अफगान में भारत के बढ़ते वर्चस्व से बौखलाया पाक, यहां की हर आहट पर होती देश की नजर
नई व्यवस्था वाले अफगानिस्तान में भारत के गहरे हित जुड़े हैं। इसलिए यहां की हर सियासी हलचल पर भारत की पैनी नजर रहती है।
काबूल [ एजेंसी ]। इन दिनों अफगानिस्तान में सियासी हलचल तेज है। यहां अगले साल अप्रैल में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को कुछ महीनों के लिए टाल दिया गया है। इस साल अक्टूबर में हुए संसदीय चुनाव के दौरान कई तरह की तकनीकी समस्याएं उत्पन्न हुई थीं, जिन्हें दूर करने के लिए यह कदम उठाया गया है। संसदीय चुनाव के दौरान यहां के नवोदित लोकतंत्र पर आतंक का साया मंडरा रहा था। उस दौरान यहां की राजनीतिक व्यवस्था पर कई सवाल उठे थे। इसमें एक सवाल यह भी था कि लोकतांंत्रिक स्वरूप वाला अफगानिस्तान भारत समेत अमेरिका के हित में क्यों और कैसे है। नई व्यवस्था वाले अफगानिस्तान में भारत के गहरे हित जुड़े हैं। इसलिए यहां की हर सियासी हलचल पर भारत की पैनी नजर रहती है। आइए जानते हैं उन कारणों को जिससे भारत की यहां की राजनीतिक सुगबुगाह पर कान खड़े हो जाते हैं।
भारत-अफगानिस्तान के बीच पाक फैैक्टर
दरअसल, 21वीं सदी में तालीबान के पतन के बाद भारत और अफगानिस्तान एक दूसरे के और निकट आए है। यह संबंध तब और खास हो जाते हैं, जब चीन और पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। ऐसे में अफगानिस्तान भारत के लिए सामरिक और क्षेत्रीय राजनीतिक संतुलन के लिहाज से भी उपयोगी हो जाता है। तालीबान के बेदखल होने के बाद ने भारत ने एक मजबूत और तालीबान मुक्त अफगानिस्तान को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में रचनात्मक हिस्सेदारी की है। 4 अक्टूबर 2011 को दोनों देशों के बीच सामरिक मामले, खनिज संपदा की साझेदारी और तेल और गैस की खोज पर साझेदारी संबंधी तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे।
तालीबान मुक्त अफगानिस्तान भारत के लिए बेहद अनुकूल
तालीबान मुक्त अफगानिस्तान जहां भारत के लिए बेहद अनुकूल है, वहीं पाकिस्तान को यह रास नहीं आ रहा है। दरअसल, अफगानिस्तान से बेदखल होने के बाद तालीबानियों ने पाकिस्तान का अपना नया ठिकाना बनाया है। ये तालीबान ही लोकतांत्रिक अफगानिस्तान के लिए नया संकट है। अफगानिस्तान लगातार पाकिस्तान पर तालिबानियों को प्रश्रय एवं प्रशिक्षण देने का आरोप लगाता रहा है। भारत भी पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों से त्रस्त है। फिर ऐसे समय में, जबकि चीन पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा है, भारत के लिए अफगानिस्तान का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
मोदी सरकार ने संबंधों को दी नई ऊंचाई
दो वर्ष पूर्व नरेंद्र मोदी सरकार इन संबंधों को एक नई ऊंचाई दी। उन्होंने कई परियोजनाआें को शुभारंभ किया। इस दौरान मोदी ने अफगानिस्तान के हेरात राज्य में सालम बांध का उद्घाटन किया। इस बांध के महत्व का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मोदी ने इसे अफगानिस्तान-भारत मैत्री बाँध कहा। इस परियोजना से यहां 42 मेगावाट विद्युत उत्पादन होगा। इसके साथ 75 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचित करेगा। इस बांध का निर्माण भारत ने 1700 करोड रुपये की लागत से कराया है। इसके साथ ही भारत का ईरान के साथ जो चाबहार बंदरगाह के विकास पर करार हुआ, उसमें अफगानिस्तान भी शामिल है। इस बंदरगाह से स्थलमार्ग अफगानिस्तान से होकर मध्य एशिया को जाएगा। अभी भारत मध्य एशिया के लिए पाकिस्तान पर निर्भर है। चाबहार के बाद भारत की यह निर्भरता समाप्त हो जायेगी।
इस तरह से भारत का अफगानिस्तान के आर्थिक पुनर्निमाण में बड़ा योगदान रहा है। इनमें प्रमुख रूप से अफगानिस्तान के संसद भवन का निर्माण। काबुल में एक अस्पताल का निर्माण। ईरान की सीमा तक 218 किलोमीटर सड़क का निर्माण। 220 किलोवाट डीसी ट्रांसमीटर का निर्माण। इस तरह से भारत ने यहां तमाम परियोजनाओं में भागीदार है। यह कहा जा सकता है कि भारत ने अफागनिस्तान में बड़ा निवेश कर रखा है। ऐसे में यहां की हर सियासी हलचल पर उसकी पैनी नजर रहना लाजमी है।
भारत के बढ़ते प्रभाव से चिंतित पाक
उधर, पाकिस्तान यहां भारत का बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित है। क्योंकि भारत ने अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण के लिए करोड़ों डॉलर की सहायता दी है। ऐसे में पाकिस्तान चाहता है कि अफगानिस्तान में भारत का प्रभाव सीमित हो। इसलिए वह अफगानिस्तान में स्थिरता की बात कर रहा है। वह इस उम्मीद से हे कि एक न एक दिन अमेरिका और अफगानिस्तान की सरकारें मध्यमार्ग तालिबान समूहों से बात करेंगी और फिर उसके समर्थक तालिबान को सत्ता में हिस्सा मिलेगा। पाकिस्तान को उम्मीद है कि अगर ऐसा हुआ तो भारत का प्रभाव यहां सीमित होगा।