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जकार्ता में नमो-नमो: मोदी की राजनयिक चोट से चित हुआ ड्रैगन, सबांग बंदरगाह पर मजबूत हुई भारत की पकड़

हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की दिलचस्‍पी और उसके बढ़ते प्रभुत्‍व पर अंकुश लगाने के लिए लिहाज से सबांग बंदरगाह भारत के लिए उपयोगी है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 30 May 2018 03:33 PM (IST)Updated: Thu, 31 May 2018 02:57 PM (IST)
जकार्ता में नमो-नमो: मोदी की राजनयिक चोट से चित हुआ ड्रैगन, सबांग बंदरगाह पर मजबूत हुई भारत की पकड़

नई दिल्‍ली [जेएनएन]। चीन को लेकर भारतीय विदेश नीति में शायद ही कोई ऐसा मौका आया होगा जब कदम भारत ने उठाया हो और प्रतिक्रिया चीन में हो रही है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इंडोनेशिया यात्रा के दौरान ड्रैगन की प्रतिक्रिया भी कुछ इसी तरह की है। जिस तरह से इंडोनेशिया ने भारत को सामरिक रूप से महत्वपूर्ण सबांग बंदरगाह के आर्थिक और सैन्य इस्तेमाल की मंजूरी दी है, उससे चीन के हुक्‍मरानों में खलबली मच गई। इसे चीन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। आइए जानते हैं कि आखिर ड्रैगन की इस चिंता के मूल में क्‍या छिपा है।

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सबांग बंदरगाह पर ड्रैगन की दृष्टि
दरअसल, इंडोनेशिया का सबांग बंदरगाह अपनी भौगोलिक खासियत के कारण सामरिक रूप से अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है। यह द्वीप सुमात्रा के उत्तरी छोर पर है और मलक्का स्ट्रैट के भी करीब है। यदि सामरिक लिहाज से देखा जाए तो सबांग द्वीप के इस बंदरगाह की गहराई करीब 40 मीटर है। इतनी गहराई में पनडुब्बियों समेत हर तरह के सैन्‍य जहाजों को यहां आसानी से उतारा जा सकता है। इसके लिए यह बंदरगाह बहुत उपयुक्त माना जाता है। चीनी विस्‍तारवादी नीति के कारण आरंभ से ही चीन की नजर इस बंदरगाह पर टिकी है।

इसकी सामरिक उपयोगिता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान जापान ने इस द्वीप का इस्‍तेमाल अपने सैन्‍य ठ‍िकाने के रूप में किया था। जापान ने अपने बेड़े के जहाज यहां खड़े किए थे। यही कारण है कि चीन ने सबांग इलाके के इस्तेमाल और विकास के प्रति दिलचस्पी दिखाई थी।

भारत के लिए भी यह बंदरगाह बेहद अहम है। सबांग भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह से महज 710 किलोमीटर की दूरी स्थित पर है। हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की दिलचस्‍पी और उसके बढ़ते प्रभुत्‍व पर अंकुश लगाने के लिए लिहाज से सबांग बंदरगाह भारत के लिए उपयोगी है। ड्रैगन को यही चिंता सताए जा रही है कि अगर इंडोनेशिया सरकार का भारत के साथ सबांग बंदरगाह को लेकर समझौता हुआ तो शायद यह चीनी हितों के खिलाफ होगा।

समुद्री व्यापार के लिए अहम है मलक्का स्ट्रैट
एशियाई मुल्‍कों के लिए इंडोनेशिया का मलक्‍का स्‍ट्रैट काफी अहम है। यूं कहा जाए कि समुद्री व्यापार के लिए यह एक जीवन रेखा है। चीन अपने समुद्री व्‍यापार के लिए मलक्का स्ट्रैट का काफी इस्तेमाल करता है। ड्रैगन की आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा स्ट्रैट से होकर गुजरने वाले ट्रेड रूट पर काफी निर्भर करती है। चीन के इन हितों की अनदेखी के मायने हैं इस क्षेत्र में ड्रैगन काे चुनौती देना।

मलक्का स्ट्रैट को दुनिया के समंदर के रास्ते में छह में से एक पतला रास्ता माना जाता है। सैन्‍य और आर्थ‍िक रूप से यह काफी महत्‍वपूर्ण है। साथ ही इस रास्‍ते से कच्‍चे तेल से लदे जहाज भी गुजरते हैं। जिस इलाके में यह पड़ता है, उससे भारत का 40 फीसद समुद्री व्यापार होता है।

दक्षिण-पूर्वी एशियाई मुल्‍क और चीन 
दरअसल, चीन की दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ रिश्‍तों के केंद्र में इंडोनेशिया ही रहा है। दक्षिण-पूर्वी एशियाई मुल्‍कों में होने वाली हलचल के प्रति वह बहुत सतर्क और सचेत रहता है। इस क्षेत्र में चीन के आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हैं। ऐसे में भारत की यहां दिलचस्‍पी ड्रैगन से एक नए विवाद को जन्‍म दे सकती है। इसलिए यह जरूरी होगा कि भारत यहां फूंक-फूंक कर कदम रखे।

उधर, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने मुखपत्र में लिखा है कि अगर भारत सबांग के सामरिक द्वीप तक पहुंचना चाह रहा है तो वह गलत तरह से चीन के साथ सामरिक प्रतिस्पर्धा में आ जाएगा और अपने ही हाथ जला बैठेगा। चीन ने आगे कहा है, 'भारत के साथ दिक्कत ये है कि वो विदेश में निवेश को लेकर चीन को प्रतिस्पर्धी मान लेता है और फिर खुद को उसके खिलाफ खड़ा लेता है। हमारा मानना है कि भारत चीन के खिलाफ सैन्य रेस में नहीं आना चाहेगा। भारत की अक्लमंदी का इम्तहान तब होगा जब वो स्ट्रैट ऑफ मलक्का में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के साथ-साथ चीन समेत दूसरे देशों से टकराव मोल लेगा। अगर भारत इम्तहान में पास नहीं होता तो गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।'


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