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लोगों के लिए 27 साल जेल में बिताया, बदल दिया था दक्षिण अफ्रीका का इतिहास, कहलाए थे गांधी

मंडेला ने लोगों के लिए अपने जीवन के 27 वर्ष जेल में काटे 1990 में जेल से रिहाई के बाद मंडेला दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने और वर्ष 1994 से 1999 तक उन्होंने सत्ता संभाली।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 10:30 PM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 08:49 AM (IST)
लोगों के लिए 27 साल जेल में बिताया, बदल दिया था दक्षिण अफ्रीका का इतिहास, कहलाए थे गांधी
लोगों के लिए 27 साल जेल में बिताया, बदल दिया था दक्षिण अफ्रीका का इतिहास, कहलाए थे गांधी

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। देश में अब तक दो लोगों को ही गांधी की उपाधि दी जा सकी है, इनमें से पहले भारत के राष्ट्रपति मोहन दास करमचंद गांधी का नाम आता है दूसरे दक्षिण अफ्रीका के सबसे बड़े नेता नेल्सन मंडेला को वहां के लोग गांधी के नाम से पुकारते थे। मंडेला गांधी जी के विचारों से खासे प्रभावित भी थे। उन्हीं के विचारों से प्रभावित होकर ही उन्होंने रंगभेद के खिलाफ अपने अभियान की शुरुआत की थी।

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उन्हें अपनी मुहिम में ऐसी सफलता मिली कि उन्हें भी अफ्रीका का गांधी पुकारा जाने लगा। यह भी रोचक बात है कि मोहनदास करम चंद गांधी को महात्मा गांधी बनाने वाली भी दक्षिण अफ्रीका की ही धरती थी। जहां रंगभेद के कारण उन्हें ट्रेन की फर्स्ट क्लास बोगी से बाहर कर दिया गया था। इसके बाद गांधीजी ने देश लौटकर अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई और उन्हें देश से खदेड़कर ही दम लिया। 

सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित नेल्सन मंडेला ने जिस तरह से देश में रंगभेद के खिलाफ अपना अभियान चलाया उसने दुनियाभर को अपनी ओर आकर्षित किया। यही कारण रहा कि भारत सरकार ने 1990 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। मंडेला, भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी हैं। साल 1993 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। इसके बाद बड़ी बीमारी के चलते 5 दिसंबर, 2013 को 95 वर्ष की उम्र में नेल्सन मंडेला का निधन हो गया।

27 साल जेल में गुजारे नेल्सन मंडेला ने 

रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण नेल्सन मंडेला को तत्कालीन सरकार ने 27 साल के लिए रॉबेन द्वीप की जेल में डाल दिया था, जहां उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा। जेल में उन्हें जिस सेल में रखा गया था वह 8 फीट गुणा 7 फीट का था। यहां उन्हें एक खास-फूस की एक चटाई दी गई थी, जिस पर वह सोते थे। साल 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया।

रंगभेद के प्रति उनका संघर्ष कितना महत्वपूर्ण था, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके सम्मान में साल 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उनके जन्मदिन 18 जुलाई को 'मंडेला दिवस' के रूप में घोषित कर दिया। इसमें खास बात यह है कि उनके जीवत रहते ही उनके जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा था। 

आज ही के दिन दी गई थी उम्रकैद की सजा

1964 में आज ही के दिन 5 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका के सबसे बड़े नेता नेल्सन मंडेला को उम्र कैद की सजा दी गई थी। उस वक्त तख्तापलट की साजिश का आरोप लगाकर उनको 27 वर्षों तक जेल में रखा गया। 1990 में उनकी रिहाई हुई और 1994 में वह दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने। उन्हें लोग प्यार से मदीबा बुलाते थे। उन्हें लोग अफ्रीका का गांधी भी कहते हैं। रंगभेद के खिलाफ संघर्ष में उन्होंने बरसों जेल में काट दिए लेकिन एक सम्मानजनक जिंदगी के लिए उनका संघर्ष जारी रहा।

अफ्रीका के प्यारे, दुनिया के दुलारे मंडेला 

नेल्सन मंडेला का जन्म दक्षिण अफ्रीका में बासा नदी के किनारे ट्रांसकी के मर्वेजो गांव में 18 जुलाई, 1918 को हुआ था। नेल्सन मंडेला 10 मई 1994 से 14 जून 1999 तक दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे। अब दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे। उनकी सरकार ने सालों से चली आ रही रंगभेद की नीति को खत्म करने और इसे अफ्रीका की धरती से बाहर करने के लिए भरपूर काम किया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को एक नए युग में प्रवेश कराया। 1991 से 1997 तक वह अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 

