इजरायल के नेतन्याहू गठबंधन बनाने में नाकाम, विपक्ष में बैठना की आई नौबत
पिछले दो सालों से चार बार चुनाव के बाद भी सरकार बनाने में गतिरोध बना रहा है। और विगत 23 मार्च से नेतन्याहू संसद में बहुमत हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस्लामिस्ट अरब पार्टी के नेता से सुलह की कोशिशों के बाद भी कोई समझौता नहीं हुआ।
येरुशलम, एपी। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए एक गठबंधन सरकार बनाने की समयसीमा मंगलवार की मध्यरात्रि खत्म हो गई। लेकिन वह अब तक इस दिशा में कुछ नहीं कर पाए हैं। ऐसा नहीं कर पाने की सूरत में 12 सालों में पहली बार उनकी लिकुड पार्टी को विपक्ष में बैठना पड़ सकता है।
पिछले दो सालों से चार बार चुनाव के बाद भी सरकार बनाने में गतिरोध बना रहा है। और विगत 23 मार्च से नेतन्याहू संसद में बहुमत हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अपने कई विरोधियों से बार-बार की मुलाकात के बावजूद इस्लामिस्ट अरब पार्टी के नेता से सुलह की कोशिशों में चार हफ्ते के समय में भी नेतन्याहू सरकार बनाने को लेकर कोई समझौता नहीं कर पाए हैं।
चार हफ्ते की यह मोहलत मंगलवार मध्यरात्रि खत्म होने के साथ ही कोई समझौता नहीं हो पाने की सूरत में यह मामला अब वापस राष्ट्रपति रुवेन रिवलिन के पास चला जाएगा। हालांकि गठबंधन सरकार बनाने के लिए अन्य दलों से कोई समझौता नहीं हो पाने का मतलब यह कतई नहीं है कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू को तुरंत अपना पद छोड़ना पड़ेगा।
राष्ट्रपति रुवेन रिवलिन उन्हें एक गठबंधन बनाने के लिए और दो हफ्ते की मोहलत दे सकते हैं। वह नेतन्याहू के किसी विरोधी को भी सरकार बनाने का एक मौका दे सकते हैं। इसके अतिरिक्त वह इस मामले को वापस संसद में भी भेज सकते हैं। इससे सांसदों को अपने बीच से एक प्रधानमंत्री चुनने का अवसर मिल सकता है। अगर यह सभी विकल्प विफल रहे तो इजरायल को इसी साल एक और चुनाव का सामना करना पड़ सकता है। इससे देश में महीनों तक राजनीतिक अस्थिरता जारी रहेगी।
23 मार्च को हुए चुनाव में नेतन्याहू की लिकुड पार्टी देश के अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। उसे 120 सदस्यीय संसद में तीस सीटें मिली थीं। लेकिन एक सरकार बनाने के लिए उन्हें 61 सीटों का बहुमत चाहिए था। उनकी विचारधारा वाली राष्ट्रवादी पार्टियों के समर्थन से वह सरकार बना सकते थे। लेकिन न्यू होप पार्टी और धार्मिक जियोनिज्म पार्टी ने उन्हें समर्थन देने से इन्कार कर दिया। इन सभी दलों को गठबंधन में शामिल अरब साझीदारों से एतराज था।
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