G-20 Summit: एक तरफ जापान-अमेरिका तो दूसरी तरफ रूस-चीन, भारत किसी खेमे में नहीं
G-20 Summit वैश्विक मंच पर जब आर्थिक कूटनीतिक अनिश्चितता बढ़ रही है तब भारत ने बहुत ही जोरदार तरीके से यह संकेत दिया है कि वह खेमेबाजी में भरोसा नहीं करता।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। G-20 Summit:ओसाका में चल रहे समूह-20 देशों की बैठक में भाग लेने गये पीएम नरेंद्र मोदी की वैश्विक कूटनीति को अगर दो टूक में कहा जाए तो वह यह होगा कि, 'भारत अमेरिका के साथ हैं लेकिन चीन विरोधी खेमे में भी नहीं है।' वैश्विक मंच पर जब आर्थिक, कूटनीतिक अनिश्चितता बढ़ रही है तब भारत ने बहुत ही जोरदार तरीके से यह संकेत दिया है कि वह खेमेबाजी में भरोसा नहीं करता।
PM Modi ने एक तरफ पीएम शिंजो एबे और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ जापान-अमेरिका-भारत (जय) संगठन के शीर्ष नेताओं की बैठक में हिस्सा लिया तो इसके कुछ ही देर बाद वे रूस-भारत-चीन (आरआइसी) की शीर्ष स्तरीय बैठक में शिरकत की। इन दोनो बैठकों के बीच ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के राष्ट्राध्यक्षों की अलग बैठक में मोदी रहे।
उक्त तीनों बैठकों को Modi ने भारत के लिए एक समान तरह से महत्वपूर्ण करार दिया और इनकी अलग-अलग बैठक आगे जारी रखने को लेकर भी अपनी प्रतिबद्धता जताई। एबे और ट्रंप के साथ मोदी ने पिछले वर्ष भी जय के शीर्ष नेताओं की बैठक की थी और यह इनका दूसरा सम्मेलन था। इसके बारे में विदेश सचिव विजय गोखले ने बताया कि, ''मुख्य तौर पर यह बैठक हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़ी रही।
तीनों नेता इस बात के पक्षधर रहे कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र सिर्फ इन तीनों देशों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए शांति व समान अवसर वाला होना चाहिए।'' जाहिर है कि अमेरिका, जापान के साथ मिल कर भारत ने चीन को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हालात पर सीधा संकेत दिया कि उसकी भौगोलिक विस्तारवादी नीतियों को लेकर वह दुनिया के दिग्गज देशों के साथ है। पीएम मोदी ने आरआइसी और ब्रिक्स की बैठक में आतंकवाद का मुद्दा उठाया।
इसके कुछ ही घंटे बाद रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ मोदी ने आरआइसी का सम्मेलन किया। इसमें नेताओं ने मुख्य तौर पर वैश्विक स्तर पर छाई मंदी के बादल और कारोबार को लेकर संरक्षणवादी नीतियों को मिल रहे प्रश्रय का मुद्दा सबसे अहम रहा।
विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के नियमों की अनदेखी करने वाले राष्ट्रों पर भी भारत ने रूस और चीन के साथ मिल कर निशाना लगाया। कहने की जरुरत नहीं कि निशाना अमेरिका की तरफ था। अमेरिका ने जिस तरह से अपने कारोबार को बढ़ावा देने को लेकर आक्रामक हुआ है उससे चीन व भारत सबसे ज्यादा परेशान है।
इन दोनो बैठकों के बीच मोदी ने ब्रिक्स प्रमुखों की एक अलग बैठक में हिस्सा लिया। ब्रिक्स की स्थापना भी चीन व रूस ने भारत के साथ मिल कर अमेरिका की बढ़ती ताकत के सामने एक वैकिल्पक व्यवस्था के तौर पर की थी। हर पांचों राष्ट्रों के प्रमुखों की एक शीर्ष बैठक होती है जो इस वर्ष ब्राजील में होनी है।
इसके अलावा मौका मिलने इन देशों की दूसरे मौकों पर भी इस तरह की संक्षिप्त बैठक हो जाती है जहां रणनीति की समीक्षा की जाती है। ब्रिक्स देशों की तरफ से जारी विज्ञप्ति में वैश्विक अर्थव्यस्था में छाई मंदी को उठाते हुए कहा गया है कि सदस्य देशों के बीच सुधारों को लेकर और ज्यादा सामंजस्य होना चाहिए। इसमें भी कारोबार को लेकर संरक्षणवाद की नीतियों का विरोध किया गया और सदस्य देशों के बीच कारोबारी रिश्तों को बढ़ाने के और उपाय करने की सहमति बनी।
पांचों देशों ने डब्लूटीओ को बेहद जरूरी बताते हुए इसकी निगरानी में भी वैश्विक कारोबार को बढ़ावा देने की अपील की गई। ब्रिक्स देशो ने आतंकवाद के खिलाफ भी कड़ी अपील जारी की है। दुनिया के हर देश से अपील की गई है कि वह अपनी जमीन से आतंकवाद का सफाया करने में और गंभीरता दिखाए। खास तौर पर आतंकवाद को मिलने वाली वित्तीय मदद को निशाने पर लिया गया है। माना जा रहा है कि यह एफएटीएफ में फंसे पाकिस्तान की तरफ इशारा है।