवारों के पास ऑनलाइन पढ़ाई के सभी जरूरी साधन नहीं थे।