चीन में विशेषज्ञों और नेटिजन के बीच अंग्रेजी को लेकर बहस छिड़ी, जानें क्यों पढ़ना चाहते हैं यह भाषा
10 फीसद कक्षा घंटे अंग्रेजी भाषा के लगते हैं लेकिन महाविद्यालय के 10 फीसद छात्र भी इसका प्रयोग दैनिक कामकाज के दौरान नहीं करते हैं। अंग्रेजी को मुख्य विषय के तौर पर हटाए जाने के प्रस्ताव पर इंटरनेट मीडिया पर बहस छिड़ गई है।
बीजिंग, प्रेट्र। चीन के राष्ट्रीय सलाहकार निकाय के एक सदस्य ने देश के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों से अंग्रेजी को मुख्य विषय के तौर पर हटाए जाने का प्रस्ताव रखा है। अब विशेषज्ञों और नेटिजन के बीच इसको लेकर बहस छिड़ गई है। अधिकांश लोग अंग्रेजी को मुख्य विषय के तौर पर रखने के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से देश अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनेगा।
समर्थक बोले, अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मिलेगी मदद
बता दें कि वर्ष 2001 में अंग्रेजी को अनिवार्य विषय बनाया गया था। चीन में अधिकांश लोग मंदारिन भाषा बोली जाती है। चाइनीज पीपुल्स पॉलिटिकल कंसलटेटिव कांफ्रेंस (सीपीसीसी) की राष्ट्रीय समिति के सदस्य शू जिन का प्रस्ताव है कि अंग्रेजी को अनिवार्य विषय की सूची से हटाने के साथ ही शारीरिक शिक्षा, संगीत और कला पर ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि नेशनल कॉलेज इंट्रेस टेस्ट के दौरान अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं को अनिवार्य विषय के तौर पर नहीं शामिल किया जाना चाहिए।
बता दें कि शू जियू सैन सोसायटी के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि 10 फीसद कक्षा घंटे अंग्रेजी भाषा के लगते हैं, लेकिन महाविद्यालय के 10 फीसद छात्र भी इसका प्रयोग दैनिक कामकाज के दौरान नहीं करते हैं। उनके इस प्रस्ताव पर इंटरनेट मीडिया पर बहस छिड़ गई है। कुछ नेटिजन ने जहां उनके प्रस्ताव से सहमति जताते हुए कहा कि अंग्रेजी सीखने में उन लोगों ने बहुत समय बर्बाद किया, लेकिन इसका उपयोग दैनिक जीवन में कतई नहीं है।
वहीं कुछ लोगों का कहना है कि अंग्रेजी को मुख्य विषय के तौर पर रखा जाना ठीक है, क्योंकि इससे अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी। बता दें कि सरकारी चाइना यूथ डेली द्वारा किए गए एक ऑनलाइन सर्वे में 1,10,000 से अधिक लोगों ने प्रस्ताव का विरोध किया है। वहीं लगभग एक लाख लोगों ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि अंग्रेजी सीखने के बजाय चीनी भाषा और संस्कृति सीखना ज्यादा बेहतर होगा।