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Climate change: जानें, कौन है ग्रेटा जिसके कहने पर दुनियाभर के लाखों छात्र कर रहे विरोध प्रदर्शन

एक 16 साल की लड़की ने दुनियाभर के स्कूली छात्रों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए प्रेरणा दी है। जानें आखिर कौन है ग्रेटा।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Fri, 20 Sep 2019 02:09 PM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 02:36 PM (IST)
Climate change: जानें, कौन है ग्रेटा जिसके कहने पर दुनियाभर के लाखों छात्र कर रहे विरोध प्रदर्शन

स्टॉकहोम,एजेंसी। अगले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिए न्यूयॉर्क में जहां दुनियाभर के नेता इकट्ठा होंगे वहींदुनियाभर के लाखों छात्र एक साथ इकट्ठा होकर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इन छात्रों ने फैसला किया है कि वह एक दिन स्कूल ना जाकर पर्यावरण के लिए आवाज उठाएंगे। इस पूरे आंदोलन का नेतृत्व महज 16 साल की लड़की कर रही हैं। लड़की का नाम है ग्रेटा टुनबर्ग। छात्रों के इस आंदोलन का नाम है फ्राइडेज फॉर फ्यूचर (Fridays for future) है। ग्रेटा काफी सहासी है उसने देश के कई नेताओं को खरी खोटी सुनाई है।

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चलिए तो हम सबसे पहले आपको ग्रेटा के बारे में बताते है आखिर ग्रेटा है कौन? 

2003 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में ग्रेटा का जन्म हुआ था। उनकी मां का नाम मैलेना अर्नमन है। वह स्वीडन में एक ओपेरा सिंगर हैं। ग्रेटा के पिता एक एक्टर हैं और उनका नाम स्वांते टनबर्ग है। 

 

ग्रेटा ने द्वारा जलवायु परिवर्तन के खिलाफ शुरू की गई इस लड़ाई की शुरुआत उसने सबसे पहले अपने घर से की। सबसे पहले ग्रेटा ने अपने माता पिता से कहा कि वह अपना लाइफस्टाइल बदलें। इस अभियान को शुरू करने से पहले दो साल तक ग्रेटा ने अपने घर के माहौल को बदलने का ही काम किया। ग्रेटा के माता-पिता ने इस बदलाव को अपनाते हुए मांस का सेवन करना बंद कर दिया साथ ही जानवरों के अंगों से बनीं चीजों का इस्तेमाल तक करना बंद कर दिया। इतना ही नहीं ग्रेटा के माता पिता ने हवाई जहाज स यात्रा तक करना बंद कर दिया। क्योंकि इसकी वजह से कार्बन का उत्सर्जन ज्यादा होता है। 

इस तरह हुई प्रदर्शन की शुरुआत

वर्ष 2018 में जब ग्रेटा नौवीं क्लास में थी। तब स्वीडन में बहुत अधीक गर्मी पड़ रही थी। लू से लोगों का जीना मुहाल हो गया था। दूसरी तरफ जंगल में आग लगने के कारण प्रदूषण फैला हुआ था। उस दौरान ही 9 सितंबर को स्वीडन में आम चुनाव था। तब उन्होंने फैसला किया कि चुनाव समाप्त होने तक वह स्कूल नहीं जाएंगे। 20 अगस्त से उन्होंने जलवायु के खिलाफ जंग शुरू की।

इन सभी छात्रों ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि पैरिस समझौते के हिसाब से कार्बन उत्सर्जन का काम किया जाना चाहिए। अपनी मांग को पूरा करवाने के लिए इन छात्रों ने स्वीडन की संसद के बाहर काम शुरू किया। उन्होंने अपने स्कूल जाने के समय तीन हफ्तों तक ये विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के दौरान इन छात्रों ने लोगों को पर्चियां भी बांटी जिसमें लिखा था मैं ऐसा इसलिए कर रहीं हूं क्योंकि, आप जैसे लोग मेरे भविष्य से खिलवाड़ कर रहा हैं। 

दुनियाभर से मिलने लगा समर्थन

जैसे ही सोशल मीडिया पर आंदोलन की तस्वीरें वायरल हुई दुनिभर से उन्हें समर्थन मिलना शुरू हो गया। दुनियाभर के छात्र ग्रेटा के इस प्रदर्शन से काफ प्रभावित हुए। इसे ग्रेटा टुनबर्ग इफेक्ट कहा गया। इसके बाद 2019 में 224 शिक्षाविदों ने प्रदर्शन के समर्थन में एक ओपन लेटर पर हस्ताक्षर किए। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरिस ने भी इन बच्चों के स्कूली आंदोलन की सराहना की। इसके बाद देखते ही देखते ग्रेटा लोकप्रिय हो गई। दुनिया के कई महत्वपूर्ण मंचों पर जलवायु परिवर्तन के विषय पर बोलने के लिए उन्हें आमंत्रित किया जाने लगा।

   

सामने आया बदलाव 

2019 जून में स्वीडन रेलवे ने बताया कि घरेलू यात्रियों के लिए रेल की यात्रा करना वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। यहां आपको बता दें कि ग्रेटा ने लोगों से कहा था कि वह विमान से यात्रा ना करें क्योंकि विमान से यात्रा करने में कार्बन ज्यादा पैदा होती है। खुद ग्रेटा ने भी दो अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में विमान से यात्रा करने के लिए मना कर दिया है। 

अगस्त 2019 में वह टुनबर्ग यूके से यूएस एक ऐसे जहाज में गई थी जिसमें सोलर पैनल और अंडरवॉटर टर्बाइन लगे हुए थे। 2018 में जलवायु सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने दुनिया के बच्चों को गैरजिम्मेदार बच्चा बताया। 2019 में हुए दावोस सम्मेलन में भी उन्होंने दुनियाभर की हस्तियों की आलोचना की। 

पिछले महीने जब वह अमेरिका पहुंची तो एक रिपोर्टर ने उनसे ट्रंप से मुलाकात करने के बारे में पुछा। इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि जब तक मेरी बाचे सुनी नहीं जा रही तब तक मैं उनसे बात करके अपना समय क्यों बर्बाद करूं।


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