चीन से मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना को तकनीक के जरिये खुद को सुदृढ़ बनाने की जरूरत
वर्तमान में चीन स्वयं को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में पूरी ताकत लगाए हुए है। सैन्य क्षमता बढ़ाने के क्षेत्र में उसने एक नई सफलता हासिल कर ली है।
[डॉ लक्ष्मी शंकर यादव]। वर्तमान में चीन स्वयं को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में पूरी ताकत लगाए हुए है। सैन्य क्षमता बढ़ाने के क्षेत्र में उसने एक नई सफलता हासिल कर ली है। उसकी यह उपलब्धि भारत सहित चीन के समस्त पड़ोसी देशों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। चीन ने ध्वनि से ज्यादा तेज गति वाले हाइपरसोनिक विमान शिंगकॉन्ग- 2 या स्टारी स्काय-2 का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। इसे रॉकेट की मदद से लांच किया गया। इसके 10 मिनट बाद इसे हवा में छोड़ा गया। इसने स्वतंत्र रूप से उड़ते हुए आसमान में विभिन्न प्रकार की कलाबाजियां भी दिखाई। अपने करतब दिखाने के बाद यह विमान वहां लौट आया जहां से उड़ान भरी थी। इस हाइपरसोनिक विमान का डिजाइन चाइना एकेडमी ऑफ एयरोस्पेस एयरोडायनॉमिक्स एवं चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नालॉजी कारपोरेशन ने संयुक्तरूप से किया है।
आज यह पूरी दुनिया का दूसरा सफल वेवराइडर विमान है। चीन से पहले अमेरिका इस तरह का विमान बना चुका है। अमेरिका के इस वेवराइडर विमान का नाम बोइंग एक्स-51 है। अमेरिका अब तक इसके कई परीक्षण कर चुका है। वेवराइडर इस तरह के विमान होते हैं जो अपनी हाइपरसोनिक उड़ान के दौरान पैदा होने वाले वाली शॉकवेव की मदद से अत्यधिक तेज गति में भी हवा में तैरते रहते हैं। चाइना एकेडमी ऑफ एयरोस्पेस एयरोडायनॉमिक्स का यह विमान परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। यह संसार की किसी भी मिसाइल विरोधी रक्षा प्रणाली को भेदने की क्षमता रखता है। वर्तमान में विश्व के अनेक देशों के पास जो मिसाइल विरोधी रक्षा प्रणाली है वह धीमी गति से चलने वाली क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों का आसानी से पता लगा सकती है। इस कारण इन्हें रोका जा सकता है जबकि हाइपरसोनिक विमान को उसकी तेज गति के कारण उसका पता लगाना एक बड़ी चुनौती है। इसलिए इन्हें रोकना एक तरह से नामुमकिन हो सकता है। रूस भी हाइपरसोनिक विमान का परीक्षण कर चुका है। भारत में इस पर अभी काम चल रहा है।
चीन ने जब इस विमान का परीक्षण किया तो यह 30 किमी उंचाई तक उड़ान भरने में सफल रहा था। ध्वनि की रफ्तार 0.343 किमी प्रति सेकेंड है, जबकि इस विमान की रफ्तार 2.04 किमी प्रति सेकेंड है यानी यह 5.5 से 6 मैक की गति से उड़ता है। जिस माध्यम में विमान उड़ रहा है उससे विमान की गति से ध्वनि की गति के अनुपात को मैक नंबर कहा जाता है। इस विमान को किसी भी रॉकेट से लांच किया जा सकता है। यह पारंपरिक व परमाणु दोनों तरह के हथियार ले जाने में सक्षम है। इसके परीक्षण के बाद चीन, अमेरिका व रूस से बराबरी के मुकाबले पर आ गया है।
एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम की मौजूदा जेनरेशन क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने के लिए की गई है जिन्हें रोकना संभव है। जबकि चीन का हाइपरसोनिक एयरक्राफ्ट इतना तेज उड़ता है कि यह मौजूदा एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम के लिए एक चुनौती है। चीन का पड़ोसी होने के नाते भारत को अपनी सुरक्षात्मक विकास गति तेज करनी होगी। भारत ने इस साल ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का सफल परीक्षण किया है। वर्तमान समय में यह मिसाइल मैक 2.8 ध्वनि रफ्तार पर उड़ान भर रही है। अगले पांच सालों में इसकी रफ्तार 3.5 से 5 मैक तक पहुंच जाने की उम्मीद है। ऐसी स्थिति में भारत को हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम बनाने के लिए सात साल और लगेंगे। भारत रूस से विमान भेदी मिसाइल प्रणाली एस-400 ट्रॉयंफ खरीदने की तैयारी कर रहा है।
चीन स्वतंत्र तिब्बती क्षेत्र में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापुल्टा यानी प्रक्षेपण तकनीक से लैस रॉकेट तैनात करने की योजना बना रहा है। इस तकनीक की मदद से ये रॉकेट उंचाई वाले इलाकों में 200 किमी तक मार करने में सक्षम होंगे। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की एक रिपोर्ट में हाल में कहा गया है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के अंतर्गत हान जुनली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रॉकेट आर्टीलरी को विकसित करने पर काम कर रहे हैं। हान जुनली इंजीनियरिंग एकेडमी के मा टोमिंग से प्रेरित हैं। मा टोमिंग को चीन में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापुल्टा यानी प्रक्षेपक तकनीक का जनक माना जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में यह तकनीक काम आती है।
चीन के पास लंबे पहाड़ी और पठारी क्षेत्र हैं जहां इस तरह के रॉकेट पहुंचाए जा सकते हैं। इसके जरिये चीन सैकड़ों किमी दूर स्थित शत्रुओं को भी आसानी से अपने इलाके से निकाल सकता है। उसकी यह तकनीक जंगी जहाजों में भी इस्तेमाल की जाएगी। विदित हो कि पिछले माह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की एक विशेष टुकड़ी ने तिब्बत में युद्धाभ्यास भी किया था। यह उनका दूसरा युद्धाभ्यास था। इस युद्धाभ्यास के दौरान पायलटों और विशेष बल के जवानों को हेलीकॉप्टर से उतरने का प्रशिक्षण दिया गया था। निश्चित है कि चीनी सेना के ये युद्धाभ्यास संभवत: भारत के साथ टकरावकी स्थिति में तैयारियों के मद्देनजर किए गए हैं क्योंकि डोकलाम पर कभी तनाव बढ़ सकता है।
चीन का ताकतवर होना स्वाभाविक है क्योंकि रक्षा खर्च में भारत चीन से कोसों दूर है। बीते 25 जुलाई को लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में रक्षा राज्यमंत्री ने चीन और भारत के बीच रक्षा मद में होने वाले खर्च की तुलनात्मक स्थिति प्रस्तुत की थी। सरकार ने चीन के मुकाबले देश में रक्षा मद में खर्च किए जाने का जो ब्योरा पेश किया उसके अनुसार चीन का रक्षा बजट तकरीबन 22,823 करोड़ डॉलर अर्थात 15 लाख 68 हजार करोड़ रुपये है। वहीं दूसरी तरफ भारत का रक्षा बजट 6,392 करोड़ डॉलर यानी लगभग 4 लाख 39 हजार करोड़ रुपये है। इस तरह चीन भारत से तीन गुना से भी ज्यादा रक्षा के मद में खर्च करता है। ऐसे में हमें अपना रक्षा खर्च बढ़ाना होगा। चीन की तरफ से जो चुनौतियां मिल रहीं हैं वह भारत के लिए चिंता का विषय हैं। खासतौर पर हमें यह ध्यान में रखना होगा कि जिस तरह से वह हमारे पूर्वोत्तर के राज्यों पर नजर जमाए हुए है या भारत को चारों तरफ से घेरने की कोशिश कर रहा है उससे हमें सतर्क रहना होगा।
[सैन्य विज्ञान के प्राध्यापक]