मंडेला पर गांधी का प्रभाव 

नेल्सन मंडेला को अफ्रीका का गांधी भी कहा जाता है। उन्हें यूं ही यह नाम नहीं दिया गया। मंडेला गांधी जी के विचारों से खासे प्रभावित भी थे। गांधी के विचारों से ही प्रभावित होकर मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ अपने अभियान की शुरुआत की थी। उन्हें अपनी मुहिम में ऐसी सफलता मिली कि उन्हें ही अफ्रीका का गांधी पुकारा जाने लगा।

नेल्‍सन मंडेला यानि शांति के दूत...! 

लोग उन्‍हें अफ्रीका का 'गांधी' भी कहते हैं। इसीलिए मंडेला को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्‍न' से नवाजा गया। आज 18 जुलाई को नेल्सन मंडेला का 100वां जन्मदिन है। संयुक्त राष्ट्र उनके हर जन्मदिन को नेल्सन मंडेला अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाता है। नेल्सन मंडेला अंतरराष्ट्रीय दिवस संयुक्त राष्ट्र महासभा मंडेला के शांति स्थापना, रंग-भेद समाधान, मानवाधिकारों की रक्षा और लैंगिक समानता की स्थापना के लिए किए गए उनके सतत प्रयासों के लिए मनाता है। आज नेल्सन मंडेला भले ही हमारे बीच नहीं है, लेकिन दुनिया में अगर शांति की बात हो तो हम सभी उन्हें जरूर याद करते हैं। 

95 साल की उम्र में हुआ निधन 

नेल्सन मंडेला का जन्म दक्षिण अफ्रीका में बासा नदी के किनारे ट्रांसकी के मर्वेजो गांव में 18 जुलाई, 1918 को हुआ था। उन्हें लोग प्यार से मदीबा बुलाते थे। उन्हें लोग अफ्रीका का गांधी भी कहते हैं। बता दें कि उन्हें ये नाम यूं ही नहीं दिया गया था। दरअसल, मंडेला गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित भी थे। उनके ही विचारों से ही प्रभावित होकर मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ एक अभियान शुरू की थी। उन्हें अपनी मुहिम में ऐसी सफलता मिली कि उन्हें ही अफ्रीका का गांधी पुकारा जाने लगा। रंगभेद के प्रति उनका संघर्ष कितना महत्वपूर्ण था, यह इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके जीवित रहते संयुक्त राष्ट्र ने सम्मान में उनके जन्मदिन 18 जुलाई को 'मंडेला दिवस' के रूप में घोषित कर दिया और इसे अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मानाया था। 

सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है नेल्सन मंडेला अंतरराष्ट्रीय दिवस 

संयुक्त राष्ट्र महासभा में नेल्सन मंडेला अंतरराष्ट्रीय दिवस को विश्वभर में मानाने का निर्णय नवंबर, 2009 में लिया गया था और पहला नेल्सन मंडेला अंतरराष्ट्रीय दिवस मंडेला के 92वें जन्मदिन के मौके पर यानी कि 18 जुलाई, 2010 को मनाया गया था। महासभा के अध्यक्ष अली ट्रेकी ने पहली बार इस दिन की घोषणा करते हुए कहा था कि यह कदम उस महान व्यिक्त को सम्मानित करने के लिए लिया उठाया गया है, जिसने हमेशा लोगों की भलाई के लिए काम किया और जेल में संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि मंडेला ने लोगों के लिए अपने जीवन के 27 वर्ष जेल में काटे, जो बेहद सम्मान की बात है। बता दें कि 1990 में जेल से रिहाई के बाद मंडेला दिक्षण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने और वर्ष 1994 से 1999 तक उन्होंने सत्ता संभाली।

...और उस दिन सबकी आंखों में आंसू थे 

लंबी बीमारी के बाद नेल्सन मंडेला का निधन 5 दिसंबर 2013 को 95 वर्ष की उम्र में हुआ। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जूमा ने मंडेला के निधन की खबर टीवी पर सुनाई। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में 10 दिन का राष्ट्रीय शोक बनाया गया। मंडेला के निधन की खबर सुनकर दुनियाभर में उनके प्रशंसक निराश थे। दक्षिण अफ्रीका में उनके प्रशंसकों की आंखों में आंसू थे।  


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