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चीन और भारत के इस अहम कदम से पाकिस्‍तान के माथे पर आ सकती है शिकन!

अफगान के प्रोजेक्‍ट में संयुक्‍त आर्थिक भागीदारी को लेकर चीन और भारत के बीच सहमति बन गयी है।

By Monika MinalEdited By: Published: Sat, 28 Apr 2018 11:46 AM (IST)Updated: Sat, 28 Apr 2018 03:16 PM (IST)
चीन और भारत के इस अहम कदम से पाकिस्‍तान के माथे पर आ सकती है शिकन!
चीन और भारत के इस अहम कदम से पाकिस्‍तान के माथे पर आ सकती है शिकन!

वुहान (प्रेट्र)। चीन के वुहान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्‍ट्रपति शी चिनफिंग के बीच अफगानिस्‍तान में प्रोजेक्‍ट को लेकर संयुक्‍त आर्थिक भागीदारी पर सहमति बन गयी है। ऐसा माना जा रहा है कि दोनों देशों के इस कदम से पाकिस्‍तान को परेशानी हो सकती है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच दो दिन में चार दौर की बातचीत हो चुकी है। इन मुलाकातों से भारत-चीन के रिश्तों में नए दौर का आगाज माना जा रहा है। शनिवार को मोदी-चिनफिंग की बातचीत के बाद विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों के बीच इन मुलाकातों से सकारात्मक बातें निकलकर आई हैं।

अफगानिस्‍तान में साथ मिलकर करेंगे काम

सूत्रों के अनुसार, भारत और चीन के बीच अफगानिस्तान मसले को लेकर अहम बातचीत हुई। भारतीय विदेश सचिव विजय गोखले ने बताया कि दोनों देश अफगानिस्तान में साथ मिलकर काम करेंगे। अफगान प्रोजेक्ट में दोनों देशों की आर्थिक भागीदारी होगी। दोनों देशों ने अफगानिस्तान में शांति कायम करने और आर्थिक मोर्चे पर मिलकर काम करने पर सहमति जताई है, ताकि यहां से आतंकवाद को जड़ से खत्म किया जा सके।

अफगानिस्तान में चीन सबसे बड़ा निवेशक

दरअसल, चीन अफगानिस्तान का सबसे बड़ा निवेशक है। चीन ने 2007 में 3 बिलियन डॉलर की डील के तहत अफगानिस्तान के अयनाक में कॉपर माइन को 30 साल की लीज पर लिया था। इस माइन से कॉपर को चीन पहुंचाने में लगभग 6 महीने का समय लगता था लेकिन दोनों देशों ने 2016 में रेलवे लाइन पर समझौता कर कॉरिडोर तैयार कर लिया और अब महज दो हफ्तों में कॉपर को चीन पहुंचाया जा रहा है।

सीपीईसी में शामिल होने पर अफगानिस्तान में रोड और रेल नेटवर्क तैयार किया जाएगा जिससे वह अपने कारोबार को बढ़ाने के साथ-साथ सेंट्रल और वेस्टर्न एशिया के कारोबार में अपनी जगह बना सकेगा। वहीं चीन यह भी दावा कर रहा है कि अफगानिस्तान का आर्थिक विकास ही उसे आतंकवाद से छुटकारा दिला सकता है और चीन की भी लगातार कोशिश रही है कि किसी तरह भारत को इसमें शामिल किया जाए। 


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