चे ग्वेरा : एक जिद्दी व ईमानदार कॉमरेड, जिसकी कूटनीति से अमेरिका हो गया था हैरान
आज ही के दिन 1928 को चे ग्वेरा (Che Guevara) का जन्म हुआ था। वह चे ग्वेरा ही था जिसकी कूटनीति ने अमेरिका के हुक्मरानों को हैरत में डाल दिया था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। वह बचपन से ही बड़ा जिद्दी था, हौसला ऐसा कि मुश्किलें मौके में तब्दील हो जाती थीं। 14 जून, 1928 को अर्जेंटीना के रोसारियो में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे इस बालक का नाम था अर्नेस्तो चे ग्वेरा (Che Guevara), लेकिन चाहने वाले उसे 'चे' के नाम से बुलाते थे। 'चे' शब्द का अर्थ, अपना या अत्यंत घनिष्ट होता है। पिता आइरिश मूल के थे जबकि मां स्पेन के प्रतिष्ठित घराने की थीं। जन्म के दूसरे साल ही 'चे' को दमा हो गया जिसके बाद, मौत से लुका छिपी का खेल चला... लेकिन इस दिलेर बालक ने अपने जीवट के दम पर दमे को खुद पर हावी नहीं होने दिया। ऐसा लगता है कि छापामार युद्ध का प्रशिक्षण मानो इसी 'खेल' से मिला हो।
गरीबी और दुर्दशा के खिलाफ संघर्ष
मेडिसिन की पढ़ाई करने के बाद चे ग्वेरा चाहते तो अर्जेटीना की राजधानी ब्यूनस एयर्स के कॉलेज में बतौर डॉक्टर आराम की जिंदगी बसर कर सकते थे। लेकिन, अपने आस पास लोगों की गरीबी और शोषण को देखकर मार्क्सवादी क्रांति का रास्ता चुना। दरअसल, उन्होंने अपनी नोर्टन 500 सीसी मोटरसाइकिल पर दक्षिण अमेरिकी देशों की लंबी यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने लोगों की गरीबी और दुर्दशा को काफी करीब से देखा था। उन्हें यकीन होने लगा कि दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप की समस्याओं के निदान के लिए सशस्त्र आंदोलन ही एकमात्र रास्ता है।
महज 100 लड़ाकों के दम पर क्यूबा को दिलाई आजादी
डॉक्टर से क्रांतिकारी बने चे ग्वेरा को अपनी मौत के 52 साल बाद भी क्यूबा के लोगों के बीच जीवित हैं। इसकी इकलौती वजह यह है कि उन्होंने क्यूबा को तानाशाही से आजाद कराया था। चे ग्वेरा ने फिदेल के साथ मिलकर महज 100 गुरिल्ला लड़ाकों की फौज की बदौलत क्यूबा से तानाशाह बतिस्ता के शासन को उखाड़ फेंका था। इससे अमेरिका को बड़ा झटका लगा था। बता दें कि तानाशाह बतिस्ता के शासन पीछे सीआईए का हाथ था। साल 1955 में यानी 27 साल की उम्र में चे ग्वेरा की पहली मुलाकात फिदेल कास्त्रो से मैक्सिको में तब हुई थी वे वहां अपने छोटे भाई राउल के साथ गौरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग लेने के लिए गए थे।
सैकड़ों को बिना केस चलाए ही दे दी थी फांसी
क्यूबा में वर्ष 1959 की क्रांति के बाद फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में कम्युनिस्ट सरकार बनी। फिदेल ने चे ग्वेरा को जेल मंत्री बनाया। इस दौरान चे ग्वेरा का एक नया चेहरा देखने को मिला। उन्होंने कास्त्रो के मिशन के दौरान पकड़े गए सैकड़ों आरोपियों को बिना केस चलाए ही फांसी पर लटकवा दिया। इस कदम को लेकर उनकी आलोचना भी होती रही है। बावजूद इसके युवाओं में चे ग्वेरा की लोकप्रियता आज भी कायम है। चाहे अमेरिका हो या भारत युवाओं के बीच चे ग्वेरा की तस्वीर वाली टीशर्ट आज भी यूथ की पसंद है।
... और तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर थी दुनिया
साल 1959 के विद्रोह के बाद अमेरिका ने क्यूबा से अपने तमाम कूटनीतिक रिश्ते तोड़कर उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके बाद क्यूबा ने सोवियत संघ की ओर हाथ बढ़ाया। साल 1962 में सोवियत संघ ने अपने मिसाइल क्यूबा भेजे जो अमेरिका के खिलाफ तैनात किए जाने थे। क्यूबा की इस चाल से अमेरिका हैरान था। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने कड़ा रुख अपनाने की बात कही, आखिरकार सोवियत संघ को अपना कदम वापस लेना पड़ा। यह संकट 13 दिन तक चला जिसके कारण दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी नजर आई थी। विद्वान इस संकट के पीछे चे ग्वेरा की कूटनीति को मानते हैं।
सत्ता की चमक दमक भी नहीं बांध पाई...
चे ग्वेरा 33 साल की उम्र में क्यूबा का उद्योग मंत्री बनाए गए लेकिन बाद में दक्षिण अमेरिका में क्रांति के मकसद से यह पद छोड़कर फिर जंगलों का रुख कर लिया। 37 साल की उम्र में क्यूबा के सबसे ताकतवर युवा चे ग्वेरा ने कांगो में विद्रोहियों को गुरिल्ला लड़ाई का प्रशिक्षण दिया। इसके बाद वह बोलीविया चले गए जहां उन्होंने विद्रोहियों को ट्रेनिंग देनी शुरू की। इस दौरान अमेरिका की खुफिया एजेंसियां उनके पीछे पड़ी रहीं। आखिरकार, 9 अक्टूबर, 1967 अमेरिकी खु़फिया एजेंटों और बोलीविया की सेना की मदद से चे को पकड़कर गोली मार दी गई। आज उनकी मौत के 52 साल बाद भी उन्हें युवाओं के जेहन से नहीं निकाला जा सका है। विशेषज्ञ इसके पीछे चे ग्वेरा की ईमानदारी और गरीबों के हक की लड़ाई को मानते हैं।
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