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आयरलैंड में अब नहीं जाएगी किसी 'सविता' की जान, ऐतिहासिक गर्भपात विधेयक पारित

सविता की असमय मौत ने आयरलैंड में बड़े पैमाने पर विद्रोह को जन्म दिया। हजारों लोग इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आए और कैथोलिक चर्च के प्रतिनिधि के खिलाफ नारे लगाए।

By Tilak RajEdited By: Published: Sat, 15 Dec 2018 12:21 PM (IST)Updated: Sat, 15 Dec 2018 12:21 PM (IST)
आयरलैंड में अब नहीं जाएगी किसी 'सविता' की जान, ऐतिहासिक गर्भपात विधेयक पारित

एएफपी, डबलिन। आयरलैंड में अब किसी 'सविता' की जान नहीं जाएगी। महिलाओं के लंबे संघर्ष के बाद आयरलैंड में 'गर्भपात' कानून में संसद के द्वारा बदलाव करने की अनुमति मिल गई है। आयरलैंड की संसद ने गुरुवार को एक विधेयक पारित करके देश में पहली बार गर्भपात करने की इजाजत दे दी है। आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर ने इसे देश के लिए ऐतिहासिक क्षण करार दिया है।

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आयरलैंड में नए कानून के मुताबिक, 12 हफ्ते तक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी गई है या ऐसी स्थिति, जिसमें गर्भवती महिला की जान को खतरा या उसके स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचता हो, तब उस स्थिति में महिला को गर्भपात कराने की अनुमति होगी। यह असामान्य भ्रूण को खत्म करने की अनुमति भी देगा जो जन्म के 28 दिनों के भीतर या उससे भी पहले शिशु की मृत्यु का कारण बन सकता है।

आंकड़ों के मुताबिक, 1980 से अब तक करीब 1,70,000 आयरिश महिलाओं को गर्भपात कराने के लिए पड़ोसी देश ब्रिटेन जाना पड़ा है। संविधान में संशोधन के लिए आयरलैंड के लोगो के बीच वोटिंग करवाई गई थी। जिसके बाद संविधान में बदलाव के संकेत मिलने पर हजारों लोग इस बात का जश्न मना रहे हैं। दरअसल अब वहां अबॉर्शन को कानूनी मान्यता मिल सकती है। इसके लिए 69 फीसद मतदाताओं ने वोट किया था। लोग इसे बड़े बदलाव की तरह देख रहे हैं।

कर्नाटक की एक महिला को छह साल पहले यहां अबॉर्शन करने से मना कर दिया गया था जिसके बाद उसकी गंभीर हालत में मौत हो गई थी। इस घटना के बाद आयरलैंड में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया गया और कानून को बदलने की मांग की गई थी। 2012 में 31 वर्षीय कर्नाटक की सविता हलप्पनवर आयरलैंड के सबस खूबसूरत शहर गाल्वे में अपने पति प्रवीण के साथ रहती थी। वह पेशे से एक डेंटिस्ट थी। अक्टूबर 2012 में चार महीने की गर्भवती होने पर सविता को यूनिवर्सिटी हॉस्पीटल गाल्वे में भर्ती कराया गया। लेकिन उसी दिन डॉक्टर ने उसे ये कहकर हॉस्पीटल से डिस्चार्ज कर दिया कि उसका गर्भपात होने वाला और उसकी हालत अत्यंत खराब है। ये जानने के बाद सविता ने डॉक्टरों से अबॉर्शन करने के लिए कहा ताकि वह अपनी जान सुरक्षित बचा सके। डॉक्टरों ने सविता की बात को ना मानते हुए कहा कि आप यहां अबॉर्शन नहीं करवा सकते हैं क्योंकि ये एक कैथोलिक देश है और अबॉर्शन यहां के कानून में नहीं है। इसके बाद उसकी पत्नी ने कई बार डॉक्टरों के सामने गिड़गिड़ाया लेकिन वहां के कानून के सामने उसकी एक नहीं सुनी गई। अंत में करीब एक सप्ताह तक जूझने के बाद गंभीर पीड़ा से सविता की मौत हो गई।

सविता की असमय मौत ने आयरलैंड में बड़े पैमाने पर विद्रोह को जन्म दिया। हजारों लोग इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आए और कैथोलिक चर्च के प्रतिनिधि के खिलाफ नारे लगाए। उनका कहना था कि चर्च इस बात का निर्णय नहीं कर सकता कि एक अजन्मे बच्चे के जीने का अधिकार एक महिला की जिंदगी से बढ़कर है। जांच के बाद नियम कानून में कई तरह की खामियों के बारे में पता चला, जिसके बाद लोग इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आए और संविधान में संशोधन करने की मांग की। कहा गया कि किसी गर्भवती महिला के जान का खतरा होने पर उसे अबॉर्शन की अनुमति दे दी जाए। लोगों ने सविता के पोस्टर के साथ प्रदर्शन किया। सविता के पिता अनदानप्पा यालागी ने एक वीडियो जारी कर मतदाताओं से कहा कि वोट देते समय वे सविता को याद करें। आयरलैंड में एक आज भारतीय महिला की जान के बदले लोगों को एक नई सौगात मिल गई है औऱ इसके लिए सभी उस महिला को याद कर रहे हैं।


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