आखिर एक मुस्लिम राष्ट्र यूएई की यात्रा करने के पीछे क्या है पोप फ्रांसिस का मकसद, जानें
पोप फ्रांसिस इन दिनों यूनाइटेड अरब अमीरात की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं। इन देशों की यह उनकी पहली यात्रा है। यही वजह है कि इस यात्रा को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप फ्रांसिस इन दिनों यूनाइटेड अरब अमीरात की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं। इन देशों की यह उनकी पहली यात्रा है। यही वजह है कि इस यात्रा को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। इस यात्रा के लिए पिछले वर्ष उन्हें अबू धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायेद अल नहयान और कैथोलिक समुदाय ने निमंत्रण भेजा था। पोप ने यहां पर जायद स्पोटर्स स्टेडियम में एक रैली को भी संबोधित किया। अबू धाबी के काहिरा में, सुन्नी इस्लाम के प्रतिष्ठित मदरसे अल-अजहर के इमाम शेख अहमद अल-तैयब ने पोप के साथ वार्ता की। दोनों धार्मिक नेताओं ने ‘विश्व शांति और एक साथ रहने की खातिर मानवीय भाईचारे’ को बढ़ावा देने के लिए एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। वेटिकन ने इसे ईसाइयों और मुसलमानों के बीच बातचीत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। इसके अलावा इन दोनों ने ही किसी भी धर्म में आस्था रखने की स्वतंत्रता के लिए एक संयुक्त अपील की है।
बहरहाल पोप फ्रांसिस ने कैथोलिक चर्च के प्रमुख का पद संभालने के बाद से ही विभिन्न धर्मों के बीच संवाद पर जोर दिया है। आपको बता दें कि वह मूल रूप से लैटिन अमेरिकी देश अर्जेंटीना से संबंध रखते हैं। उनकी सोच भी काफी अलग है। यदि पोप और मुस्लिम समुदाय के बीच रिश्तों पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि यह सदभाव भरे कभी नहीं रहे हैं। पोप फ्रांसिस अब इस खाई को पाटने की अपील कर रहे हैं। उनकी यूएई यात्रा का मकसद भी दोनों धर्मों के बीच खाई को पाटना है।
जहां तक पोप फ्रांसिस की बात है तो उन्होंने न सिर्फ दोनों धर्मों के बीच खाई पाटने का काम किया है वहीं अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी आगे बढ़कर अपना योगदान दिया है। अमेरिका और क्यूबा को करीब लाने वाले वही हैं। इसके अलावा शरणार्थियों के लिए भी उन्होंने यूरोपीय देशों से अपने यहां जगह देने की अपील की थी। यही वजह है कि उन्हें उनके पूर्ववर्ती पोप से अलग देखा जाता है। यदि उनकी तुलना पोप बेनडिक्ट से की जाए तो पता चलता है कि उन्होंने इस्लाम को लेकर दुनिया भर रमें 180 से अधिक भाषण दिए। लेकिन उन्होंने मुस्लिमों को आहत करने वाले बयान भी दिए जिसने मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच खाई को बढ़ाने का काम किया।
जहां तक पोप फ्रांसिस की यूएई की यात्रा का सवाल है तो उन्होंने दोनों समुदायों के बीच वार्ता को आगे बढ़ाने का काम किया है। यह यात्रा उसकी ही एक कड़ी है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि पोप फ्रांसिस अपने आधिकारिक बयान देते हुए भी इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसका कोई दूसरा अर्थ न निकाल ले। उन्होंने जब कभी भी कहीं हमले हुए और किसी समुदाय विशेष के लोगों का नाम उसमें आया तब भी उन्होंने बेहद संभलकर ही बयान दिया और उन्हें इस्लामी कट्टरपंथी कहने की बजाय आतंकवादी कहा।
2014 में उन्होंने मुसलमान राजनीतिक और धार्मिक नेताओं के साथ साथ इस्लामिक विद्वानों से आतंकवाद की निंदा करने को कहा। इसके अलावा 2016 में जब पोप से जिहादियों के हाथों हुई एक फ्रांसीसी पादरी जैक हामेल की हत्या के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस्लाम को हिंसा के साथ जोड़ने से इन्कार कर दिया था। हमले पर उन्होंने कहा कि दुनिया युद्ध झेल रही है लेकिन इसका कारण धर्म नहीं है। उनका कहना था कि जब मैं युद्ध की बात करता हूं तो मैं हितों, धर्म और संसाधनों को लेकर छिड़े युद्ध की बात करता हूं, धर्म को लेकर युद्ध की नहीं। सभी धर्म शांति चाहते हैं, जबकि युद्ध चाहने वाले लोग दूसरे हैं।
पोप फ्रांसिस इस तरह की कोई गलती करने से हमेशा बचते हैं। यही वजह है कि शरणार्थियों के मुद्दे पर यह जानते हुए कि वह अधिकतर मुस्लिम देशों से संबंध रखते हैं उनका पक्ष रखते हुए नजर आते हैं। एक बार वह ग्रीक द्वीप लेसबोस से तीन मुस्लिम परिवारों को अपने निजी विमान पर भी लेकर आए थे। आपको यहां पर बता दें कि पूरी दुनिया में करीब 1.3 अरब कैथोलिक ईसाई हैं। यूएई की यात्रा से पहले वह काहिरा की अल-अजहर यूनिवर्सिटी के इमाम शेख अहमद अल तैयब से भी मुलाकात कर चुके हैं। यह इस लिहाज से भी खास है क्योंकि अल-अजहर यूनिवर्सिटी सुन्नियों की सबसे बड़ी संस्था है। वहीं तैयब कट्टरपंथियों के सख्त खिलाफ है।
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