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चीन के लिए झटका है जर्मनी की नई हिंद-प्रशांत रणनीति, भारत, जापान और आशियान देशों ने किया समर्थन

जर्मनी ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लोकतांत्रिक देशों के साथ भागीदारी मजबूत करने का फैसला किया है। जर्मनी के इस कदम से चीन को जबर्दस्‍त झटका लगा है...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 04:50 PM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 04:50 PM (IST)
चीन के लिए झटका है जर्मनी की नई हिंद-प्रशांत रणनीति, भारत, जापान और आशियान देशों ने किया समर्थन

बर्लिन, एएनआइ। जर्मनी ने एशिया में अपने सबसे करीबी साझीदार चीन को बड़ा राजनयिक झटका यूं ही नहीं दिया है। जर्मनी ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लोकतांत्रिक देशों के साथ भागीदारी मजबूत करने का फैसला बहुत सोच-समझकर किया है। दरअसल, इस क्षेत्र से बर्लिन के भी व्यापारिक, आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हैं। जाहिर है, इससे चीन खुद को घिरता हुआ महसूस करेगा और जर्मनी से नाराज होगा लेकिन, बदलते वैश्विक परिदृश्य में चीन की परवाह किसे है।

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निक्केई एशियन रिव्यू के मुताबिक, मानवाधिकारों पर चीन के ट्रैक रिकॉर्ड और एशियाई देशों पर अपनी आर्थिक निर्भरता को लेकर यूरोप की चिंताओं के मद्देनजर ही जर्मनी की नई हिंद-प्रशांत रणनीति सामने आई है। बर्लिन ने दो सितंबर को ही हिंद-प्रशांत रणनीति औपचारिक रूप से अपनाई है। समुद्री व्यापार मार्गों को चीन से सुरक्षित रखने की चिंता सबको है। जर्मनी भी इस पर विशेष जोर दे रहा है। जर्मनी के इस कदम का भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और आशियान के सदस्य देशों ने समर्थन किया है।

इसी दिन जर्मनी के विदेश मंत्री हेइको मॉस ने कहा था, 'हम भावी वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में मददगार बनना चाहते हैं। जिसकी लाठी उसकी भैंस की बजाय यह विश्व-व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नियमों के अनुरूप होनी चाहिए। इसी के चलते हमने उन देशों के साथ सहयोग बढ़ाया है, जो हमारे साथ लोकतांत्रिक और उदार मूल्यों को साझा करते हैं।'

चीन के साथ जर्मनी के व्यापारिक और निवेश संबंध काफी मजबूत रहे हैं। एशिया में चीन ही जर्मनी की कूटनीति का केंद्रबिंदु रहा है। हालांकि, उम्मीद के अनुरूप आर्थिक विकास भी चीनी बाजार को नहीं खोल सका। चीन में कार्यरत जर्मन कंपनियों को चीनी सरकार टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए बाध्य करती है। जर्मन कंपनियां चीन में अपने कारोबार और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। ऐसे कई मुद्दों को लेकर यूरोपीय यूनियन और चीन के बीच सुलह का कोई रास्ता नहीं निकल पाया। इससे बीजिंग पर बढ़ती आर्थिक निर्भरता ने बर्लिन की चिंता बढ़ा दी थी।

इसके अलावा हांगकांग पर चीनी कानून थोपे जाने और शिनजियांग में उइगर मुस्लिमों के दमन को लेकर भी जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की चीन समर्थक नीतियों का विरोध बढ़ रहा था। जर्मनी की नई हिंद-प्रशांत रणनीति चीन को लेकर सख्त नजर आ रही है। खासकर, बीजिंग के बेल्ट एंड रोड इनशिएटिव (बीआरआइ) में भागीदार देशों पर कर्ज के भारी बोझ को लेकर। बहरहाल, जर्मनी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अब फ्रांस के साथ मिलकर काम करने की योजना बना रहा है। 


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