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Hambantota Port: श्रीलंका के हम्बनटोटा पोर्ट पर शोध के बहाने रणनीति देखने पहुंचा चीनी पोत बना भारत की चिंता

भारत को आशंका है कि चीन इस हम्बनटोटा पोर्ट का इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों के लिए कर सकता है। भारत को यह चिंता तब से है जब हम्बनटोटा पोर्ट को श्रीलंका ने कर्ज नहीं चुका पाने के बदले 99 साल के लिए गिरवी रख दिया था।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 10 Aug 2022 09:14 PM (IST)Updated: Wed, 10 Aug 2022 09:42 PM (IST)
Hambantota Port: श्रीलंका के हम्बनटोटा पोर्ट पर शोध के बहाने रणनीति देखने पहुंचा चीनी पोत बना भारत की चिंता
श्रीलंकाई हम्बनटोटा पोर्ट पर चीन का दखल, शोध के बहाने रणनीति का जायजा लेने निकला चीनी पोत। एजेंसी।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। China and Hambantota Port: श्रीलंका के हम्बनटोटा पोर्ट Hambantota Port को लेकर एक बार फ‍िर भारत-श्रीलंका और चीन के बीच मतभेद बढ़ गया है। चीनी रिसर्च पोत यूआन वांग 5 के हम्‍बनटोटा पोर्ट पर आने को लेकर भारत की आपत्ति को चीन ने खारिज कर दिया है। उधर, आर्थिक रूप से तंग चल रही श्रीलंका सरकार भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने का काम कर रही है। आइए, जानते हैं क‍ि आखिर पूरा मामला क्‍या है। भारत के खिलाफ चीन की बड़ी साजिश क्‍या है।

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1- भारत को आशंका है कि चीन इस हम्बनटोटा पोर्ट Hambantota Port का इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों के लिए कर सकता है। भारत को यह चिंता तब से है, जब हम्बनटोटा पोर्ट को श्रीलंका ने कर्ज नहीं चुका पाने के बदले 99 साल के लिए गिरवी रख दिया था। बता दें कि 1.5 अरब डालर का हम्बनटोटा पोर्ट एशिया और यूरोप के मुख्य शिपिंग मार्ग के पास है। श्रीलंका के लिए चीन सबसे बड़े कर्जदाता देशों में से एक है। चीन ने श्रीलंका में भारत की मौजूदगी कम करने के लिए रोड, रेल और एयरपोर्ट में भारी निवेश किया है।

2- श्रीलंका अभी आर्थिक संकट में फंसा है। वह चीन से चार अरब डालर की मदद चाह रहा है। इस बाबत दोनों देशों के बीच वार्ता भी चल रही है। श्रीलंका चीन को नाराज नहीं करना चाहता है। दूसरी, ओर वह भारत के नजदीक भी रहना चाहता है। भारत ने श्रीलंका को 3.5 अरब डालर की मदद की है। श्रीलंका, चीन और भारत के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में जुटा है। हालांकि, चीन के लिए यह काम इतना आसान नहीं है।

3- भारत की चिंता यह है कि शोध के नाम पर चीन यहां सामरिक रूप से अपने को मजबूत कर रहा है। यूआन वांग 5 पोत चीन की स्पेस ट्रेकिंग शिप है। इसका इस्तेमाल सैटेलाइट निगरानी के अलावा राकेट और इंटरकान्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल लान्चिंग में किया जाता है। श्रीलंका के रनिल विक्रमसिंघ के राष्ट्रपति बनने से पहले चीनी पोत को हम्बनटोटा आने की अनुमति दी गई थी।

4- दरअसल, श्रीलंका ने भारत की आपत्ति के बाद चीन की सरकार से अपने पोत भेजने की योजना को टालने के लिए कहा था। श्रीलंका ने यह कदम तब उठाया जब चीनी रिसर्च पोत हम्बनटोटा के लिए रवाना हो चुका है और अभी रास्ते में है। रिफिनिटिव के शिपिंग डेटा के मुताबिक यह पोत 11 अगस्त को हम्बनटोटा पहुंचेगा। भारत की आपत्ति पर पहले श्रीलंका ने कहा था कि चीनी पोत केवल ईंधन भराने के लिए हम्बनटोटा पोर्ट पर रुकेगा।

चीन की कुटिल कूटनीति

1- उधर, इस मामले में चीन का कहना है कि हिन्द महासागर में ट्रांसपोर्टेशन हब है। वैज्ञानिक शोध से जुड़े कई देशों के पोत श्रीलंका में ईंधन भरवाने जाते हैं। इसमें चीन भी शामिल है। चीन हमेशा से नियम के मुताबिक समुद्र में मुक्त आवाजाही का समर्थन करता रहा है। हम तटीय देशों के क्षेत्राधिकार का सम्मान करते हैं। पानी के भीतर वैज्ञानिक शोध की गतिविधियां भी चीन नियमों के तहत ही करता है।

2- श्रीलंका में चीन के राजदूत वांग वेनबिन ने कहा कि श्रीलंका एक संप्रभु राष्‍ट्र है। श्रीलंका के पास अधिकार है कि वह दूसरे देशों के साथ संबंध विकसित करे। दो देशों के बीच सामान्य सहयोग उनकी अपनी पसंद होती है। दोनों देशों के अपने-अपने हित होते हैं और यह किसी तीसरे देश को लक्ष्‍य करने के लिए नहीं होता है। कोई देश कथित सुरक्षा चिंता का हवाला देकर श्रीलंका पर दबाव डाले।

3- वांग ने कहा कि श्रीलंका अभी राजनीतिक और आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। ऐसे में श्रीलंका के आंतरिक मामलों और दूसरे देशों के साथ संबंधों में हस्तक्षेप से स्थिति और खराब होगी। यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी सिद्धांत के विपरीत है। वांग ने कहा कि चीन का समंदर में शोध पूरी तरह से तार्किक है। यह कोई चोरी-छिपे नहीं है। चीन और श्रीलंका के बीच सामान्य सहयोग को बाधित करने की कोशिश बंद होनी चाहिए।


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