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भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण पार्टी से निकाले गए चीनी नेता, मार्च में कर चुके हैं राष्ट्रपति चिनफिंग की आलोचना

सार्वजनिक तौर पर महामारी के कारण राष्ट्रपति की आलोचना कर चुके नेता को भ्रष्टाचार के आरोप में पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

By Monika MinalEdited By: Published: Fri, 24 Jul 2020 03:52 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jul 2020 03:52 PM (IST)
भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण पार्टी से निकाले गए चीनी नेता, मार्च में कर चुके हैं राष्ट्रपति चिनफिंग की आलोचना

 बीजिंग, एपी। चीन में तानशाही चरम पर पहुंच गई  है। दरअसल, कोरोना वायरस महामारी को लेकर राष्ट्रपति शी चिनफिंग की आलोचना दुनिया भर में हो रही है। इसी क्रम में सत्तारूढ़ पार्टी के नेता ने भी सार्वजनिक तौर पर राष्ट्रपति चिनफिंग की आलोचना की थी। रियल स्टेट कंपनी के पूर्व चेयरमैन को  भ्रष्टाचार के आरोप में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी से बाहर कर दिया गया है। पार्टी ने शुक्रवार को इस बात का ऐलान किया। रेन झिकियांग (Ren Zhiqiang) जो सेंशरशिप व अन्य संवेदनशील मुद्दों पर बोलने के लिए जाने जाते हैं ।

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मार्च में एक आलेख के ऑनलाइन प्रकाशन के बाद से ही उनकी सार्वजनिक तौर पर मौजूदगी नहीं देखी गई। इस आलेख में उन्होंने देश के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के प्रति आलोचनात्मक रुख दिखाया था जो कोविड-19 को लेकर था। दरअसल चीन के वुहान में पिछले साल शुरू हुए महामारी पर काबू न कर पाने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति को कसूरवार बताया था। 69 वर्षीय रेन पर भ्रष्टाचार, घूसखोरी और अपने पद के दुरुपयोग का आरोप है। बीजिंग में डिसिप्लीन इंसपेक्शन कमिशन ऑफ शीचेंग डिस्ट्रिक्ट ने अपनी वेबसाइट पर यह जानकारी दी है। हुआयुआन ग्रुप (Huayuan Group) के डिप्टी पार्टी सेक्रेटरी और पूर्व चेयरमैन को सत्तारूढ़ पार्टी से निकाल दिया गया। हालांकि अपराधों का विवरण नहीं दिया गया। पार्टी के सदस्य होने के बावजूद रेन CCP के आलोचक रहे।

शंघाई की लिस्टेड हुआयुआन प्रॉपर्टी कंपनी में 2011 से 2014 तक रहने वाले रेन का आखिरी आलेख मार्च में प्रकाशित हुआ। रेन पर पब्लिक का पैसा जैसे गोल्फ क्लब मेंबरशिप और महंगे डाइनिंग जैसे व्यक्तिगत इस्तेमाल किए जाने का आरोप है जिसके कारण राज्य को काफी नुकसान हुआ।

वर्ष 2012 में शी सत्तारूढ़ पार्टी के नेता बने थे।  उन्होंने आलोचना करने वालों का मुंह बंद किया, सेंशरशिप पर सख्ती की और ऐसे संस्थाओं को बंद कर दिया जिन्हें आधिकारिक तौर पर मंजूरी नहीं थी। दर्जनों पत्रकारों, क्षमिकों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को कैद कर लिया। 


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