चीन के नए सिल्क रोड के मखमली ख्वाब में कई गड्ढे, भारत कर रहा विरोध
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में बेल्ट एंड रोड परियोजना की शुरुआत की थी। भारत, चीन की इस परियोजना की शुरुआत से खिलाफत करता रहा है।
बीजिंग, एपी। चीन यूरोप और एशिया को जोड़ने के लिए जिस 'नए सिल्क रोड' के मखमली ख्वाब देख रहा है, क्या वो हकीकत की धरती पर उतर पाएगा? ये सवाल इसलिए, क्योंकि पाकिस्तान से लेकर तंजानिया और हंगरी तक चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना से जुड़े कई प्रोजेक्ट रद हो चुके हैं, कुछ पर पुनर्विचार चल रहा है और कई बेहद देरी चल रहे हैं। चीन के नए सिल्क रोड के रास्ते में ढेरों राजनीतिक और आर्थिक बाधाएं आ रही हैं, जिनसे पार पाना इस समय बेहद मुश्किल नजर आ रहा है।
चीन के नए सिल्क रोड में पाकिस्तान बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। दोनों देशों के बीच संबंध भी पिछले कुछ समय में बेहद मजबूत हुए हैं। लेकिन यहां भी चीन के सामने परेशानियां ही परेशारियां हैं। पिछले साल नवंबर में पाकिस्तान में जल प्राधिकरण के चेयरमैन ने दियामीर-भाषा बांध के स्वामित्व को लेकर सवाल खड़े कर दिए थे। जल विभाग के चेयरमैन का कहना था कि चीन इस पनबिजली परियोजना के स्वामित्व में हिस्सेदारी चाहता है। चीन के इस दावे को पाकिस्तानी हितों के खिलाफ बताकर ठुकरा दिया था। हालांकि चीन ने परियोजना में हिस्सेदारी की मांग से इनकार कर दिया था, लेकिन चीनी अधिकारियों ने इस परियोजना से अपने हाथ खींच लिए, इससे पूरा मामला साफ हो गया था।
पाकिस्तान से लेकर तंजानिया, हंगरी और कई और देशों में वन बेल्ट वन रोड पहल के तहत किए गए काफी कॉन्ट्रैक्ट रद किए जा चुके हैं। कई में फेरबदल हो रहा है या फिर उनमें देरी हो रही है। इसकी वजह है परियोजना का खर्च या फिर जिन देशों में ये परियोजनाएं हैं उनकी यह शिकायत कि उन्हें इनका बहुत कम लाभ मिल रहा है। इन परियोजनाओं में ठेके चीनी कंपनियों को मिले हैं और इसके लिए धन कर्ज के रूप में चीन दे रहा है, जिसे ब्याज के साथ वापस किया जाना है।
हालांकि चीन के नए सिल्क रोड की बाधा सिर्फ पैसा ही नहीं है, बल्कि कई जगह राजनीतिक उठा-पटक से भी उसे जूझना पड़ रहा है। दरअसल, कई देशों को लगता है कि एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था उन पर दबदबा कायम करना चाहती है। इसलिए उनके एक डर भी इस परियोजना को लेकर है। हांगकांग की रिसर्च कंपनी इकोनॉमिस्ट कॉर्पोरेशन नेटवर्क के विश्लेषक रॉबर्ट कोएप कहते हैं कि पाकिस्तान उन देशों में है जो चीन की 'पिछली जेब' में रहते हैं। ऐसे में पाकिस्तान का उठकर यह कहना कि 'मैं आपके साथ यह नहीं करना चाहता' दिखाता है कि चीन के लिए केवल फायदा ही फायदा नहीं है।
गौरतलब है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में बेल्ट एंड रोड परियोजना की शुरुआत की थी। इसके तहत चीन ने दक्षिण प्रशांत से लेकर एशिया, अफ्रीका और यूरोप के 65 देशों के साथ परियोजनाओं का एक खाका तैयार किया, जिसके लिए पैसा चीन दे रहा है। इनमें साइबेरिया में तेल की खुदाई से लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया में बंदरगाहों का निर्माण, पूर्वी यूरोप में रेलवे और मध्यपूर्व में बिजली की परियोजनाएं भी शामिल हैं।
भारत, चीन की इस परियोजना की शुरुआत से खिलाफत करता रहा है। इधर रूस और अमेरिका भी इस परियोजना से खुश नहीं हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी पकड़ कई देशों पर ढीली हो जाएगी। अमेरिका को चीन और पाकिस्तान का साथ भी पसंद नहीं आ रहा है। इसलिए अमेरिका ने पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान पर कुछ ज्यादा ही सख्त रवैया अपना रखा है।
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