पाकिस्तान की बलूचिस्तान में मानवाधिकार हनन की दास्तां, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
पाकिस्तान के उदय के 72 साल बाद भी वहां के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान को सबसे तनावग्रस्त इलाका माना जाता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकार हनन का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंच पर चाहे जितना उठाता रहे, लेकिन यह सच है कि उसकी सेना बलूचिस्तान में जुल्म करने का हर रिकॉर्ड तोड़ रही है। पाकिस्तान के उदय के 72 साल बाद भी वहां के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान को सबसे तनावग्रस्त इलाका माना जाता है। आर्थिक और सामाजिक पैमानों पर बलूचिस्तान पाकिस्तान के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है। पाक सेना पर सालों से आजादी की मांग कर रहे बलोच लोगों को गायब करने और उनकी गुपचुप तरह से हत्या करने के आरोप लगते रहे हैं।
पाक सेना के अत्याचार
बलोच आंदोलन को पाक सेना ने हमेशा ताकत से कुचलने की कोशिश की है। 2006 को जनरल परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में बलोच आंदोलन के नेता नवाब अकबर बुग्ती की सेना ने हत्या कर दी थी। तब से ले कर अब तक सेना पर बलोच अभियान के लिए लड़ रहे लोगों को गायब करने और उनकी गुपचुप हत्या के कई आरोप लगे हैं। लोगों को उठा लेना और फिर उनकी लाशें मिलना वहां आम बात है।
जबरन कराया विलय
अधिकतर बलोच मानते हैं कि जिस तहस से उन्हें पाकिस्तान में मिलाया गया वह गैरकानूनी था। जब अंग्रेज गए तो बलोचों ने अपनी आजादी घोषित कर दी और पाकिस्तान ने ये बात कुबूल भी कर ली। लेकिन बाद में वो इस बात से मुकर गए। बलूचिस्तान के संविधान में संसद के दो सदनों का प्रावधान था। कलात के खान (बलूच के पूर्व शासकों के शीर्षक होते थे।) ने उन दोनों सदनों पर ये फैसला छोड़ दिया कि उन्हें क्या करना चाहिए। दोनों सदनों ने इस बात को नामंज़ूर किया कि वो पाकिस्तान के साथ अपने देश का विलय करेंगे। इसके बाद मार्च 1948 में वहां पाकिस्तान की सेना आई और खान का अपहरण कर कराची ले आई। वहां उन पर दबाव डाल कर पाकिस्तान के साथ विलय पर उनके दस्तखत कराए गए।
अपनों पर गिराए बम
1974 में जनरल टिक्का खां के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना ने मिराज और एफ-86 युद्धक विमानों से बलूचिस्तान के इलाकों पर बम गिराए। यहां तक कि ईरान के शाह ने अपने कोबरा हेलिकॉप्टर भेज कर बलोच आंदोलनकारियों के इलाकों पर बमबारी कराई। उन्होंने अंधाधुंध हवाई ताकत का इस्तेमाल करके बलूचिस्तान के बच्चों, बूढ़ों और लड़ाकों को मारा।
आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन
सत्तर के दशक में पाकिस्तान की जीडीपी में बलूचिस्तान की भागीदारी 4.9 फीसद थी, जो साल 2000 में गिर कर सिर्फ तीन फीसद रह गई। बलोच लोग शिक्षा की दृष्टि से बहुत पिछड़े हैं। पाकिस्तान के सार्वजनिक जीवन में उनकी भागीदारी बहुत कम है। वहां संसाधन तो बहुत हैं, लेकिन साथ ही सूखे की बहुत बड़ी समस्या है। वहां के सुई इलाके से जो गैस निकली है है, वो पाकिस्तान के घरों को तो फायदा पहुंचा रही है, लेकिन बलूचिस्तान के लोगों की उस तक पहुंच नहीं है।
चीन-पाक आर्थिक कॉरीडोर के खिलाफ
कुछ साल पहले चीन ने इस इलाके में चीन- पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर बना कर करीब 60 अरब डॉलर निवेश करने का फ़ैसला किया था। पाकिस्तान में तो इसे गेम चेंजर माना गया, लेकिन बलोच लोग इसके खिलाफ हैं। वहां के मुख्यमंत्री का कहना है कि पाक सरकार ने हमें विश्वास में नहीं लिया। बिना हमसे ही पूछे ही योजना के लिए हामी भर दी। बलोचों को डर है कि इस योजना के जरिये अगर चीनी लोग आकर रहने लगेंगे तो बलोच कहां जाएंगे।
भारत से अपील
बलूचिस्तान के कई नेता भारत से भी आग्रह कर चुके हैं कि उन्हें आजादी दिलाने में मदद की जाए। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लाल किले से दिए गए अपने भाषण में बलूचिस्तान का जिक्र किया तो पूरी दुनिया का ध्यान उस तरफ गया। यह पहला मौका था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इस तरह खुले-आम बलूचिस्तान का जिक्र किया था।